लखनऊ
एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में ऐसी ऐसी हस्तियॉं उपस्थित थी जिन्होंने गौरवपूर्ण ढंग से यह बताया कि भारत मे जितने भी जनजातीय समूह हैं वे सब हिन्दू हैं। ऐसे ही वक्ताओं में शामिल थे इस सत्र के अध्यक्ष राजस्थान प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अपर कलेक्टर एवं वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष श्री रामचन्द्र खराड़ी। उन्होंने कहा मैं भील हूँ, मैं हिन्दू हूँ। विदेशियों को जन जातीय लोगों का जो चित्र दिया गया वह विचित्र है। अपनी सेवाकाल की कुछ घटनाओं का उन्होंने जिक्र किया। यह सत्य है कि भारत का पूरा जनजातीय समाज हिन्दू है। अंग्रेजों ने व्यवस्थित तरीके से भारतीय समाज में भेदभाव का ज़हर इतना घोल दिया कि वनवासी भी भ्रमित होने लगे। जबकि सच्ची बात यह है कि वनवासी भारत के समाज और संस्कृति के संरक्षक हैं। इस दौर में ऐसे विषयों को प्रचारित किया जा रहा है जिससे वनवासी/जनजातीय वर्ग को हिंदुओं से अलग किया जाय। 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस मनाने के पीछे भी समाज मे एक और दरार डालने का प्रयास है। उन्होंने कहा जिन लोगों ने औपनेशिक काल मे मूल निवासियों की हत्याएं की, उन्हें दरबदर किया वे अब मूल निवासी दिवस मॉन रहे हैं। श्री खराड़ी ने बताया कि दुनिया में जनजातीय लोगों की संख्या 43 करोड़ है। इनमे से 25 प्रतिशत लोग (लगभग साढ़े दस करोड़ लोग) भारत में निवास करते हैं। उन्होंने बताया भारत की सीमाओं पर, भारत के पर्वतीय व वन क्षेत्रों में निवास करनेवाले, नदियों के किनारे बसने वाले सभी जनजाति के लोग इसी धरती के हैं, कहीं इधर उधर से नही आये। ये सभी हिन्दू हैं। जिन्हें बांटने के बड़े प्रयास अंग्रेजों ने खूब किये। अंग्रेज़ी शासनकाल की जनगणना में भी जन जातिवर्ग को अलग दिखाया जाने लगा था। स्वतंत्र भारत में 1951 की जनगणना से उनका धर्म हिन्दू लिखा जाने लगा। इन वनवासियों को अनेक नामों से दुनिया भर में जाना जाता है। कुछ एक हैं- एबोरिजिनल, इंडिजिनियस, ट्राइब, स्वदेशी, वनवासी, आदिवासी, गिरिजन, मूल निवासी और जनजाति आदि। भारत मे 705 जनजातियां हैं। इनमे से कुछ के नाम हैं- कोल, भील, संथाल, मुंडा, सोरेन, हो, बैगा, सहरिया, पैंका, जुआंग, उरांव, भूमिज, मीणा, गरासिया आदि।
श्री खराड़ी ने बताया कि त्रेतायुग में भगवान रामचंद्र जी की जिन लोगों ने सहायता की वे वनवासी लोग ही थे। वानर कोई बंदर नही था बल्कि वानर का अर्थ है वन में निवास करने वाला नर अर्थात वनवासी। उन्होंने रामायण और महाभारत कालीन अनेक वनवासी राजाओं का उल्लेख किया जिन्होंने लंका विजय में भगवान राम का साथ दिया अथवा कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध मे भाग लिया। उस विवरण को भी जानिए कि अनेक वनवासी महिलाओं का विवाह हस्तिनापुर राजघराने से हुआ। मुगलों के आक्रमण से हिन्दू समाज की रक्षा करनेवाले महाराणा प्रताप की सेना में आदिवासी भील थे। सिकंदर जब भारत को लूटने आया था तो भारत की सीमा पर उस समय सबसे पहले जनजातीय राजा ने उसे रोका था। छः माह तक सिकंदर को आगे नही बढ़ने दिया था। अंग्रेजों के साथ भारत की वनवासी जाति के लोगों ने 1857 से पहले संघर्ष करना शुरू कर दिया था। अपने अधिकारों की रक्षा के लिए 1766 में चुआड़ विद्रोह, 1778 में नग्रेज़ों के विरुद्ध छोटा नागपुर में विद्रोह, 1784 में तिलका माझी विद्रोह,.... आदि लगभग 50 विद्रोह जनजाति के समाज ने किए। यह संख्या किसी समुदाय विशेष के योगदान में सर्वाधिक है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करनेवाले नायकों के नाम उहोनें बताए। कुछ प्रमुख नाम है- निरंग फिदु, सिद्धू-कान्हा, भागोजी नायक, बिरसा मुंडा, सीता राम राजू, रानी गैदींनल्यू आदि।
अंग्रेज़ी शासन काल मे जनजाति के लोगों को अपराधी घोषित कर दिया गया था। यह समाज 114 वर्षों तक इस पीड़ा को ढोता रहा है। 1950 में भारतीय संविधान प्रभावी होने पर वह पीड़ा मिटी। सोचने की बात यह है कि वैश्वीकरण के दौर में दुनिया एक गाँव बन रही है। जिस भारत ने बसुधैवकुटुम्बकं की भावना को दुनिया त्यक पहुंचाया, इस देश में लोग समाज में भेद बढ़ाने में लगे हुए हैं। अंग्रेज़ी शासनकाल में लेखकों ने और भारतीय इतिहासकारों ने जनजातीय समाज के योगदान को प्रतिष्ठित करने की बजाय उन्हें हीन बताने की कोशिश की है।
आदिवासी लोग सीमाओं के रक्षक हैं। वे भारतीय संस्कृति के भी रक्षक हैं। अंग्रेजों ने ईसाई मिशनरियों को सुविधाएं देकर आदिवासियों में जबरदस्त धर्मांतरण करवाया है। जिनलोगों ने धर्म भी बदला, हैं तो वे भारत के ही। वे निकले तो हिन्दू समाज से ही। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरसिम्हा के कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा तैयार किये गए प्रस्ताव पर भारतीय प्रतिनिधि के हस्ताक्षर होने थे, जिसमें इंडिजिनियस (स्वदेशी या मूल निवासी) की परिभाषा दी गई थी। वनवासी कल्याण आश्रम को जब यह पता चला तब आश्रम के बड़े कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिले और उन्हें असलियत समझाई। इसके परिणाम स्वरूप भारतीय प्रतिनिधि श्री मल्होत्रा ने संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से पहले लिखा कि भारत के आदिवासी सब भारतीय मूल के हैं वे अन्यत्र से नही आये, बाकी प्रस्तव पर सहमत।
श्री रामचन्द्र खराड़ी ने कहा कि जब छोटे से राज्य सिक्किम के जनजातीय लोग भारत मे भारत विरोधी नारों पर चिंता प्रकट करते हैं और दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश में युवा तिरंगा फहराते हैं तब अनुभव करें कि इस समाज मे कितना राष्ट्र प्रेम है। हमे गर्व है जन जातीय समाज मे सनातन धर्म शुद्ध रूप में जीवित है।