कथावाचक संत नहीं व्यापारिक कलाकार है .

अर्जुन को संभर्म  से निकलना ही सनातन है और यह कार्य कृष्ण के अतिरिक और कोन कर सकता है.आज का विचारवान वाचक, जो स्वयं की परिपूर्णता और उसे प्राप्त करने का साधन खोज रहा है, उसे योगपथ पढ़कर बहुत छुटकारा मिलेगा और उसका मन उसे पूर्ण रूप से स्वीकार करेगा। यहाँ पर व्यक्ति को मानवजाति के आध्यात्मिक विकास की सबसे प्राचीन साधना-पद्धती व तत्वज्ञान का स्पष्ट एवं गुह्यतम स्पष्टीकरण प्राप्त होगा, जिसका दूसरा नाम योग है। 

गीता उस दृश्य का वर्णन करती है, जब अर्जुन जो दुविधा में है तथा अपनी पहचान एवं कर्तव्य के बारे में संभ्रमित हो चुका है, वह श्रीकृष्ण की तरफ मुड़ता है और फिर भगवान श्रीकृष्ण अपने सक्षम विद्यार्थी के समक्ष योगपथ प्रकट करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का सार यही है कि व्यक्ति को अपना जीवन भक्तियोग के अभ्यास पर केंद्रित करना चाहिए, जिसका अर्थ व्यक्तिगत चेतना एवं परम चेतना का मिलन है।

कृष्ण अपने ऐतिहासिक प्रवचनों की श्रृंखला द्वारा भक्तियोग की पद्धतियों का सुंदर विवेचन प्रदान करते हैं, जिसमें वे योग के इस सरल एवं सर्वसमावेशक रूप का सर्वव्यापी अस्तित्व साबित करते हैं। वे दिखाते हैं कि जो आधुनिक भौतिकवादी जीवन की जटिलता एवं हाहाकार में फँसे हैं, वे भी इस सीधी-सादी पद्धती को अपनाकर मन शुद्ध कर सकते हैं और अपनी चेतना को परमानंद की अवस्था तक उन्नत कर सकते हैं।

आजका कथा वाचक संत नहीं व्यापारी है उसे क्या लेना देना सनातन,समाज,संस्कृति व संस्कृत से. कभी कथाएं रही होगी संत समागम अबवे व्यापार की सार्थक व  स्थाई कुंजी है के अतिरिक्त और कुछ नहीं.

सनातन परंपरा को निरंतर घाटे का सौदा देने वाले कथा वाचकों से सनातन समाज को सावधान रहना चाहिए ए सनातन परंपरा को संजीवनी देना कम अपने व्यापारिक और बैंक खातों को बढ़ाने का काम ज्यादा करते हैं.

राजेंद्र नाथ तिवारी

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