*बस्ती के कालानमक धान की खेती करने वाले किसानों का होगा जी आई टैग, मिलेगी विशेष पहचान*
*सिद्धार्थ एफ.पी.ओ. से जुड़े 35 कालानमक धान उत्पादक किसानों नें किया है आवेदन*
*बस्ती/* बस्ती जिले की आबोहवा में पैदा होने वाले धान की ख़ास किस्म कालानमक धान की खेती करने वाले किसानों का भी जीआई टैगिंग की जायेगी जिससे इन किसानों को कालानमक धान के उत्पादन और इसके बिजनेस का विशेष अधिकार मिल जाएगा.
बस्ती जिले सहित पूर्वांचल के जिलों में किसानों द्वारा उत्पादित सुगन्धित धान काला नमक दुनिया के सभी उन्नत किस्मों को मात देने वाला है. बस्ती जिले के सैकड़ों किसान काला नमक धान के देशी किस्म सहित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषदऔर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा इजाद की गई उन्नत बौनी किस्मों की खेती कर रहें हैं जो अधिक उत्पादन के साथ ही ज्यादा पैदावार देने वाली है. कालानमक की इन किस्मों में प्रोटीन, आयरन और जिंक जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें जहां जिंक चार गुना, आयरन तीन गुना और प्रोटीन दो गुना अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पाया जाता है. यही वजह है की कालानमक चावल को कुपोषण दूर करने के लिए भी खाया जाता है.
जनपद के किसानो द्वारा बनाये गए सिद्धार्थ एफपीओ द्वारा लगातार कालानमक धान के खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जिससे उनकी आमदनी को बढाया जा सके क्यों की कालानमक चावल की ऊँची कीमत आम चावल के मुकाबले चार गुना तक अधिक मिलती है और चावल बेंचने के लिए भी किसानों को परेशान नहीं होना पड़ता है.
नेशनल अवार्डी प्रगतिशील किसान और सिद्धार्थ एफपीओ के निदेशक राममूर्ति मिश्र नें बताया की बस्ती जिले में कालानमक धान की खेती करने वाले 35 किसानों ला आवेदन अभी जी आई टैग के लिए संदीप वर्मा ज्येष्ठ (कृषि) विपणन निरीक्षक को उपलब्ध कराया गया है. इन किसानों के कालानमक धान के जी आई टैगिंग हो जाने से उन्हें मूल उत्पादक की श्रेणी मिल जाएगी.
*किसानों के स्वयं के नाम से होगी जी आई टैगिंग*
किसान राम मूर्ति मिश्र नें बताया की कालानमक धान के लिए 11 जिलों की जी आई टैग मिला था. लेकिन इस बार यह जी आई टैग किसानों के नाम से स्वयं होगा. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालानमक चावल की कीमत और मांग बढ़ जायेगी.
*कौन देगा जी आई टैग*
राममूर्ति मिश्र नें बताया की भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है. उन्होंने जानकारी दी की जीआई टैग बताता है कि विशेष उत्पाद किस जगह पैदा होता है. उन्होंने बताया की जीआई टैग उन उत्पादों को ही दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र की विशेषता रखते हैं. उन्होंने बताया की कालानमक धान भी उन्हीं में से एक है. उन्होंने बताया की भारत द्वारा संसद में साल 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था. जिसके तहत ही जी आई टैगिंग की जाती है.