पोसिटिविटी अनलिमिटेड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी का उदबोधन:
जो स्वजन हमारे अपने आत्मीय हमसे बिछुड़ गए ऐसे अपने जाने वाले का दुःख व भविष्य की चिन्ता सभी को है, उनको आत्मीय सांत्वना।
संघ के स्वयंसेवक अपनी पूरी क्षमता से सेवा में जुटे हैं। असमय जो चले गए वह तो मुक्त हो गए पर हमको तो परिस्थितियों से मुक़ाबला करना ह। शरीर को स्वस्थ रखते हुए मन को पोसिटिव रखना है।
मुख्य बात मन की है, मन यदि हार गया तो अपने बचाव को हम कुछ नहीं कर पायेंगे।
दुःख में भी आशा को जिंदा रखना है, समाज व विश्व सभी पर सन्कट है, अपनी चिंता न करते हुए सबकी चिंता रखनी है। रोज रोज स्वजनों के जाने के समाचार सुनकर भी मन को सशक्त रखना है। समाज की चिन्ता करते करते डॉ. हेडगेवार के माता पिता दोनों चले गए पर वह निराश होकर नहीं बैठे, मन को सशक्त रख समाज का कार्य और अधिक दृढ़ होकर, अधिक ताकत से समाज सेवा में जुटे।
आत्मा नया शरीर धारण करके आएगी ही अतः हम हार की चर्चा में विश्वास नहीं रखते विपरीत परिस्थितियों में कार्य। ब्रिटेन में चर्चिल का उदाहरण।
चुनोती को स्वीकार कर संघर्ष करना। तीसरे लहर की चर्चा से विचलित न होकर चट्टान से टकराने वाली लहर की तरह लड़ कर हराना है। समुद्र मंथन की तरह हलाहल से डरना नहीं अमृत निकलने तक सतत प्रयास। सारे द्वेष भूलकर एक टीम भावना से कार्य करना है।
समूह बनाकर कठिन परिस्थितियों से निकलना है, सामूहिकता का महत्व है।
अपने आप को ठीक रखना, धैर्य रखते हुए सजग व सक्रिय रहना है।
प्राणायाम व व्यायाम से तन व मन को स्वस्थ रखना है।
शुद्ध सात्विक आहार ग्रहण करना। जो भी आ रहा है उसे परीक्षा करके स्वीकार करना।
बेसिरपैर की बात न करना न समर्थन करना। आयुर्वेद की शक्ति को स्वीकार करना।
सावधानी रखकर आहार ग्रहण करना खाली न रहें व्यस्त रहें, बच्चों के साथ समय व्यतीत करें। दूरी मास्क स्वच्छता का पालन करना, सावधानी हटी दुर्घटना घटी, लक्षण महसूस होने पर भय के कारण अनावश्यक उपचार नहीं लेना व समय पर चिकित्सक के परामर्श से उपचार लेना, भय के कारण विलम्ब नहीं।
कोरोना पीडितो की सेवा व सहयोग करना। बच्चों के अध्ययन की चिन्ता न करें।
रोज कमाने वाले अपने सम्पर्क का कोई भी परिवार भूखा न रहे यह चिंता हमको करनी है। फ्रिज न चलाएं मटके का पानी पिएं। नियम, व्यवस्था व अनुशासन का पालन करते हए सबकी चिंता करनी है, कठिन जंग है लड़नी ही है ओर जीतनी ही है, परिस्थिति सक्षम बनाएंगी।
यश - अपयश का खेल चलते रहता है, सत्य के आचरण की हमारी संस्कृति है। अतः यश अपयश को पचा कर काम करें, यही परिस्थितियों की मांग है। विचलित हुए बिना कर्म और सेवा के पथ पर सतत चलना है।