यज्ञ समस्त सृष्टि का मूल

बस्ती 

इस समय पूरी दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है। ज्यादातर लोग जीत रहे हैं पर कुछ इस जंग में कालकवलित भी हो रहे हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में आर्य समाज अपने गुरुकुलों में नित्य-निरंतर यज्ञ व योग के द्वारा कोरोना को पछाड़े हुए हैं। इसी क्रम में गत वर्ष 3 मई को विश्व यज्ञ दिवस घोषित किया गया था आज पुनः इसी दिन पर केंद्रीय आर्य समाज के *घर घर यज्ञ हर घर यज्ञ* के आह्वान पर प्रातः 9:30 बजे पूरे भारतवर्ष में आमजनमानस ने यज्ञ करते हुए फ़ोटो भेजे हैं। आर्य समाज बस्ती के प्रधान ओम प्रकाश आर्य ने बताया कि जिले में अधिकांश लोगों ने आर्य समाज के आह्वान पर अपने घर पर यज्ञ किया है। वास्तव में प्राचीन काल से ही यज्ञ एक दिनचर्या के रूप में घर घर में होता था। कालांतर में धीरे धीरे यह कम होता गया। 

आर्य समाज पुनः इस परिपाटी को समाज में स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। कहा कि यज्ञ ( हवन ) से प्रदूषण दूर होकर वातावरण शुध्द होता है वायुमण्डल में जो विषैले रोगाणु होते है उनका भी शमन होता है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए भी यज्ञ चिकित्सा कारगर सिध्द हो सकती है। यज्ञ चिकित्सा को वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणित किया है कि यज्ञ से शरीर के उर्जावान WBC बढ़ जाते है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाते है ,यज्ञ में प्रयोग करने के लिये कपूर ,आम या अन्य समिधाएं ,गाय का शुद्ध धृत ,हवन सामग्री से वातावरण शुद्ध व शरीर निरोगी व सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती है, यज्ञ खुले स्थान में भी कर सकते है और कमरे में भी अगर कमरे में करना हो तो खिडकियां खुली रहें ।
हवन में वेदमंत्रों के उच्चारण से शरीर मैं सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती है ।यज्ञ शाला  से निकलने वाली तरंगों से सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती है।वैज्ञानिकों ने यह भी संकेत दिये है कि यज्ञ में उपयोग की जाने वाली समिधाएँ वायरल वैक्टीरिया को निष्क्रिय करती है ,जैसे पलाश की समिधा नकारात्मक उर्जा का नाश करती है ,पीपल की समिधा भरपूर आक्सीजन देती है , शमी की समिधा मन को शान्ति देती है और मानसिक तनाव को दूर करती है,आम की समिधा पर्यावरण को  शुद्ध व वायरल वैक्टीरिया को निष्क्रिय करती है । इस वैश्विक महामारी में आयुर्वेदिक औषधियां सामग्री में मिलाकर घर घर यज्ञ करेंगें तो शरीरिक रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होगा तथा सकारात्मकता उर्जा शरीर में प्रवेश करेगी।
गरुण ध्वज पाण्डेय

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