मजदूरों के पास पेट पालने का संकट

 


सहायता करने से ही बच सकेगा निर्बल वर्ग
मजदूर और रोज कमाने खाने वाले संकट में
जौनपुर। 
दूसरी बार विस्तारित और विनाशकारी साबित हो रहे कोरोना महामारी के दौरान गरीबों की मदद करने को कोई आगे नहीं आ रहा है। चाहे वह स्वयंसेवी संस्थायें , समाजसेवी तथा धनी लोग हो अथवा जनप्रतिनिधि हो।  अभी तक उक्त माहनुभाव जो निर्धन समाज के लिए खुद से सहयोग कर विगत कोरोना काल में राहत पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायें थे। उन्हे एक बार फिर आगे आने की जरूरत है। जनप्रतिनिधि तो सरकारी धन से आक्सीजन प्लांट का भूमि पूजन कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे है। जबकि सरकार भी इस बार निर्बल और असहाय वर्ग के लिए कुछ विशेष नहीं कर रही है। कोटे के माध्यम से पांच किलो आनाज मिलने की बात कही जा रही है वह भी 20 मई के बाद ही संभव प्रतीत हो रहा है।
 लाक डाउन के दौरान अनेक प्रकार के छोटे व्यापारी और रोज कमाने खाने वालों के लिए फांकाकसी के हालात पैदा हो गये है। दुकाने बन्द होने से तमाम मजदूरों का धन्धा बन्द हो गया है। बिल्डिग मैटेरियल की दुकाने बन्द होने से राजगीर और हेल्पर भी हाथ पर हाथ रखकर बैठ गये है। पल्लेदारों को भी काम का टोटा पड़ गया है।
 ठेला खोमचा लगाने वाले भी कंगाली के दौर से गुजर रहे है। पटरी पर दुकान लगाने वाले भी घर बैठ गयेहै। कब तक ऐसे लोगों के घर में चूल्हा जलता रहेगा यह उनके समझ मेंनहीं आ रहा है। अगर ऐसे लोगों की मदद नहंी हुई तो कोरोना से भूख और सन्तुलित भोजन के अभाव में कुपोषण तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से भी मौत होने लगेगी। ऐसे हालत में सामथ्र्यवान लोगों को द्रवित होकर असहायों के दुख और भूख की समस्या के निदान के लिए गरीबों और मानव की सेवा ईश्वर की सेवा के कहावत को चरितार्थ करे तभी समाज का निर्बल वर्ग जीवित रह पायेगा। ज्ञात हो कि कारोना की पहली लहर के दौरान समाज के विभिन्न वर्ग आगे आकर भोजन का पैकेट, खाद्यान्न और देैनिक उपयोग के सामान का पैकेट अनवत वितरित कराया था और जिला प्रशासन ने भी अपील कर तमाम अधिकारी, कर्मचारी और विभागों तथा संपन्न लोगों से मदद पहुंचाया था परन्तु इस बार ऐसा न होना गरीबों के लिए निहायत कष्टकारी और दुःखदायी साबित हो रहा है।

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