श्रीकृष्ण प्रेम मंें पागल बनोगे तो शांति मिलेगी-स्वामी राघवाचार्य
सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा
बस्ती ::उत्तरप्रदेश
भोग भक्ति में बाधक है। बिना वैराग्य के भक्ति रोती है। परमात्मा जिसे अपना मानते हैं उसे ही अपना असली स्वरूप दिखाते हैं। मनुष्य परमात्मा के साथ प्रेम नहीं करता इसीलिये ईश्वर का अनुभव नहीं कर पाता। श्रीकृष्ण प्रेम मंें पागल बनोगे तो शांति मिलेगी। सब साधनों का फल प्रभु प्रेम है। यह सद्विचार यह सद् विचार जगत गुरू स्वामी राघवाचार्य जी महाराज ने शिव नगर तुरकहिया में भाजपा जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल के आवास पर आयोजित 7 दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के ंतीसरे दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
परमात्मा के यश कीर्तन और भक्ति महिमा का विस्तार से वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि सच्चे सदगुरू का कोई स्वार्थ नहीं होता। सतसंग से संयम, सदाचार, स्नेह और सेवा के भाव का विस्तार होता है। निरन्तर जप से जन्म कुण्डली के ग्रह भी सुधर जाते हैं।
भक्ति को सर्वगुणों की जननी बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि प्रथम स्कन्ध अधिकार लीला है। भागवत शास्त्र मनुष्य को सावधान कर काल के मुख से छुडाता है। जो सर्वस्व भगवान पर छोड़ते हैं उनकी चिन्ता स्वयं भगवान करते हैं। मन के गुलाम मत बनो, मन को गुलाम बनाओ, जगत नहीं बिगडा है, अपना मन बिगडा है। परीक्षित राजा ने मन को सुधार लिया तो उन्हें शुकदेव जी मिल गये। भगवान योगी भी हैं और भोगी भी हैं किन्तु जीव भोगी है, योगी नहीं।
भक्त प्रहलाद, हिरण्यकश्यप आदि के अनेक उदाहरण देते हुये महात्मा जी ने कहा कि प्रभु भजन में आनन्द आये तो भूख प्यास भूल जाती है। मानव जीवन का उद्देश्य केवल धन संग्रह नही है। धर्म मुख्य है। धन को धर्म की मर्यादा में रहकर ही प्राप्त करना चाहिये। जगत में दूसरों को रूलाना नहीं, खुद रो लेना, रोने से पाप जलता है।
भाजपा जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल , माता श्यामा देवी ने विधि विधान से परिजनों, श्रद्धालुओं के साथ व्यास पीठ का वंदन किया। श्रद्धालु भक्तों अरविन्द पाल, आलोक सिंह, गणेश नारायण मिश्रा, प्रत्युष विक्रम सिंह, अरविंद श्रीवास्तव, आर. के. पाण्डेय, अखण्ड पाल,सुधाकर पाण्डेय, ब्रह्मानंद शुक्ल, अखण्ड प्रताप सिंह, जान पाण्डेय, अवनिश शुक्ल, सतीश सोनकर, चंद्र शेखर मुन्ना, गिरीश पाडेय आदि ने भागवत कथा का रस पान किया।
परमात्मा के यश कीर्तन और भक्ति महिमा का विस्तार से वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि सच्चे सदगुरू का कोई स्वार्थ नहीं होता। सतसंग से संयम, सदाचार, स्नेह और सेवा के भाव का विस्तार होता है। निरन्तर जप से जन्म कुण्डली के ग्रह भी सुधर जाते हैं।
भक्ति को सर्वगुणों की जननी बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि प्रथम स्कन्ध अधिकार लीला है। भागवत शास्त्र मनुष्य को सावधान कर काल के मुख से छुडाता है। जो सर्वस्व भगवान पर छोड़ते हैं उनकी चिन्ता स्वयं भगवान करते हैं। मन के गुलाम मत बनो, मन को गुलाम बनाओ, जगत नहीं बिगडा है, अपना मन बिगडा है। परीक्षित राजा ने मन को सुधार लिया तो उन्हें शुकदेव जी मिल गये। भगवान योगी भी हैं और भोगी भी हैं किन्तु जीव भोगी है, योगी नहीं।
भक्त प्रहलाद, हिरण्यकश्यप आदि के अनेक उदाहरण देते हुये महात्मा जी ने कहा कि प्रभु भजन में आनन्द आये तो भूख प्यास भूल जाती है। मानव जीवन का उद्देश्य केवल धन संग्रह नही है। धर्म मुख्य है। धन को धर्म की मर्यादा में रहकर ही प्राप्त करना चाहिये। जगत में दूसरों को रूलाना नहीं, खुद रो लेना, रोने से पाप जलता है।
भाजपा जिलाध्यक्ष महेश शुक्ल , माता श्यामा देवी ने विधि विधान से परिजनों, श्रद्धालुओं के साथ व्यास पीठ का वंदन किया। श्रद्धालु भक्तों अरविन्द पाल, आलोक सिंह, गणेश नारायण मिश्रा, प्रत्युष विक्रम सिंह, अरविंद श्रीवास्तव, आर. के. पाण्डेय, अखण्ड पाल,सुधाकर पाण्डेय, ब्रह्मानंद शुक्ल, अखण्ड प्रताप सिंह, जान पाण्डेय, अवनिश शुक्ल, सतीश सोनकर, चंद्र शेखर मुन्ना, गिरीश पाडेय आदि ने भागवत कथा का रस पान किया।