तंत्र की आपराधिक लापरवाही, प्राण वायु पर पहरा!

 

देश मे हेल्थ इमरजेन्सी की जरूरत आ पड़ी है ,स्वास्थ्य कर्मी सत्ताप्रतिष्ठान और प्रशासनिक सम्वेदन हीनता चरम पर है।पूरा देश एकही समस्या सर जूझ ने को चटपटा रहा है।स्वास्थ्य के लिए इतनी अफरातफरी कभी किस्से कहानी में भी नही देखने सुनने को मिली।छोटा बड़ा धनी निर्धन प्रभावी निष्प्रभावी पास एक ही रास्ते पर है और वह वह है अपना और अपनों का स्वास्थ्य।पूरा देश जहाँ देखिए वही त्राहिमाम कर रहा है ,उत्तर भारत मे तो कमोवेश यही नग्न तांडव कर हर जिले में मृत्यु अट्टहास कर रही है।हर व्यक्ति का परिजन ,स्वजन अंतिम यात्रा कर चुका है।देश का नीति आयोग फेल व स्तब्ध है।अस्पतालों से अनगिन अकारण लाशें निकल रही है।बताते है अंदर स्वास्थ्यकर्मी ठीक से वर्ताव भी नही कर कर रहे।ऐसा कोई नही जिसने अपना परिजन,स्वजन न खोया हो।सब छटपटा रहे है पर स्वयं का मौत से आसन्न साक्षात्कार सबको वापसी पर विवश कर दे रहा है।

अस्पतालों की व्यवस्था इतनी निरंकुश होगयी है कि कोई कुछ बोलने की स्थिति में नही है।दलाल अवसर का पूरा लाभ टीका, दवा,आक्सीजन अकूत दाम पर बेच रहे हैं, बस्ती मेडिकल कालेज के अस्पताल पर कथित संगठित गिरोहों द्वारा मरीजो के परिजनों के जेब पर डकैती डाली जा रही है।

यही हालत


देश में कोविड संकट के बीच अपनों की जान बचाने को रोते-बिलखते और दर-दर की ठोकर खाते लोगों की पीड़ा को देश की अदालतों ने संवेदनशील ढंग से महसूस किया है और सत्ताधीशों को आड़े हाथों लिया है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य सेवाओं की विफलता के बीच लोगों के जीवन रक्षक साधनों के अभाव में होने वाली मौतों को भारतीय राज्य के रूप में विफलता बताया है। 

अदालत ने कहा कि राज्य का दायित्व है कि वह व्यक्ति के जीवन के मौलिक अधिकार की रक्षा करे। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-12 के अनुसार राज्य के अवयवों के रूप में केंद्र व राज्य सरकारें, संसद, राज्य विधानसभाएं और स्थानीय निकाय आते हैं। लेकिन इस संकट की घड़ी में एक आम आदमी को राहत पहुंचाने में राज्य तंत्र विफल ही साबित हुआ है। हाल ही में दिल्ली व अन्य राज्यों में कोविड मरीजों की मौत की घटनाओं ने इस विफलता की पुष्टि ही की है।

 न्यायमूर्ति विपिन सांघी और रेखा पल्ली को एक ऐसे मरीज की मौत की पीड़ा ने उद्वेलित किया, जिसने अपने लिये आईसीयू बेड की मांग की थी, लेकिन ऑक्सीजन की प्रतीक्षा में दम तोड़ दिया। विडंबना ही है कि पूरे देश से बड़ी संख्या में कोविड मरीजों की ऑक्सीजन न मिलने से मौत होने की खबरें लगातार आ रही हैं जो तंत्र की आपराधिक लापरवाही को ही उजागर करती है। यह हमारे स्वास्थ्य सिस्टम की ही विफलता नहीं है, राज्य संस्था की भी विफलता है कि मरीज प्राणवायु की तलाश में मारे-मारे घूम रहे हैं और कहीं से उनकी मदद नहीं हो पा रही है। 

कोरोना उपचार में काम आने वाली दवाओं के वितरण में कोताही और कालाबाजारी का बोलबाला लोगों की मुसीबत बढ़ा रहा है। केंद्र व राज्य सरकारों से पूछा जाए कि पिछले एक साल से अधिक समय से देश को अपनी गिरफ्त में लेने वाले कोरोना संकट से निपटने के लिये समय रहते कदम क्यों नहीं उठाये गये।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी कोविड संकट के दौर में केंद्र की कोताही पर कई सख्त टिप्पणियां की और इस संकट से राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाकर जूझने को कहा। शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति डी.वी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव व ‍ रवींद्र भट की पीठ ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि अपनी मुश्किलों को सोशल मीडिया के जरिये व्यक्त करने वाले लोगों पर किसी कार्रवाई के प्रयास को न्यायालय की अवमानना माना जायेगा। 

उन्होंने कुछ राज्य सरकारों के ऐसे लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई की मंशा पर सवाल उठाये और कहा कि राज्यों की विफलता से उपजे आक्रोश को इससे हवा मिलेगी। कोर्ट ने चेताया कि सरकार व पुलिस नागरिकों को अपने दुख-दर्द सोशल मीडिया पर साझा करने के लिये दंडित करने का प्रयास न करे। कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्यों मरीजों को दवा व ऑक्सीजन के लिये दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। इसको लेकर शासन-प्रशासन को परिपक्व व्यवहार करने की जरूरत है। सरकार को संक्रमण में काम आने वाली दवाओं के आयात व वितरण को नियंत्रित करना चाहिए। 

साथ ही चेताया कि सूचना क्रांति के दौर में सोशल मीडिया पर लगाम लगाई तो फिर अफवाहों को ही बल मिलेगा। दूसरी तरफ प्रशासन व पुलिस के निचले स्तर पर ऐसे अधिकारों का दुरुपयोग आम लोगों के उत्पीड़न में भी किया जा सकता है। शासन-प्रशासन सख्ती का उपयोग करके अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के बजाय जनता से सूचना हासिल कर व्यवस्था सुधारने का प्रयास करे। अदालत ने माना कि संकट के दौरान सोशल मीडिया के जरिये सहायता व सूचना का समांतर तंत्र विकसित हुआ है जो एक मायने में प्रशासन का सहयोग ही कर रहा है। 

शासन-प्रशासन को 21वीं सदी के सूचना युग में 19वीं सदी के तौर तरीकों से समस्या से नहीं निपटना चाहिए। दरअसल, जनता को विश्वास में लेने से समस्या का समाधान तलाशने में मदद मिलेगी। विश्वास कायम होने से संकट से निपटने में आसानी होगी। जनता व सरकार का सहयोग ही समाधान निकालेगा। लोग तकलीफ में हैं, जिसे संवेदनशील ढंग से ही दूर किया जाना चाहिए

हे सबको बचाइए,मानवता औऱ उसका स्वास्थ्य पूरा खतरे में है।

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