जनाधार वाले नेताओं का पर कतर के यूपी में 80 सीट कैसे जीतेगी भाजपा?
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ।
भारतीय जनता पार्टी लोकसभा 2024 की तैयारी में कूद पड़ी है। उसने उत्तर प्रदेश के सभी 80 सीटें जितने का लक्ष्य रखा है। 2019 पार्टी को 64 सीटें मिलीं थी। 2022 के विधानसभा चुनाव में आजमखान और अखिलेश यादव के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा रिक्त हो गयी थी। योगी सरकार में हुये उपचुनाव में ये दोनों लोकसभा सीट जीत कर भाजपा ने अपनी संख्या 66 कर लिया है। वर्तमान में उसके चार लोकसभा सदस्य भाजपा के लिये मुसीबत बनते दिख रहे हैं। पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी तो 2019 के बाद से ही खरी-खरी बोलने लगे थे। उन्होंने बेरोजगारी, मंहगाई, किसानों के आत्महत्या और आय दोगुना करने, वन रैंक वन पेंशन के अलावा अनेक जनहित के सवाल उठाये। जो भाजपा नेतृत्व को खटकने लगा। उनकी आड़ में उनकी मां और सुल्तानपुर की सांसद मेनका गांधी का भी अपमान किया गया। वरुण खून का घूंट पीकर रह गये। वरुण गांधी को भाजपा महासचिव के पद से हटाया गया। उनकी मां और उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से मुक्त कर दिया गया। लखीमपुर खीरी में आंदोलन कर रहे किसानों की जिनविन मांग के समर्थन में जब वरुण गांधी खड़े हुए तो पार्टी के भीतर इसे अनुशासनहीनता सिद्ध करने की हर कोशिश हुई। 2014 से पहले से ही वरुण गांधी अपना वेतन नहीं लेते। उन्होंने अपने निधि से कई जिलों में गरीबों का घर बना कर उन्हें चाबी सौंप कर गरीब के निजी मकान होने की सोच को अंकुरित किया। बाद मोदी सरकार उनके कई मॉडल कार्य को अपनी सरकारी योजनाओं में जोड़ा।सात बार की सांसद मेनका गांधी अपने जीवन का सबसे परिश्रमी कार्यकाल पूरा कर रही है।वह सुल्तानपुर में जिस तरह प्रवासरत हैं उससे पार्टी के भीतर और बाहर उनके विरोधियों की होश ठिकाने लग गयी है।
स्वामी प्रसाद मोर्य सपा के असामी!
तीसरी सपा नेता पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी व बदायूं से सांसद संघ मित्रा मौर्य हैं। वह विधानसभा चुनाव 2022 में ही पड़रौना सीट पर सपा प्रत्याशी व अपने पिता स्वामी प्रसाद मौर्य के चुनाव क्षेत्र में सक्रिय रह कर भाजपा नेतृत्व को संदेश दे चुकी हैं कि पिता से बड़ी पार्टी नहीं है। भाजपा के लोग जुबानी तौर पर भारतीय जनता पार्टी को ऊनी मां बताते रहते हैं। जब से स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा की योगी सरकार पार्ट-1 से त्यागपत्र देकर सपा का दामन थामा तभी से उनकी बेटी व सांसद संघमित्रा मौर्य भाजपा शीर्ष नेतृत्व के निशाने पर हैं। बदायूं में उनका समीकरण और मजबूत हो गया। प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी जाति में सबसे ज्यादा पकड़ रखते हैं। उनके खिलाफ भाजपा नेतृत्व मजबूत स्थानीय नेता खोज रही है जो शायद अभी तक नहीं मिल पाया है। सूत्रों की माने तो भाजपा वहां से अभी तक कोई मजबूत कैडर न मिलने से निराश है।अब भाजपायी सपा के अलावा सपा-बसपा का कद्दावर विद्रोही नेता खोज रहे है।
चौथा नाम भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष व कैसरगंज से सांसद बृजभूषण शरण सिंह का जुड़ गया है। उनके ऊपर देश के चोटी के पहलवान यौन शोषण का आरोप लगाया है। केंद्र सरकार के खेल मंत्रालय द्वारा उनके ऊपर दबाव डालने के बावजूद वह कुश्तीसंघ के अध्यक्ष पद से अभी तक उन्होंने इस्तीफा नहीं दिये है। इस्तीफा मांगने की बहुत कोशिश हुई पर वह हर जांच को तैयार बता कर न्यायालय से न्याय तक कि बात करते हुए आरोप लगाने वाली पहलवान के विरुद्ध दिल्ली में ही मुकदमा पंजीकृत करवा दिया।भाजपा के कुछ नेता इसे अनुशासनहीनता के दायरे में घसीट रहे हैं।बृजभूषण शरण सिंह ने साफ-साफ कह दिया है कि न वह डरने वाले हैं और न झुकने वाले हैं।उनके समर्थकों का दावा है कि बृजभूषण सिंह न्यायालय में लड़ कर बेदाग साबित होंगे।
लक्ष्य 80 को प्राप्त करने की मार्ग में भाजपा के अपने चार खुद के सांसद चुनौती बनते दिख रहे हैं। भाजपा के चार सांसद अभी तक अपनी पार्टी के लिये खतरा बनते देखे जा रहे हैं। इन चारों में एक समानता यह है कि इनका पार्टी से टिकट काटने के बाद भी भाजपा इन्हें संसद में आने से रोक पायेगी यह कहना तो बहुत दूर धरातल पर ऐसा सोचना भी आसान नहीं है।