श्रीरामजन्मभूमि पर बनाये गये विवादित ढांचे को 1992 में विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में हिन्दू समाज द्वारा ढहाये जाने के बाद पूरे देश और खास कर उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व की लहर दौड़ गयी थी। इस लहर से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव सर्वाधिक भयभीत थे। मुलायम ने हिंदुत्व के ताप को ठंढा करने के लिये 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम ने बसपा प्रमुख कांशीराम से गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का विजय रथ रोक दिया। मुलायम के साथ मुसलमान पूरी ताकत से जुटा, जाति का इमोशनल पैदा कर मुलायम ने यादव वोट बैंक को अपने साथ जोड़ लिया। बसपा से गठबंधन के चलते दलितों का एक मुश्त वोट कांशीराम ने दिलवा दिया। परिणामस्वरूप 1992 में सपा-बसपा गठबंधन से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बन गये। लेकिन यादव और मुसलमानों ने दलितों को कभी सम्मान नहीं दिया। यादव और मुसलमानों ने दलितों पर इतना अत्याचार बढ़ा दिया कि सामंती शक्तियां भी लजा गयीं। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा बसपा को हड़हपने के अभियान में मायावती बड़ी रोड़ा बन रही थी। मुलायम ने 1995 में राज्य अतिथि गृह में सपाई गुंडों द्वारा हमला करा दिया। किसी तरह मायावती की जान बची।सपा और बसपा का गठबंधन टूट गया। 2019 में अखिलेश ने फिर बसपा से गठबंधन किया। लेकिन उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। लोकसभा में उनकी सीटें 5 की 5 ही रह गईं। 2014 में भी सपा के 5 लोकसभा सांसद जीते थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुला था। 2019 में बसपा के लोकसभा में 10 सांसद जीत कर पहुंचे। 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव के लिये अखिलेश यादव वही दांव चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने ओम प्रकाश राजभर के दल भारतीय समाज पार्टी से समझौता किया था जिसका पूर्वांचल के राजभर बाहुल्य जिलों में उन्हें लाभ मिला।आजमगढ़, अम्बेडकर नगर, बस्ती में भाजपा का सूपड़ा साफ ही गया।बस्ती में भाजपा को केवल एक सीट मिली थी। बाकी चार सीट सपा ने जीता है। आजमगढ़ और अम्बेडकर नगर में भाजपा का खाता नहीं खुला।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर रावण और जयंत चौधरी से समाजवादी पार्टी का गठबंधन था। सपा के रणनीतिकार यूपी में जातीय वैमनस्यता पैदा करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।स्वामी प्रसाद मौर्य उसी प्रयोग में नित नये विवादित बयान दे रहे हैं।
बुधवार को लखनऊ में एक टीवी कार्यक्रम के दौरान अयोध्या हनुमानगढ़ी के महंथ राजूदास व तपसी छावनी के महंथ की स्वामी प्रसाद मौर्य से हुई भिड़ंत अखिलेश के राजनैतिक चाल की कामयाबी है। अखिलेश यादव भाजपा को क्षेत्रवार, जातिवार अलग-अलग आंचलिक मुद्दों पर भाजपा को घेरने की तैयारी में हैं। भाजपा नेता 2024 से पहले बुल्डोजर से उतरने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। लगता है कि भाजपा में छोटी-छोटी उपेक्षित जातियों को जोड़ने का क्रम थम सा गया है। प्रदेश भाजपा की नयी टीम बनने से पहले यूपी भाजपा के महामंत्री संगठन धरमपाल और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह बड़ी जातियों से घिर चुके हैं। संगठन में नये चेहरों को जोड़ने के नाम पर जिस तरह दलबदलुओं को वरीयता दी गयी वह 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिये नासूर बन गया था।जब स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्मपाल सैनी योगी आदित्यनाथ की सरकार से त्यागपत्र देकर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया था। तब पार्टी को अपने उपेक्षित पड़े वफादारों की याद आयी। भाजपा नेतृत्व अभी भी यदि सम्पन्न दलबदलुओं की चकाचौंध से नहीं उभरी तो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा 80 सीटें जितने के दावे का दम निकल जायेगा।विपक्षी रणनीतिकार भलीभांति जनते हैं कि भाजपा यदि यूपी में घिरी तो मोदी का तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का लक्ष्य कठिन हो जायेगा।