नई दिल्ली
देश मे हर कीड़ी का सांख्यकीय आंकड़ा है बस प्रेस को को छोड़ कर.इसपर पहल किया है एक पत्रकार संगठन ने.नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स इंडिया भारत द्वारा मीडिया की मौजूदा हालत पर एक श्वेत पत्र तैयार करने की कवायद को एक अच्छी पहल कहा जा सकता है। श्वेत पत्र से मीडिया की सही तस्वीर सामने आ सकती है, क्योंकि अभी तक मीडिया के सम्बन्ध सही आंकडों का अभाव है। श्वेतपत्र के माध्यम से मीडिया में काम करने वाले कर्मचारियों के उत्पीड़न और शोषण की सही तस्वीर सामने आने की पूरी उम्मीद है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक लाख से ज्यादा अखबार और पत्रिकाओं का रजिस्ट्रेशन रजिस्ट्रार आॅफ न्यूज पेपर के यहां हो चुका है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा अखबार और मैगजीन हिन्दी में छपते हैं। सबसे ज्यादा अखबार-मैगजीन उत्तर प्रदेश में रजिस्टर्ड हैं। दूसरे नम्बर पर महाराष्ट्र का नाम आता है। यह बात अभी तक रहस्य ही है कि भारत में कुल कितने पत्रकार हैं?
किस राज्य में कितने पत्रकार है? प्रिंट, इलैक्ट्रानिक और साइबर मीडिया में कितने पत्रकार काम कर रहे हैं? किस तरह के पत्रकार काम कर रहे हैं? पत्रकारों को राज्यों की राजधानी, मंडल, जिला, तहसील और छोटे शहरों में कितना वेतन मिलता है? उनकी क्या-क्या दिक्कते हैं? कार्यालय में काम करने के दौरान क्या-क्या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? कितने घंटे काम करना पड़ता है? रात में काम करने वालों को अतिरिक्त अवकाश मिलता भी हैं या नहीं? पत्रकारों को तय समय से ज्यादा समय तक काम करना पड़ता है। इलैक्ट्राॅनिक चैनलों में तो ड्यूटी का कोई समय ही नहीं होता। पत्रकार कम आयु में ही मधुमेह और अन्य बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। पत्रकारों की औसत आयु भी अन्य व्यवसायों में काम करने के मुकाबले कम है। काम के दौरान होने वाले तनावों के कारण बीमारियों के शिकार होते हैं।
श्वेत-पत्र तैयार करने के लिए तीन महीने का समय तय किया गया है। इसके लिए मीडिया संस्थानों से निर्धारित फ्राॅर्मेट में सूचनाएं मांगी गयी हैं। यह श्वेत पत्र केन्द्र व राज्य सरकारों, प्रेस काउंसिल आॅफ इंडिया और प्रमुख मीडिया संस्थानों को सौंपा जाएगा