इति सिद्धम् भारत हिन्दुराष्ट्र! राजेन्द्र नाथ तिवारी

 

आर्यावर्त मूलतः भारत ही है, भारत का समाजशास्त्र सनातन की परिणति से जुड़ा है इसलिए भारत हिन्दू राष्ट्र ही है,42वां संविधान संशोधन ,संविधान निर्माताओ की इच्छा के विरुद्ध है, एक तरह यह कुनियोजित संवेधानिक हत्या भी।

हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है, हिन्दु एजेण्डा नहीं। हिन्दु एजेण्डा हिन्दु राष्ट्र की कामना से नही जुड़ता। जिस तरह मुस्लिम एजेण्डा की परिणति मूलतः मजहवी है उसी तरह हिन्दु एजेण्डा की प्ररेणा सनातन भारतीय शास्वत संस्कृति ही है। हिन्दु जीवन का लक्ष्य अलगाववादी, आतंकवादी आग्रहोे के वितरित है। ‘सर्व मंगल मांगल्ये’ के स्वरूप से जुड़े स्थायी विचार ही हिन्दुत्व है जबकि इस्लाम और इसायित में असहिष्णुताः पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है। हिन्दुत्व और आर्य परस्पर सम्र्पूक शब्द है।  आर्य और श्रेष्ठजन भी पर्यावाची है। विश्व के प्रत्येक जन में श्रेष्ठत्व का भाव का अभ्युदय ‘कृणवन्तो विश्वमार्यम ही मूलतः हिन्दु एजेण्डा है। राजनिति धैयवादी नही मुद्दा परस होती है और मुद्दे कभी स्थायी नही होते है। जबकि भारत/आर्यावर्त की आत्मा हिन्दुत्व है यही हिन्दुत्व राष्ट्रवाद या हिन्दुराष्ट्र का प्रवर्तन करता है।
आचार्य शंकर और संत ज्ञानेश्वर का सामाज ‘दूरितानि परासुव’ है। बताते है विश्व में सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ वेद हैं। वेद में अस्पृश्यता और जातियता का कोई उल्लेख नही है   जन्यमना सभी शुद्र है। सभी अपने कर्म से जाति नही वर्ण ‘गुण कर्म विभागः का प्रतिपादन करते है। वस्तुतः भारत के संविधान निर्माताओं की सोच संघिय राष्ट्र व्यवस्था का फूहड़ प्रदर्शन थी। अमरीकी संविधान की नकल कर संविधान निर्माताओं ने भारत राज्यों को ‘यूनीयन बना दिया’ जो नकारात्मक भावों को प्रदर्शति करता है। अमेरिका में राज्यों के बीच संधि है पर भारत राष्ट्र शास्वत है। भारत अंग्रेज,मुगल आदि आक्रमण कारियों के पहले भी भारत ही थी। आज आवश्यकता है की क्षेत्रियता और अलगांवाद को देशद्रोह कराकर सम्पूर्ण देश को एकामें बाधने का सूत्र हिन्दुराष्ट्र की आवश्यकता है। 
हिन्दु राष्ट्र पर विचार तटत्थ भाव से करना होगा। चार्वाक संस्कृति, हिन्दुराष्ट्र का स्थायी विरोध है। ‘ऋण कृतवो घृतं पीवेत’ न राष्ट्रवाद है और न ही हिन्दुराष्ट्र में इसकी कोई सम्भावना है। टकेपंथी राजनीतिक पार्टीयां अपने स्वार्थ में देश को असहिष्णुताः और बटवारे की ओर ढकेल रही हैं, देश जाये भाड़ में मेरा लक्ष्य पूरा हो। उन्हें हिन्दुराष्ट्र, वैदिकराष्ट्र,सनातन राष्ट्र से कोई भी लेना देना नहीं है। सात दशक पूर्व हमारे देश के शासन व्यवस्था और स्वतंत्रता के बाद विसंगतियो का अवलोकन भी आवश्यक है। भारत इस लिए सबल है कि इसका दर्शन,विज्ञान,व्यवहार शास्त्र और सामाजिक शास्त्र चारो मोर्चो पर शतप्रतिशत चरित्रार्थ हैं। टकेपंथी पार्टीयां व धर्मोजीवि विघ्न संतोषी स्पीड ब्रेकर तो बन सकते हैं पर स्थायी समाधान नहीं दे सकते। ‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है........हमारी पूँजी है। हमारे नेता अपने को हिन्दु कहने से घबड़ाते है पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का कहना ‘मुझे गधा’ कह लो पर हिन्दु न कहो’ आखिर क्या दर्शाता है। 
ऋग्वेद की दशवे मण्डल में नासादिसूक्तम में केवल सात श्लोक है ये सातो मंत्र है। इन सातो में सृष्टि की रचना उनके विकास का वर्णन है। दुनिया का कोई भी विज्ञानिक इस मंत्र का खण्डन नही कर सकता। बल्कि विज्ञानिक गुप्त रूप से  इसका लाभ ही उठाते हैं नाशा हमारे वेद शास्त्रांे पर मुहर लगाता है और हम है टकेपंथी राजनितिक सत्ता की जीभ लपालपा कर किसी को चाटने को उद्यत हैं। हमने विश्व को अर्थशास्त्र ,कामशास्त्र,धर्म शास्त्र,मोक्षशास्त्र,नीतिशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, वास्तुशास्त्र, ‘शून्य और एक’ का विज्ञान पूरे विश्व को दिया, यह सब तत्कालीन नीति विशारदो की कृति का सुफल है। हिमालय से कन्या कुमारी (इन्दसरोरम) इस देश का परिचय थोड़े शब्दों में देने की हिन्द महासागर पर्याप्त है। गालिब आदि अनेक मुस्लिम विद्वान भी इस देश को हिन्दुस्तान नाम देकर गौरव प्रदान किया है। इसमें रहने वाले लोग किसी भी उपजाति का हो पर मूलतः सभी हिन्दु ही है। अंग्रेजो के पहले मुस्लिमानों ने इस देश को हिन्दुस्तान ही माना, अंगे्रजों के बाद इंण्डिया हो गया। स्वतंत्रता के पूर्व लंका का नाम सीलोन था, पर उन्होंने पराधीनता त्यागते ही ‘श्रीलंका’ कर लिया।
विवेकानन्द के शब्दों में मुख्य रूप से विश्व में रहने वाली जनता इसाई, मुस्लमान और हिन्दु नाम से जानी जाती है। उसमें किसी की पूजा पद्यति से किसी को द्ववेश नही है। परन्तु हिन्दु को सम्प्रदायिक आदि शब्दों से अपमानित किया जाता रहा है और राष्ट्रद्रोही व टकेपंथी लोगो को प्रोत्साहन भी। टकेपंथी विघ्न संतोषीदल खूनी संघर्ष को प्रोत्साहित कर नैतिकता का पतन कर रहें हैं। 
यद्यपि यह देश हिन्दु राज्य ही है तथापि जिस दिन हिन्दुराष्ट्र के नाम से इसे जाना जायेगा, उस दिन हिन्दुओं में अपने विशिष्ट गुणों को लेकर एक एैसी जागृति आयेगी कि फिर इस देश में सम्प्रदायिकता टकेपंथी दलो को अवकाश प्राप्त नही होगा। इस आधार पर होने वाले खूनी संघर्ष सदा के लिए समाप्त हो जायेंगे। इस हिन्दु विरोध के कारण ही इस देश की धरती संस्कृति तथा गौरव की भावना में उत्पन्न हिन्दु से एक वर्ग (मुस्लमान) घृणा करने लगा है। कट्टर पंथी मुसलमान तथा उनके कट्टरपन को पुष्ट करने वाले टकेपंथी विघ्न संतोषी राजनीतिक नेता हिन्द राष्ट्र का नाम सुनते ही ‘चिल्ल पो’ करने लगते है, कि यह देश तोड़ने का संघर्ष है मुसलमानों में हीन भावना और असुरक्षा की भावना पैदा करना टकेपंथी और विघ्न संतोषियों का पुनीत कर्तव्य है। इस विषय में सिर्फ यह कहना चाहते है कि पड़ोसी नैपाल हिन्दुराष्ट्र था। वहां कौन इसाई और मुसलमाल असुरक्षित रहा। सर्वधर्म समभाव सब मतो और पंथो था। अतः भारत को वैश्विक महाशक्ति बनने का सामर्थ सिर्फ हिन्दुराष्ट्र, भारत की दे सकता है। अस्तु भारत का नाम हिन्दुस्तान उचित है। जैसे अंग्रेजो के पहले था। हिन्दुस्तान के प्रत्येक नागरिक हिन्दु,मुसलमान भी हिन्दु, इसाई भी हिन्दु, जैन भी हिन्दु, सनातनी भी हिन्दु, कबीर पंथी भी हिन्दु और पारसी भी हिन्दु, सिक्ख भी हिन्दु, हम सब का डी.एन.ए. एक है। हमारा हिन्दुराष्ट्र एक है। मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर,गुरूद्वारे हमारी पूजा के स्थान है पर सब मिलकर ‘वयम पंचाधिकम शतम’ को चरितार्थ करें इस लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कल्पना हिन्दुराष्ट्र होकर हमारे राष्ट्र नायकों के इमानदारी से देश के प्रतिमानों को वैदिक और संस्कृत ध्येय वाक्यों से अंलकृत किया है।  
लोकतंत्र का पवित्र मंदिर जिसे जनप्रतिनिधि भलें ही न जानते हो पर ‘लोकसभा’ के भवन पर लिखा है’ धर्म चक्र प्रवर्तनाय’ सुप्रीम कोर्ट का ध्येय वाक्य’ यतोधर्मस्तततो जयः’ सेना के सभी रिजीमेन्ट के ध्येय वाक्य संस्कृत में ही है। दूरर्शन-सत्यम् शिवम् सुन्दरम् भारत सरकार-सत्यमेवजयते, भारतीय प्रशासिनक सेवा अकादमी-योगःकर्मषु कौशलम, श्रम मंत्रालय-श्रमेजयते,आॅलइण्डिया रेडियांे-सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय, थलसेना-सेवा अस्माकम धर्माः, भारतीय ज्ञान विज्ञान अकामदमी हब्यर्भिभगः सवितुर्वरवरेणयम, भारती तट रक्षक-व्ययम रक्षामाः, भारतीय जीवन बीमा निगम-योग क्षेम वहाम्यहम, तार विभाग-अहरनिशम सेवामहे, भारतीय प्रबन्धन संस्थान लखनऊ-सुप्रबन्धे राष्ट्रसमृधिः, भारतीय प्रबन्धन संस्थान बगलौर-तेजस्विनावधीतमस्तु, रूणकी-श्रमंम विना न किमपि साध्यम, आई.आई.टी.कानपुर-तमसो मा ज्योतिर्गमय सहित आति अनेक हजारों संस्थान जो देश के पुर्ननिर्माण में लगंे है सबका ध्येय वाक्य देववाणि संस्कृत में ही है। यह किसी व्यक्ति की सोची समझी रणनीति नही हो सकती। भारत के सपूतों द्वारा भारत के अन्तस को झकझोर कर देने वाले ध्यये वाक्य को आदर्श मानना देश को स्वाभाविक रूप से हिन्दुराष्ट्र की मान्यता देता है। गोरखपुर विश्वविद्यालय-आनोभ्रदाःक्रतवोविश्वत, अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान-शारीर माद्यमखलुधर्मसाधनं, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-ज्ञान विज्ञान विमुक्तये, सेन्ट स्टीफन काॅलेज दिल्ली-सत्यमेय विजयतेनाऋतम, कोलम्बों विश्वविद्यालय-बुद्धिः सर्वत्रब्राजते दिल्ली विश्वविद्यालय-निष्ठा धृतिः सत्यम, नैपाल सरकार-जननि जनमूभिश्चस्वर्गादपिगरियसी।
बात भारत के हिंदु राष्ट्र की कम ,बात भारत को कुत्सित ,षड़यंत्रकारी मुस्लिम राष्ट्र से बचाना भी है और इसका केवल एक विकल्प भारत हिन्दुराष्ट्र था,है और रहेगा भी।

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