आज का फैंसी आंदोलन,युवा व उसका भविष्य

 




"वर्तमान की युवापीढ़ी और फैंसी आंदोलन"


 

ओम् प्रियदर्शी.

 

वर्तमान में  भारतीय जनसंख्या की ४४ प्रतिशत युवावर्ग हैं जोकि पूरे नें  विश्व में सर्वाधिक गिना जा रहा है। एक समय चीन इस मामले   में आगे थाजिसने अपने इस युवा शक्ति का सही  उपयोग किया और  आज वह कृषिवाणिज्यसैन्य विज्ञान आदि हर क्षेत्र में  आगे है ।  राष्ट्र संघ  के आकलन के अनुसार चीन में क्रमशः वयस्कों की संख्या वृद्धि हो रही हैजिससे  उसकी  भविष्य में उसके विकासधारा को धीमी करवाएगा। पर भारत के लिए यह प्रातः काल जैसा है। २०५० में देश की ६० प्रतिशत जनसंख्या युवाओं  से भरा हुआ होगा जो हमारे लिए पुनः विश्वगुरु बनने के मार्ग प्रशस्त करेगा। हालांकि इस मार्ग को कंटकित करने का प्रयास भी शुरु हो चुका  है।

 

 

अतीत के पन्नों को खंगालने  से प्रतीत होता है कि यह एक चिराचरित और अविरत प्रक्रिया है जिसमे कांटा बन रहा शख्स हमेशा बदलते रहते हैं। तक्षशिला और नालंदा को ध्वस्त करके युवाओं की ज्ञान को सीमित  करना होया फिर मध्ययुगीय कुप्रथा और कर व्यवस्था में समेट कर उनका सामाजिक तथा आर्थिक पतन करवानाहमे पथभ्रष्ट करने का कोशिश सदैव जारी रहता है। कुछ लोगों के यह मानना है कि हमारे युवाओं के पास एकतादक्षता और नेतृत्व लेनेवाले उर्जा व क्षमता की कमी है। शायद वो लोग जेमस मिल् के इतिहास पुस्तकों में कैद रह गए हैं। महाराज पुरुसम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज तकभारतीय युवाओं ने बलिष्ठ नेतृत्व और एकजुटता की कई उदाहरण हमारे सामने  हैं। सन १८५७ में रानी लक्ष्मीबाई के एक आह्वान पर सहस्र युवतियों ने सशस्त्र स्वाधीनता संग्राम में उतर गए थे। 

 

 

भगत सिंहसुखदेवचंद्रशेखर जैसे युवकों रोकना अंग्रेजों  के लिए मुश्किल हो गया था। ना कोई विवेकानंद की प्रज्ञा को रोक पाया था ना सुभाष और सावरकर की क्रांतिकारी आग को। जब जब भारतीय युवा अपना धर्मन्याय व अधिकारों के लिए एकजुट हुआ हैतब उसने विजय हासिल करके ही विराम लिया है। परंतु पिछले कुछ सालों से यह राष्ट्रशक्ति का दुरुपयोग होने लगा है। हमारे युवापीढ़ी को पथभ्रष्ट करवाकर देश तथा राष्ट्रीय हित के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। प्रारंभ में अर्धसत्य कह कर एक विद्रोहात्मक वातावरण बनाया जाता था। किन्तु अब संपूर्ण मिथ्या और पोस्ट ट्रुथ का प्रयोग हो रहा है। अन्यथा  धर्म को अफ़ीम कहने वाले कुछ चाइना एजेंटों के के कहने पर राष्ट्रीय  राजधानी  क्षेत्र को नहीं जला दिया जाता।

 

 

आजकल की आंदोलन पहले की तरह स्वतः शुरु होने वाला तथा  स्वयंक्रिय नहीं रहा। राष्ट्र विरोधी तत्वों के द्वारा इसकी संरचनासंचालन और नियंत्रण किया जा रहा है।  प्रारंभ में  किसी  भी मुद्दे को लेकर  एक भावनात्मक  कहानी बनाया जाता है। उसमें  शब्दकोष से बाहर के शब्द और अश्लीलता का तड़का लगाकर  मीम तैयार होता है। फिर उसको  सोशल मीडिया   पर हैसटैग के साथ ट्रेंडिंग किया जाता है। जैसे कि आज की युवाओं को ऑनलाइन दुनिया में रहना ज्यादा पसंद हैं ऐसे में ये मीम और कहानियां उनके आवेगों व भावनाओं  को आसानी से आंदोलित कर लेता है। बिना कोई सबूत या सत्यता परीक्षण के इन झूठे कहानियों को  मिलते हैं करोड़ों लाइकशेयर और रिट्विट ।  सोशल मीडिया  पर सफलता प्राप्त करने से प्रोपेगांडा को टेलीविजन चैनलों की प्राइम शो  पर  भेजा जाता है। वहां टीआरपी के आस में बैठा  एंकर  और स्वघोषित बुद्धिजीवियों के सनसनीखेज  टिप्पणी से मुद्दें अधिक जटिल और तीब्र रूप ले लेती हैं।

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इसके बाद आंदोलन के लिए कोई प्रमुख सामाजिकधार्मिक तथा जातिवादी संगठन और विदेशी धन का व्यवस्था की  जाती है। हस्ताक्षर अभियान और नारा लगाने के लिए हमारे पास वयस्क विश्व विद्यालय विद्यार्थियों की कमी नहीं है। आंदोलन का स्थानसमयऔर प्रारंभिक आंदोलनकारियों की जुगाड़ करने के लिए क्राउड मैनेजमेंट एक्सपर्टकों नियुक्ति मिलती है। वे  आने  जाने से लेकर खानारहनामनोरंजन कार्यक्रम आदि सबका परिचालन करते हैं। आंदोलन के प्रति युवापीढ़ी को आकर्षित करने के लिए आंदोलन स्थलों पर फॉस्टफूडडीजेओपेन थिएटरस्टैंड अप कामेडी आदि आयोजन के साथ बॉलीवुड सेलिब्रिटीओं को आर्थिक निमंत्रण भेजा जाता है। अब तो ग्लोबल सितारों और तथाकथित युथ आइकन भी भारतीय आंदोलन में दिलचस्पी दिखाने लगे हैं। उनके एक पोस्ट भारत के युवाओं में खलबली मचा देती है।

 

तरुण क्रांतिनवजागरणसांस्कृतिक बसंत के आगमन ऐसे रोमांचक नामों के सहारे आंदोलन लंबे समय तक चलता है। साम्यवाद के भ्रमित करने वाले शब्द व  स्वर को आधुनिक शब्द छलावा में पेश  कर  कविता आवृत्ति होती है। बस किसी भी तरह देश की आंशिक जनसंख्या को प्रभावित करके मिथ्या प्रोपगंडा को सच्चाई में बदलने का कोशिश चालू रहता है। देश के संविधान के अनुसार लोकतांत्रिक उपाय में पूर्ण बहुमत से चुने हुए सरकार को उसी देश की युवावर्ग के माध्यम से गृहयुद्ध की धमकी मिलती है। क्षोभ के विषय यह है कि उक्त आंदोलन में प्रत्यक्ष सामिल होने वाला और उसके समर्थन में हर रोज सोशल मीडिया  पर पोस्ट डालने वाला युवक/युवती को प्रदर्शन के कारण पूछने से बोलते हैं "इतने लोग इकठ्ठे हुए हैं मतलब कुछ न कुछ तो जरूर होगा"!

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