बस्ती,
कोरोना की विभीषिका का चरम सर्वत्र है।सुरसा की जीभ कोरोना की जीभ से छोटी पड़ रही है, रोज अखबार,सोशलमीडिया आदि अप्रिय खबरों से अटे पट हैं, कही अल्पआयु कही दीर्घायु के प्रण पखेरु कोरोना डायन डसती जारही है।सत्ता औऱ सन्तरी सब बेबस सूखी आखों से आशय अंगभूत कर ॐ शांति के अतिरिक्त औऱ कुछ भी बोल नही पा रहे।
सबसे खराब हालत तो उन छोटे सरकारी कर्मियों की है जहाँ तबियत खराब होने पर अधिकारियों की उन्हें हिदायत है दवाख़ाकर काम चलाये।जाँच कदापि न कराएं।अन्यथा राज काज प्रभावित होगा और अनुशासन का डण्डा अलग से।छोटा कर्मचारी न अपनी जांच कराने को स्वतंत्र है और नही उसे आराम का नैतिक अधिकार।कईयों को में जान रहा हूं,उन्हें लगभग कोरोना के लक्षण हैं पर विभागीय दबाव मुँह बंद करने व कराने को मजबूर है।