बस्ती
महाराणा प्रताप को उनके जयन्ती अवसर पर रविवार को याद किया गया। कोरना संक्रमण के खतरे और लॉक डाउन को देखते हुये सिविल लाइन्स स्थित प्रताप चौक पर महेश चन्द्र सिंह के संयोजन में आयोजित संक्षिप्त कार्यक्रम में उपस्थित जनों ने महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद उनके योगदान पर संक्षेप में चर्चा कर योगदान पर प्रकाश डाला।
एपीएन पी.जी. कालेज छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष अमन प्रताप सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे, जिनकी वीर गाथा अमर है। इनकी वीर-गाथा किस्से-कहानियों में सुनाई जाती है। इनकी वीरता से भारत भूमि गौरवान्वित है। वह तत्कालीन समय में एकलौते ऐसे वीर थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे।
डीसीएफ के पूर्व चेयरमैन धु्रवचन्द्र सिंह ने कहा कि महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान राज्य के मेवाड़ के राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह था और माता का नाम जयवंता बाई था। जबकि इनकी पत्नी का नाम अजबदे पुनवार था। इनके दो पुत्र थे, जिनका नाम अमर सिंह और भगवान दास था। महान योद्धा महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर सवारी करते थे, उसका नाम चेतक था जो कि महाराणा प्रताप की तरह ही योद्धा था। महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर योद्धा रहे। उन्होंने बाल्यकाल में ही युद्ध कौशल सीख ली थी। हालांकि, वीर और योद्धा होने के बावजूद वे धर्म परायण और मानवता के पुजारी थे। इन्होंने माता जयवंता बाई जी को ही अपना पहला गुरु माना था।
महेश चन्द्र सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप को धन-दौलत, गहनों से ज्यादा मान-सम्मान की फिक्र थी। प्रतिष्ठा के आगे उन्होंने कभी भी घुटने नहीं टेके। ऐसे महापुरूषों के स्मरण और उनके बताये मार्ग पर चलकर ही देश की एकता, अखण्डता अक्षुण्ण रहेगी। उनके विचारों से नई पीढी को अवगत कराये जाने की जरूरत है। कहा कि कोरोना संक्रमण काल में ऐसे महापुरूषों से प्रेरणा लेने की जरूरत है जिन्होने अनेक विपत्तियों का सामना करते हुये विजय हासिल किया।
समाजसेवी पंकज सिंह, ई. अक्षय प्रताप सिंह, डा. ऋषभ प्रताप सिंह, कमलेन्द्र प्रताप सिंह, दिव्यांजल सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप के साहस, शौर्य और समर्पण पर प्रकाश डालते हुये कहा कि महाराणा प्रताप भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे। जिस समय भारतीय जमीन पर मुगल शासक अकबर राज करने की कोशिश कर रहा था, उस वक्त अनेक राजाओं ने तो उनके आगे घुटने टेक दिए, लेकिन महाराणा प्रताप ने ऐसा नहीं किया। ऐसे महापुरूषों का जीवन संघर्ष नई पीढ़ी तक पहुंचे यह हम सबकी जिम्मेदारी है। उनके जीवन से प्रेरणा लेने के साथ ही नई पीढी को उनके विचारों, योगदान से परिचित कराने की आवश्यकता है। ऐसे महान महापुरूष को जयन्ती पर नमन् है। संक्षिप्त कार्यक्रम में सभी लोग मास्क पहने हुये थे।
एपीएन पी.जी. कालेज छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष अमन प्रताप सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे, जिनकी वीर गाथा अमर है। इनकी वीर-गाथा किस्से-कहानियों में सुनाई जाती है। इनकी वीरता से भारत भूमि गौरवान्वित है। वह तत्कालीन समय में एकलौते ऐसे वीर थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे।
डीसीएफ के पूर्व चेयरमैन धु्रवचन्द्र सिंह ने कहा कि महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान राज्य के मेवाड़ के राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह था और माता का नाम जयवंता बाई था। जबकि इनकी पत्नी का नाम अजबदे पुनवार था। इनके दो पुत्र थे, जिनका नाम अमर सिंह और भगवान दास था। महान योद्धा महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर सवारी करते थे, उसका नाम चेतक था जो कि महाराणा प्रताप की तरह ही योद्धा था। महाराणा प्रताप बचपन से ही वीर योद्धा रहे। उन्होंने बाल्यकाल में ही युद्ध कौशल सीख ली थी। हालांकि, वीर और योद्धा होने के बावजूद वे धर्म परायण और मानवता के पुजारी थे। इन्होंने माता जयवंता बाई जी को ही अपना पहला गुरु माना था।
महेश चन्द्र सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप को धन-दौलत, गहनों से ज्यादा मान-सम्मान की फिक्र थी। प्रतिष्ठा के आगे उन्होंने कभी भी घुटने नहीं टेके। ऐसे महापुरूषों के स्मरण और उनके बताये मार्ग पर चलकर ही देश की एकता, अखण्डता अक्षुण्ण रहेगी। उनके विचारों से नई पीढी को अवगत कराये जाने की जरूरत है। कहा कि कोरोना संक्रमण काल में ऐसे महापुरूषों से प्रेरणा लेने की जरूरत है जिन्होने अनेक विपत्तियों का सामना करते हुये विजय हासिल किया।
समाजसेवी पंकज सिंह, ई. अक्षय प्रताप सिंह, डा. ऋषभ प्रताप सिंह, कमलेन्द्र प्रताप सिंह, दिव्यांजल सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप के साहस, शौर्य और समर्पण पर प्रकाश डालते हुये कहा कि महाराणा प्रताप भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी थे। जिस समय भारतीय जमीन पर मुगल शासक अकबर राज करने की कोशिश कर रहा था, उस वक्त अनेक राजाओं ने तो उनके आगे घुटने टेक दिए, लेकिन महाराणा प्रताप ने ऐसा नहीं किया। ऐसे महापुरूषों का जीवन संघर्ष नई पीढ़ी तक पहुंचे यह हम सबकी जिम्मेदारी है। उनके जीवन से प्रेरणा लेने के साथ ही नई पीढी को उनके विचारों, योगदान से परिचित कराने की आवश्यकता है। ऐसे महान महापुरूष को जयन्ती पर नमन् है। संक्षिप्त कार्यक्रम में सभी लोग मास्क पहने हुये थे।