इस समय प्रशासनिक मशीनरी के संरक्षण में पास्को व एससी एसटी एक्ट का दुरुपयोग भयावह रूप से डरावने हथियार के रूप में संपूर्ण उत्तर
प्रदेशव् देश में किया जा रहा है. यह हथियार कथित स्वर्ण द्वारा अपने अहंकार की दृष्टि के लिए एससी एसटी का या नाबालिक पास्को दुरुपयोग करके संक्रामक बीमारी के रूप में किया जा रहा है। बस्ती जनपद में एक ऐसी घटना प्रकाश में आई है जिसमें घटना घटी ही नहीं, एससी एसटी के आरोप में एफआईआर दर्ज हो गया फिर उसके खिलाफ दर्ज हुआ, जो था ही नहीं और जिम्मेदार अधिकारियों ने अपराधी बनाकर के चार्ज सीट भी सबमिट कर दिया। यह घटनाएं एक बानगी हैं।
एक ऐसे व्यक्ति द्वारा यफ आई आर दर्ज कराया जाता है जो पेशेवर रूप से शिकायत करता रहता है ।अनेक एससी एसटी मुकदमोनों को दरखास्त देकर धन का शोषण करना भयादोहन के बाद संबंधित थाने या चौकी से मिलकर के धन दोहनकर पैसे का बंटवारा करना एक आम बात हो गई है।
इस तरह की घटनाओं को न्यायालय ने भी संज्ञान में लिया है इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है समाज में लोगों को बेइज्जत करने और सरकार से मुआवजा प्राप्त करने के लिए इस तरह की घटनाएं प्राय: होती रहती हैं और इन घटनाओं को अंजाम देने का काम स्थानीय थाने के दलाल, प्रभावशाली पैसे वाले लोग हथियार के रूप में करते हैं ।कोर्ट ने इसको दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है की पास्को को एक्ट भी एससी एसटी एक्ट की तरह पैसा वसूलने का एक हथियार हो गया है।
कोर्ट ने उसे समय संज्ञान में लिया है ।यह मामला एक संक्रामक बीमारी के रूप में चतुरर्दिक फैल रहा है ।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा है की कैस झूठा पाए जाने पर धन की वसूली भी की शिकायत कर्ता से कीजाए। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि एससी एस्टी की जांच को उपाधीक्षक पुलिस स्तर का राजपत्रित अधिकारी करता है। विश्वास किया जाता है कि वह अधिकारी जातिवाद और अन्य बीमारियों से ऊपर उठेगा ,परंतु एक अधिकारी के बारे में आम चर्चा है एससी एसटी का मामला अगर उनके अधीन है तो उस केस में नि:सन्देह चार्ज सीट लगती है ।
जो घटना घटी ही नहीं और जो पेशेवर अपराधी है,जो शिकायत कर्ता ऐसे लोगों को फसाकर करके धन का बंदर बांट करने के नियत से कार्य किया जाने वाला कार्य भी दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अपराधी माना जाएगा ।परंतु प्राय देखने में आया है कि इसअस्त्र का प्रयोग अधिकारी सजातीय दुर्भावना से पूर्वाग्रह पूर्ण होने के कारण हर हाल में गलत को सही और सही को गलत करने का निर्णय वर्दी की आड़ में लेते हैं। सरकार को चाहिए ऐसे अधिकारियों पर जो जातीय पूर्वाग्रह से निर्णय को प्रभावित करते हैं उनकी समीक्षा के लिए भी जिला अधिकारियों के संरक्षण में एससी एसटी एक्ट और पास्को एक्ट के फॉलो अप समीक्षा के जाए जिससे नीर क्षीर का विवेचन हो सके। मेरे व्यक्तिगत संज्ञान में है अपराध हुआ ही नहीं लेकिन उच्च स्तरीय दबाव में कथित व्यक्ति को अपराधी बनाकर माननीय न्यायालयों को चाज शीट सबमिट कर दी जा रही है। यह तो काहना कठिन है कि मुआवजे में राजपत्रित अधिकारी का भी हाथ है परंतु इतना सत्य है बिना उनके व् विभागीय मिली भगत के कर्मचारियों के मिले कोई भी बात आगे नहीं बढ़ सकती ।ऐसे में लांछित व्यक्ति पैसा और प्रतिष्ठा दोनों बर्बाद कर न्याय की दृष्टि में अपराधी बन जा रहा है ।इस पर लगाम लगनी चाहिए और एससी-एसटी केस की जांच किसी भी हालत में एससी एसटी अधिकारियों से न कराए जाने का निर्देश भी शासन स्तर से जारी होना चाहिए।
इसी संदर्भ में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान में लेते हुए कहा है कि उच्च जाति के व्यक्ति पर सिर्फ इसलिए यस सी एक्ट लागू नहीं हो सकता कि उसके खिलाफ किसी ने मुकदमा दर्ज कराया है ।सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है जब तक उत्पीड़न अथवा कोई कार्य किसी जाति के कारण सोच विचार कर नहीं किया जाता तब तक आरोपी पर एससी एसटी के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है उच्च जाति के व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकारों से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि अनुसूचित जाति वाले ने उसके खिलाफ मुकदमा लगाया है। जस्टिस एस नागेश्वर राव की अगवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि एससी एसटी एक्ट के तहत कोई अपराध इसलिए नहीं स्वीकार किया जाना चाहिए कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति का है। इससे साबित नहीं हो रहा है कि शिकायतकर्ता का उत्पीड़न हुआ हो सोच समझ कर नहीं किया गया तो उत्पीड़न नहीं हो सकता ।
तीन सदस्य खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि एससी एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति को गाली भी दे दी जाए तो उसे कार्यवाही नहीं हो सकती। हां अगर उच्च जाति की व्यक्ति ने एससी-एसटी विषय की समुदाय के व्यक्ति को जानबूझकर प्रताड़ित करने या गाली देने का काम किया है ,तो उसको जरूर कार्यवाही होनी चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा उच्च जाति का कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कदम उठाता है इसका मतलब यह नहीं है उसके ऊपर यसएसटी रेट के तहत अपराधिक की तलवार लटक जाए सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसलों में फिर से मोहर लगाते हुए कहा है कि आपराधिकृत ठहराया जा सकता है जिससे अपराध सार्वजनिक तौर पर अंजाम दिया जाए ना कि घर के चार दिवारी या घर के अंदर बैठे हुए व्यक्ति की कार्यवाही से।
कथित शिकायतकर्ता और कथित जांच अधिकारी को अपनी मानसिकता से ऊपर उठकर एससी एसटी एक्ट के फैसले पर विचार करते समय इस बात का भी संदेह बना रहना चाहिए अगर मामला गलत पाया गया तो उसके खिलाफ भी रिकवरी का आदेश हो सकता है अगर ऐसा आदेश हो गया तो sc-st के मामले में मुकदमे कम होंगे और समाज में सामाजिक समरसता का भाव बढ़ेगा।
राजेन्द्र नाथ तिवारी