पेरोल पाने वाले कैदियों की फिर से हो रिहाई- कोर्ट ने कोरोना संक्रमण पर दिया निर्देश!

  

नई दिल्ली, 8 मई। 
कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को जेलों पर कैदियों का भार कम करने को लेकर बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस को वर्तमान में समय में 7 साल से कम सजा के मामलों में यदि बहुत जरूरी नहीं है तो आरोपियों को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों से जेल में कैदियों को चिकिस्ता सुविधा सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया।

जेल में कैदियों में कोरोना वायरस के केस मिलने लगे हैं। पहले से क्षमता से अधिक कैदियों को रखे हुए भारतीय जेलों में कोरोना का खतरा बहुत ज्यादा है। इसे लेकर ही कोर्ट ने जेल में कैदियों की संख्या कम रखने के लिए ये आदेश दिया है।

सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों में गठित उच्चस्तरीय समितियों को कैदियों की कमजोर श्रेणियों की पहचान करने और उन्हें तत्काल आधार पर जारी करने का भी आदेश दिया है।

पेरोल पाने वाले कैदियों की फिर से हो रिहाई- कोर्ट



सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिया है कि जिन कैदियों को पिछले साल पेरोल दिया गया था उन्हें महामारी के चलते फिर से 90 दिन का फरलो दिया जाए।

कोर्ट ने कहा "उच्चाधिकार प्राप्त समिति को ताजा रिहाई पर विचार करने के अलावा, उन सभी कैदियों को रिहा करना चाहिए, जिन्हें 23 मार्च 2020 को पहले दिए गए हमारे आदेश के अनुसार उचित शर्तों के साथ रिहा किया गया था। इस तरह का अभ्यास मूल्यवान समय को बचाने के लिए अनिवार्य है।"

पिछले साल महामारी की शुरुआत के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 23 मार्च को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने को कहा था। इस कमेटी को कोविड-19 महामारी के दौरान जेल में भीड़भाड़ कम करने के लिए कैदियों को अंतरिम बेल दिए जाने, पेरोल और सात साल से अधिक समय से रह रहे विचाराधीन कैदियों को बाहर करने पर विचार करना था।

कैदियों और जेल कर्मचारियों के नियमित परीक्षण का आदेश

सर्वोच्च अदालत ने ताजा आदेश में कहा है कि कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। कैदियों और जेल कर्मचारियों का नियमित परीक्षण किया जाए और उन्हें तत्काल उपचार उपलब्ध कराया जाए।

आदेश में कहा गया "दैनिक स्वच्छता और स्वच्छता के स्तरों को बनाए रखना आवश्यक है। जेल में कैदियों के बीच घातक वायरस के फैलाव को रोकने के लिए उपयुक्त सावधानी बरती जाए।"

कुछ कैदी अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि और वायरस से संक्रमित होने की आशंका के मद्देनजर रिहा होने को तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने कहा "ऐसे असाधारण मामलों में अधिकारियों को कैदियों की चिंताओं पर विचार करने के लिए निर्देशित किया जाता है।


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