जौनपुर।
लोक आस्था का पर्व डाला छठ षुक्रवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय होता है। छठ पर्व संतान की सुख-समृद्धि व दीर्घायु की कामना के लिए सूर्यदेव और षष्ठी माता की पूजा-अर्चना की जाती है। व्रती लोग स्नान कर नए वस्त्र पहनकर पूजा के पश्चात चना, दाल, कद्दू की सब्जी का सेवन करेंगे। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह छठ त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस व्रत में महिलाएं तीन दिन तक उपवास रखती हैं और सूर्य भगवान की पूजा करती हैं। पर्व के तीसरे दिन मुख्य पूजा छठ माता की होती है। आज से प्रारंभ हुए छठ महापर्व के तहत कल यानी शनिवार को खरना होगा। व्रती महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखेंगी। शाम के समय खरना पूजन करेंगी। चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर उसका प्रसाद ग्रहण करेंगी। ठेकुआ बनाकर उसका प्रसाद कुल देवता और छठ मइया को अर्पित किया जाएगा। छठ मईया का अखंड दीप घरों में जलाकर मनौती की जाएगी।
मान्यता है कि खरना के बाद से ही षष्ठी मइया का घर में आती हैं। 30 अक्टूबर को नदियों और पोखरों के विभिन्न घाटों पर व्रती लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगे। इसी क्रम में 31 अक्टूबर को उदित होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का पारण होगा। पर्व को लेकर हर घर में उत्साह का माहौल है। छठ मईया की पूजन सामग्री की साफ-सफाई और प्रसाद बनाने की तैयारी पूरी हो गयी है। महिलायें व्रत का सामान खरीदने के लिए बाजारों में पहुंची और सूप सहित अनेक प्रकार के सामानों की खरीददारी की। उधर नगर पालिका ने भी नगर के हनुमान घाट एवं पूजन का अर्घ्य देने वाले घाटों पर सफाई और अन्य व्यवस्था का इन्तजाम किया है
। पौराणिक राणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद था। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया।
। पौराणिक राणिक कथा के अनुसार, एक राजा था जिसका नाम प्रियंवद था। राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया।
यह यज्ञ महर्षि कश्यप ने संपन्न कराया और यज्ञ करने के बाद महर्षि ने प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रुप में ग्रहण करने के लिए दी। यह खीर खाने से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। यह देख राजा बेहद व्याकुल और दुखी हो गए। राजा प्रियंवद अपने मरे हुए पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे। इस समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। देवसेना ने राजा से कहा कि वो उनकी पूजा करें। ये देवी सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं। यही कारण है कि ये छठी मईया कही जाती हैं। जैसा माता ने कहा था ठीक वैसे ही राजा ने पुत्र इच्छा की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। यह व्रत करने से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है।