सनातन धर्म उदया तिथि को क्यो मान्य करता है!

 


हिंदू धर्म में उदया तिथि को खास महत्व दिया गया है. ज्यादातर ज्योतिष उदया तिथि से शुरू होने वाले व्रत और त्योहार को मनाने की सलाह देते हैं, चाहे उस व्रत या त्योहार की तिथि एक दिन पहले ही क्यों न शुरू हो चुकी हो. उदया तिथि का मतलब है, जो तिथि सूर्योदय के साथ शुरू हो. हालांकि इस मामले में ज्योतिषियों के अलग-अलग मत हैं. जानिए इसके बारे में.

इस मामले में ज्योतिषाचार्य डॉ. अरबिंद मिश्र की मानें तो हिंदू धर्म के सारे व्रत और त्योहार हिंदू पंचांग के हिसाब से किए जाते हैं. पंचांग तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण से मिलकर बना कैलेंडर है. पंचांग में कोई भी तिथि 19 घंटे से लेकर 24 घंटे की हो सकती है. तिथि का ये अंतराल सूर्य और चंद्रमा के  कारण होता है.

ये तिथि चाहे कभी भी लगे, लेकिन इसकी गणना सूर्योदय के आधार पर की जाती है क्योंकि पंचांग के अनुसार भी सूर्योदय के साथ ही दिन बदलता है. ऐसे में जो तिथि सूर्योदय के साथ शुरू होती है, उसका प्रभाव पूरे दिन रहता है, चाहे बेशक उस दिन कोई दूसरी तिथि क्यों न लग जाए. जैसे मान लीजिए कि आज सूर्योदय के समय दशमी तिथि है और वो सुबह 10ः32 बजे खत्म हो जाएगी और एकादशी तिथि लग जाएगी, तो भी दशमी तिथि का प्रभाव पूरे दिन रहेगा और एकादशी का व्रत कल 25 मार्च को ही रखा जाएगा क्योंकि सूर्योदय के वक्त एकादशी तिथि होगी. ऐसे में 25 मार्च को चाहे दिन में द्वादशी क्यों न लग जाए, लेकिन पूरे दिन एकादशी तिथि का प्रभाव माना जाएगा.

हालांकि इस मामले में ज्योतिषाचार्य प्रज्ञा वशिष्ठ की अलग राय है. उनका मानना है कि उदया तिथि का हिंदू शास्त्रों में विशेष महत्व जरूर है, लेकिन हर त्योहार या व्रत उदया तिथि के हिसाब से नहीं किया जा सकता. कुछ व्रत और त्योहार काल व्यापिनी तिथि के हिसाब से भी किए जाते हैं. जैसे करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा होती है, ऐसे में ये व्रत उस दिन रखा जाएगा जिस दिन चंद्रमा का उदय चौथ तिथि में हो रहा है. ऐसे में अगर चौथ तिथि उदय काल में नहीं भी होती है और दिन में या शाम को लगती है, तो भी करवा चौथ उसी दिन रखा जाएगा क्योंकि करवाचौथ के व्रत में चतुर्थी के चांद की पूजा होती है.

 

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