भारतवर्ष त्योहारों का देश है ,सात वार नौ त्यौहार संस्कृति और भारतीय मनीषा की पुरातन परंपरा है ।भाई बंधुओं का त्यौहार ,माता-पिता का त्यौहार ,पति-पत्नी का त्यौहार, सेवक बंधुओं का त्यौहार, जितने देवता उतने त्यौहार ,यह सब हमारी विविधता की एकता का राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व करता है ।उसी क्रम में अपने यहां भारतीय संस्कृति में सबसे उच्च प्रतिमान स्थापित करने वाला चातुर्मास पारायण सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों की श्रृंखला को स्थापित करता है ।इस श्रृंखला में व्यक्ति को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, कैसे कैसे करना चाहिए ,जीवन कैसे जीना चाहिए, क्या खाना क्या पीना ,कैसा आचरण ,कैसा नहीं आचरण करना यह सब सिखाता है चातुर्मास ।
आज हम चातुर्मास पर विशेष रूप से चर्चा करने का प्रयास करेंगे, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देशयनी से देवोत्थान एकादशी तक की 4 महीनों की अवधि का सनातन हिंदू संस्कृति की परंपरा का विशिष्ट आध्यात्मिक मनीषियों ने 4 माह के चातुर्मास काल को शारीरिक व मानसिक उत्कृष्ट करने व् अत्यंत महत्वपूर्ण मान्यता है । देव शयनी एकादशी से पालन कर्ता ,सब के भरण पोषण कर्ता, पालनहार भगवान श्री विष्णु 4 माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं, इसके साथ ही उनकी सहायक देव शक्तियां भी निष्क्रिय हो जाती हैं और आसुरी शक्तियों की ताकत इस चातुर्मास में बढ़ जाती है, ऐसे में नकारात्मक शक्तियों से निपटने के लिए इसमें विशेष दृष्टि के संचालन का दायित्व स्वयं देवाधिदेव आदियोगी भगवान शंकर उठाते हैं ।
उनके कंधों पर इस 4 महीने सृष्टि के संचालन का संपूर्ण दायित्व हो जाता है इसी कारण इस चौमासे को विशेष रूप से शिव के जलाभिषेक का परंपरा भी है, इसीलिए कहा भी गया है श्रृंगार प्रिय:विष्णु, शंकर:जलप्रिय:।अर्थात भगवान शंकर को जल प्रिय है ,इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषियों की अनुकूल अनुभूत मान्यता थी कि प्रकृति का हमारे मन में गहरा नाता है, इसलिए उन्होंने वर्षा ऋतु से हमारी जीवन शक्ति को मजबूत बनाए रखने के लिए 4 माह की पूजा-पाठ जब तक योग ध्यान आहार-विहार के तमाम नियम उपनियम निर्धारित किए हैं ।
यह हमें सही अर्थों में प्रकृति को सहेजना सिखाता है। संयम ,सदाचार की प्रेरणा से ज्ञात अज्ञात के प्रति सांख्य का भाव रखता है, ज्ञातव्य है कि वैदिक चातुर्मास का अर्थ होता है हरिशयनी एकादशी से योगनिद्रा में जाने के पीछे का मूल भाव में तत्व की अधिकता को दर्शाता है ।भारतीय आयुर्वेद के अनुसार सूर्य या अग्नि
की जाती है ।पाचन शक्ति कमजोर होने लग ती है ,मौसम में सूर्य के ताप को धीरे-धीरे कमी आने लगती है बरसात के अधिकता के कारण के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता और बीमारियों का दबाव बढ़ जाता है ।मान्यता यह भी है कि वर्षा काल में ही उन्होंने रोगों से बचाव के लिए नियम बनाए थे। आज भी हमारे स्वास्थ्य विज्ञान के अनुशार बनने वाले मसालेदार, भोजन, मांसाहार बहुत से बचने से दूध दही आदि से परहेज करने की सलाह भी चातुर्मास में मनुष्य को प्राचीन काल से नियमों में पालन और आत्मानुशासन के भावना जागृत होती है। खान-पान आचार विहांर की शुद्धि से आध्यात्मिक साधना फलीभूत होती है। प्राचीन काल में साधु-संत चातुर्मास के दौरान एक ही स्थान पर रुककर स्वाध्याय सतत प्रयत्न चिंतन और आत्म चिंतन करते रहते थे ।
रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में भगवान श्री राम द्वारा वर्षा काल में देवताओं द्वारा निर्मित गुफा में स्वाध्याय, धार्मिक चिंतन, शास्त्रार्थ करने का सुंदर वर्णन मिलता है। बौद्ध व जैन धर्म के में भी चातुर्मास का विशेष वर्णन है ।यह लोग इसी अवधि में एक ही स्थान पर रहते है।
जैन मुनि वर्षा काल में धरती से निकलने वाले जीवो की हिंसा से बचने के लिए एक स्थान पर रुक -रुक कर स्वाध्याय सत्संग आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत होते हैं ।जानना यह भी आवश्यक है कि देवताओं के सो जाने का मार्ग तक सामने रख आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू चतुर्मास में विवाह लग्न , शिलान्यास, प्रवेश मंदिर, मूर्ति की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा प्रत्येक कार्य भगवान विष्णु को साक्षी मानकर से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक जाता है इसके बाद हरियाली तीज में रक्षाबंधन कृष्ण जन्माष्टमी विजयादशमी करवा चौथ दीपावली भैया दूज के विशेष महत्व को दर्शाने वाले छठ पूजा के साथ और देवी आराधना का पर्व काल में धार्मिक अध्यात्म आता है ।।
स्वास्थ्य संरक्षण और आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से संतो को अनूठा अवसर प्रदान करता है इसलिए हर व्यक्ति को चातुर्मास की परंपरा को पालन करते हुए जहां तक हो सके मन वचन और कर्म से शुद्धता के लिए चातुर्मास की व्यवस्था का पालन करना चाहिए भारतीय परंपरा और भारतीय मनीषा इस बात का आदेश देती है कि जब किसी चीज की अति हो जाए तो उसको अति सर्वत्र वर्जयेत के तहत उसका निषेध से चातुर्मास करता है ।
इस बीच में भगवान शंकर ही विष्णु का भी काम करते हैं सृष्टि का संचालन और संहांर दोनों अगर किसी एक देवता के हाथ में मिलता है तो इस चातुर्मास में भगवान आदिनाथ योगी शंकर के हाथ में आता है। इसलिए हमें भगवान शंकर की आराधना का विशेष रूप से ख्याल रखना चाहिए। देवी की आराधना आदि शक्ति है, उनका करना चाहिए रक्षाबंधन में भाई और बहन के त्यौहार की चिंता करनी चाहिए अपने पारिवारिक परंपरा को याद रखते हुए पितृपक्ष अपने भूले बिसरे सभी पूर्वजों और रिश्तेदारों के पूर्वजों के श्राद्ध और उनके तर्पण की व्यवस्था को हमको इजाजत देता हैचातुर्मास।
आत्म शोधन,आत्म परिहार,आत्मविज्ञान,आध्यात्म विज्ञानं एव सहजता सम्यता,आध्यात्मिकता की प्रकाष्ठा का पुरातन जागरण है वैदिक ,सांस्कृतिक चाचतुरमास।
राजेन्द्र नाथ तिवारी