जौनपुर।
मछलीशहर लोकसभा सीट से पूर्व सांसद उमाकांत यादव को जीआरपी सिपाही हत्याकांड में कोर्ट ने सोमवार को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। 27 साल पहले दिनदहाड़े हुई वारदात में उमाकांत ने अपने साथियों के साथ मिलकर ताबड़तोड़ फायरिंग कर जीआरपी कॉन्स्टेबल को मौत के घाट उतार दिया था। कोर्ट ने गवाहों और सबूतों के आधार पर उमाकांत यादव समेत सात लोगों को सजा सुनाई है। कोर्ट ने सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। सोमवार को सुनवाई के दौरान आज़मगढ़ से विधायक और उमाकान्त के बड़े भाई रमाकांत यादव भी मौजूद रहे। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कोर्ट संख्या 3 में सोमवार को जज शरद कुमार त्रिपाठी ने सजा के मामले पर आधे घंटे बहस सुनी। इसके बाद जज शरद कुमार त्रिपाठी ने कैपिटल जजमेंट 4 बजे तक के लिए सुरक्षित रख लिया। इसके बाद उमाकान्त यादव अन्य आरोपियों के साथ पुलिस अभिरक्षा में कचहरी परिसर में वकील के चौम्बर में चले गए। इस दौरान मीडिया के सामने मुस्कुराते हुए फ़ोटो भी खिंचवाई। शनिवार को जज ने फैसला सुरक्षित रख लिया। ज्ञात हो कि 4 फरवरी 1995 को जौनपुर के शाहगंज स्टेशन पर दो पक्षों में विवाद हो गया। जीआरपी चौकी को सूचना दी गई कि प्लेटफार्म 1 पर बेंच पर बैठने को लेकर दो पक्षों के बीच विवाद हो गया है। उनमें से एक व्यक्ति खुद को विधायक उमाकांत यादव का ड्राइवर राजकुमार बता रहा था। कहासुनी हुई तो ड्राइवर ने जीआरपी के सिपाही रघुनाथ सिंह को थप्पड़ जड़ दिया। अन्य सिपाहियों की मदद से राजकुमार को जीआरपी चौकी में लाकर बन्द किया गया। किसी ने इस बात की सूचना उमाकान्त यादव को दी। आरोप है कि असलहे से लैस होकर उमाकान्त अपने गनर बच्चूलाल, जवान सूबेदार, धर्मराज, महेंद्र और सभाजीत के साथ पहुंच गए। इन सभी के हाथों में रिवॉल्वर, कार्बाइन रायफल और देसी तमंचा था। जीआरपी लॉकअप के सामने उमाकान्त ने सभी को ललकार कर गोलियां चलाने को कहा। इसके बाद स्टेशन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गयी। इस दौरान भगदड़ और दहशत मच गई।फायरिंग की चपेट में आने से जीआरपी कॉन्स्टेबल अज़य सिंह ने मौके पर दम तोड़ दिया। वहीं गोली लगने से सिपाही लल्लन सिंह और रेलवे कर्मचारी निर्मल और यात्री भरत लाल गंभीर रूप से घायल हो गए। इस दौरान उमाकान्त अपने साथी को लॉकअप से निकाल कर फरार हो गए। कॉन्स्टेबल रघुनाथ सिंह ने घटना को लेकर एफआईआर दर्ज कर कराई थी। पुलिस ने हत्या, हत्या के प्रयास सहित 10 गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। इस मामले में छानबीन शुरू की गई। इसकी विवेचना सीबीसीआईडी को भी सौंपी गई।जीआरपी कॉन्स्टेबल अज़ाय सिंह की हत्या का मामला कोर्ट में 27 साल चला। मामले में दौरान लगभग 598 बार सुनवाई हुई। सरकारी अधिवक्ता लाल बहादुर पाल और सीबीसीआईडी के सरकारी वकील मृत्युंजय सिंह ने इस मामले में 19 गवाहों को भी पेश कराया। गवाही के दौरान कांस्टेबल लल्लन सिंह पक्षद्रोही घोषित हो गया। आरोपित उमाकांत समेत 7 के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 बलवा, धारा 148 घातक हथियारों से युक्त होकर बलवा, धारा 225 आरोपित राजकुमार को विधि पूर्ण अभिरक्षा से छुड़वाना, धारा 302 हत्या ,धारा 307 हत्या का प्रयास ,धारा 332 लोक सेवक को चोटे पहुंचाना, धारा 333 गंभीर चोटे पहुंचाना, धारा 427 रेलवे स्टेशन के कमरों के दरवाजे फायर कर नष्ट करना, धारा 7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट में अंधाधुंध फायरिंग करके अफरा तफरी मचाना,इसके अलावा आरोपित राजकुमार पर धारा 224 में विधि पूर्ण अभिरक्षा से भाग निकलने की धाराओं में 13 फरवरी 2007 को अपर सत्र न्यायाधीश की अदालत में आरोप तय हुआ था।