भारत को विदेशी नहीं आंतरिक शक्तियां कर रहीं कमजोर.क्या भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड अपने अंतर्निहित शक्तियों से ही विखंडन का शिकार हो सकता है, और वह ऐसी कौन सी शक्तियां हैं जो विखंडन के लिए आमादा है, अगर हैं तो ऐसा करने का प्रयास क्यों कर रही हैं, यह बाहरी हैं या आंतरिक या दोनों इनका स्रोत या उद्गम कहां है, यह दुशक्तियां कैसे विकसित होती हैं उनका प्रबंधन कैसे होता है विशेष कर प्राच्य और पाश्चात्य पहचान के संदर्भ में और इनका लाभ उसका कर उठने के लगे पश्चिमी देशों की भूमिका क्या है,
आर्थिक समृद्धि ,कॉरपोरेट और ढांचा का विकास और उन्नत राष्ट्रीय लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था राष्ट्र को एकजुट करती है, इस सकारात्मक शक्तियों पर कुछ लिखा जा सकता है अपने केंद्रीय यानी बिखराव पैदा करने वाली शक्तियां पर कम ही विचार किया जाता है और कभी-कभार है इनका अध्ययन होता है आंतरिक और बाहरी दोनों शक्तियों के उत्प्रेरक आंतरिक शक्तियों में सांप्रदायिकता विभिन्न प्रकार के सामाजिक आर्थिक विषमताएं शामिल हैं .
बाहरी शक्तियां भारतीयों में विभाजन पैदा करती हैं, अधिक जटिल हैं और वह भारत की आंतरिक दरारों से जुड़ी हुई हैं इसमें यह पता चलता है कि किस तरह से वैश्विक गठजोड़ अपनी-अपनी कार्य सूची के साथ आंतरिक शक्तियों को अबोधकर पूरी मात्रा में नियंत्रित कर रही हैं किसी महाविनाश के लिए ये देश में आज हम अपने का शोर नहीं मचा रही, बल्कि इस समय राष्ट्र जीस विपत्ति का सामना कर रहा है उसका एक मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत करती हैं.
सिर्फ पाकिस्तान ही भारत में विभाजन कारी शक्तियों को नहीं उसका रहा, चीन जो भारतीय माओवादियों को से जुड़ा है और नहीं यूरोप और उत्तर अमेरिका में इसी संस्थान जो अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं, इस संकट की मिलती-जुलती शक्ति इन सब से भी अधिक है बिखराव पैदा करने वालों में शक्तियां गहराई तक सुव्यवस्थित से जटिल ढंग से एक दूसरे से जुड़ी हुई है और सूक्ष्म तथा गुप्त एजेंडे से जुड़े रहने वाले बहुराष्ट्रीय नेटवर्कों के तरह अनेक कार्य को संचालित करती हैं.
यह संभव है हिंसा और अराजकता की उन शक्तियों से बहुत दूर जानी पड़े जिसमें बौद्धिक अलगाववाद, उग्रवाद ,विद्रोह की धारणाएं सामने ला खड़ी करती हैं. फिर भी यह स्थापित करती हैं कि पश्चिम के कुछ शक्ति केंद्र उन्हें नियंत्रित करते हैं .कम से कम भारत के सामाजिक आर्थिक चिंतन पर गहरा प्रभाव डालते हैं यह राजनीतिक विचार मंचों चर्च और सामाजिक संगठनों से मिले हुए हैं भारत में बिखराववादी शक्तियों को संसाधन उपलब्ध कराते हैं यह नई दरारों को जन्म देते हैं और पुरानी दरारों का पोषण करते हैं
आश्चर्यजनक यह है कि भारत की एकता के पक्ष में जवाबी विमर्श बहुत कम होता है.पूरा विपक्ष वैश्विक आतंकियों, आत्ताइयो से अपने को संबद्ध कर लेता है.जहां तक समस्याओं के बाहरी शक्तियों का दोष रोपण का तर्क है वह अपनी कमजोरी और विखंडित होने वाली शताब्दियों पुरानी प्रवृत्तियों का सामना अवश्य करना होगा परेशानी में डालने वाले इस पक्ष पर उन लोगों के ध्यान पर्याप्त नहीं दिया है जो हाल ही में जीवन अर्थव्यवस्था की सफलता का आनंद उठा रहे हैं भारत में गरीब नागरिकों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है. विद्यालय नहीं जाने वालों बच्चों की संख्या सर्वाधिक है. सुदूर क्षेत्र में जीवन बनाए रखने के लिए आवश्यक जल या साइबरस्पेस भी जिससे एक भारतीय संरक्षक के रूप में देखा जा रहा है.
आज साइबर स्पेस भारत की कमजोरी बन रहा है .साइबर जासूसी पर हाल के एक बहुचर्चित प्रशिक्षित अध्ययन ने भारत को सर्वाधिक पीड़ित राज बताया है .इसमें संवेदनशील रक्षा नेटवर्क और देश-विदेश में अनेक दूतावासों के सूचना तंत्रों को चीन के गुप्त रिंगटोन में बहुत सीमा तक अपने प्रभाव क्षेत्र में ले रखा है .इस तरह से चीन के चारण धारा को महत्वपूर्ण सूचनाएं माओवादी उग्रवादियों तक पहुंचाई जा रही हैं जो खनिज संपदा संपन्न भारत के हृदय स्थल के रूप में जकड़े हैं .
जहां राज्यों की उदासीनता ,विदेशी हस्तक्षेप और माओवाद का दुष्चक्र भारत को पर्रीशान कर रहा है भारत और अतिवादी राज्यों से घिरा है जिनमें से विफल राष्ट्र शामिल हैं जो विफल राज्य बनने जा रहे हैं सीमा पार से भारत में हिंसा आयातित हो रही है ,जो संपूर्ण आर्थिक और सैनिक संसाधनों को फैलाए रखती है ,
लोकतंत्र में भारतीय लोगों ने बहुत बड़ी संख्या में राजनीतिक पार्टियों को जन्म दिया है जिसकी वजह से वोट बैंकों का सामाजिक ताने-बाने के स्वरों में बिखराव पैदा हुआ है .इनके साथ जो अवसरवादी है जिसका नतीजा है दीर्घकालीन नीतियों से क्षेत्र में समझौते करने की प्रवृत्तियां समझ नहीं आता कि भारत में जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र है यह कहा जाए कि शासन की कमी इसके बावजूद भारत का जीवट भी उल्लेखनीय है कि अमेरिका आतंकवाद के अपने वतन की रक्षा के लिए अपनी ताकत बढ़ चुका है भारत ने उस सीमा तक ऐसा नहीं किया है इसके बावजूद आतंकवादियों से कम समय के अंतराल पर या अधिक हमले किए हैं भारत के ऐसी कोई धारणा नहीं है. यहां 2008 के मुंबई आतंकी हमलों में 166 लोग मारे जाने के बाद ट्रेनों में शुरू हो गई दूसरे दिन और जनजीवन सामान्य हो गया
विश्व की दूसरी सर्वाधिक मुस्लिम आबादी भारत में है और इस मुसलमानों को बहुत बड़ी तादाद स्थानीय संस्कृति के जमीन हुई हैं और वे अपने पड़ोसी हिंदुओं के साथ भारतीय समाज में घुलने मिलने से हैं अब तक उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अखिल भारतीय ईसलामी कार्यक्रम में शामिल किए जाने के प्रयासों का विरोध किया है और इस तरह भारतीय मुसलमान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए उपस्थित करते हुए उन्हें अन्य धर्मों के साथ सांस्कृतिक समन्वय और सामंजस्य पूर्ण को कायम रखने की प्रेरणा देते हैं. भारत में है भारत में आरक्षण सरकारों से जिन्हें सरकार पिछले वर्ष में लागू किया गया है दलित व पिछड़े वर्ग सुधार किया है लेकिन समस्या को देखते हुए बहुत कम और बहुत देर है आने योग्य भारतीय गैर सरकारी संगठनों ने सरकार द्वारा छेड़े गए अभियान को भरा है और सफलतापूर्वक सहायता की है भारत के आंतरिक प्रदर्शन का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाना चाहिए यह किस प्रकार से सर्वाधिक नागरिकों को लाभ पहुंचाता है और इस समय यह निश्चय ही कठोर आलोचना के योग्य है फिर भी अगर अन्य भारतीय शक्तियों को निपटने की क्षमता बहुत कम कर दिया जाए इसके नतीजे और तौर पर उपनिवेशीकरण सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक साम्राज्यवाद और ऐसे ही दूसरों के लिए जमीन तैयार कर सकती हैं .
भारत के इतिहास में ऐसी अनेक बार हुआ है जब सरकार ने अनेक भारतीय शास्त्रों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए मानवाधिकार के मामलों को बहाना बनाया है बना है कि अंग्रेजों ने भयंकर अत्याचार के साथ अन्याय पूर्ण साबित करने के लिए साहित्य के नाम से जाना जाता है ताकि भारतीयों की कथित कथित तौर पर हमें परेशान किया जाता है वस्तुतः भारत में बाहरी शक्तियों की तुलना में आंतरिक शक्तियों से ज्यादा खतरा है यह शक्तियां पार्टी स्तर पर परस्पर एक दूसरे का विरोध करते हुए यह निम्न प्रकार है सत्ता हासिल करने का हर संभव प्रयास करती हैं देश जाना न जाए पर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हमारा ही होना चाहिए देश स्मूच्य रूप से निश्चित रूप से वैश्विक गुरु नहीं बन सकता.
राजेंद्र नाथ तिवारी
लेखक राष्ट्रीय कबीर सम्मान प्राप्त हैं