नारी शक्ति वंदन अधिनियम की सफलता पर संदेह, पहले जनप्रतिनिधियों का प्रतिस्थानी तुरंत बंद हो मोदी जी?

 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत करने वाला #नारी शक्ति बदन विधेयक  स्वागत योग्य  है.कई माने मे यह ऐतिहासिक भी है .नया विधेयक, नया संसद भवन और नई कार्यवाही


का हिस्सा बनाना, नए संसद भवन में इसके शानदार कोई और शुरुआत नहीं हो सकती थी .

प्रधानमंत्री ने जब यह कहा की यत्र  नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता. क्योंकि लोकसभा में एनडीए सरकार को भारी बहुमत है और राज्यसभा में भी उसका फ्लोर प्रबंधन अच्छा है .ऐसे में इस विधेयक को पास करने में कोई बाधा नहीं आएगी .काफी लंबे समय से देश की आबादी को ऐसे कानून की प्रतीक्षा थी ,अब जब महिला मतदाता 18वीं लोकसभा में चुनने के की प्रक्रिया में है.  हमारे संविधान निर्माता ने देश के नागरिकों को मताधिकार देते समय किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया और तथ्य दिया आजादी के पिछले 7 दशकों में देश के तमाम महत्वपूर्ण पदों में महिलाएं सुशोभित कर चुकी हैं .

यह हमारे लिए उपलब्धि का विषय है तमाम शैक्षिक भौतिक तरक्की के बावजूद प्रतिनिधित्व के मामले में महिलाओं में खासी प्रगति नहीं हो पाई है .प्रधानमंत्री ने सोमवार को पिछले संसद भवन की आखिरी दिन जब माननीयों की संख्या बताई तब महिला और पुरुष सांसदों काअंतर हमारे लोकतंत्र का मुंह चढ़ता हुआ मिला .दोनों सदनों में कुल 7 50oसांसदो ने अपना योगदान दिया है परंतु उनमें महिला सांसदों की संख्या मार्च 600 रही .आज भी लोकसभा में महिलाओं का प्रतिशत 15% से भी नीचे है.एक बात सत्य है कि महिला आरक्षण केवल एकमात्र इलाज नहीं है पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी मुल्कों में बरसों से विधाई शक्तियों में महिलाओं को आरक्षित रही हैं .पर यहां उसके हालात कैसे आया बताने की जरूरत नहीं है.

 खुद हमारे देश में ही पंचायती राज संस्थाओं में कई सुबो में 50% तक आरक्षण लागू है मगर मुखिया पति और शासित पति ही समाज की वास्तविकता है. इसलिए राजनीतिक चुनौती को हमको स्वीकारना होगा और राजनीतिक दलों को जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व करने की कोशिश भी करनी होगी .पार्टी संगठन के सभी विभागों में उन्हें कम से कम 33% हिस्सेदारी  देनी होगी. सिर्फ दिखाने के लिए ही नहीं बल्कि काम के लिए .प्रत्याशी चयन करना होगा इसमें का भला नही होने वाला है .अगर ऐसा नहीं करता तो मैं पार्टी का भला होगा न लोकतंत्र का और न का नारी शक्ति बंदन विदेयक का.

आज राजनीतिक पार्टियों को एक अवसर मिला है कि महिलाओं की राजनीतिक आकांक्षाओं के प्रति संवेदन को अपने इस कानून का सियासी लाभ और चाहे कोई भी उठा पर इतना तो सत्य है कि नरेंद्र मोदी ने इसकी बाजी मार लिया है .

अमृत काल में फिलहाल भारतीय स्त्रियों के लिए संभावनाओं के  सदन का जो बड़ा पट खुला है वह स्वागत योग कदम है .ऐसे में उन लोगों को चिंतन करना चाहिए जो आज ही नारी सशक्तिकरण के नाम पर पिछड़ा , आंगड़ा और बैकवर्ड और शेड्यूल और शेड्यूल ट्राइब की बात कर रहे हैं. ईश्वर से प्रार्थना है पहले नई व्यवस्था लागू हो,ऐसा नहीं किया तो जिस तरह से पंचायत राज अधिनियम की धज्जियां उड़ रही हैं ठीक उसी तरह से पार्लियामेंट के बाहर भी महिला सांसद महिला अब नई वंदन अधिनियम की धज्जियां उड़ेंगे .इसके लिए कठोर कानून बनाना पहलेशर्त होगी.

 नई बंदन अधिनियम में एक बात और है की हर हाल में महिला का प्रतिष्ठानी कोई भी प्रतिनिधि न हो प्रधान पति ,प्रमुख पति ,जिला पंचायत पति ,बीडीसी पति ,और जिला पंचायत सदस्यपति इन चीजों से जब तक निजात नहीं मिलेगी तब तक वास्तव में नारी को स्वतंत्रता का खुला आकाश नहीं मिलेगा.

राजेंद्र नाथ तिवारी

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