डा समन्वय नंद
अनेक अनुसंधान व शोधों से स्पष्ट है कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने पर उनका सही बौद्धिक विकास होता है । उनके विचार करने व चिंतन करने की क्षमता में बढोत्तरी होती है । कोई भी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हो या फिर कोई भी ऐसा व्यक्ति जिन्होंने कोई मौलिक कार्य किया हो, सभी ने मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त की है । बच्चों को यदि प्राथमिक से ही विदेशी भाषाओं के जरिये पढाया जाता है तो उनमें विचार व चिंतन की क्षमता समाप्त हो जाती है और वे रट्टु बन जाचे हैं । ऐसे में वे परीक्षा में अच्छे अंक तो ला सकते हैं लेकिन कोई मौलिक कार्य नहीं कर सकते हैं । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बिदेशी भाषा में प्राथमिक शिक्षा बच्चों के मौलिक करने की क्षमता को समाप्त कर देता है ।
देश के मनिषी महात्मा गांधी के इस संबंध में विचार क्या थे, इस पर एक बार दृष्टि डालें ।
महात्मा गांधी कहते थे “ मेरा सुविचारित मत है कि अंग्रेजी की शिक्षा जिस रुप से हमारे यहां दी गई है, उसने अंग्रेजी पढे लिखे भारतीयों को दुर्वलीकरण किया है, भारतीय विद्यार्थियों की स्नायविक ऊर्जा पर जबरदस्त दबाव डाला है , और हमें नकलची बना दिया है ..... अनुवादकों की जमात पैदा कर कोई देश राष्ट्र नहीं बन सकता । ” (यंग इंडिया 27.04.2014)
गांधी जी ने कहा कि “ आज अंग्रेजी निर्विवादित रुप से विश्व भाषा है । इसलिए मैं इसे विद्यालय के स्तर पर तो नहीं विश्वविद्यालय पाठ्य़क्रम में वैकल्पिक भाषा के रुप में द्वितीय स्थान पर रखुंगा । वह कुछ चुने हुए लोगों के लिए तो हो सकती है , लाखों के लिए नहीं ..... यह हमारी मानसिक दासता है जो हम समझते हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम नहीं चल सकता । मैं इस पराजयवाद का समर्थन कभी नहीं कर सकता । ” ( हरिजन 25.08.1946)
वर्तमान में अंग्रेजी के समर्थन में राहुल गांधी जो तर्क दे रहे हैं उस समय भी पंडित नेहेरु जैसे अंग्रेजी के समर्थक उस प्रकार का तर्क देकर अंग्रेजी की वकालत करते थे ।
महात्मा गांधी ने कहा कि “ हम यह समझने लगे हैं कि अंग्रेजी जाने बगैर कोई ‘बोस ’ नहीं बन सकता । इससे बडे अंधविश्वास की बात और क्या हो सकती है । जैसी लाचारगी का शीकार हम हो गये लगते हैं वैसी किसी जपानी को तो महसूस नहीं होती ।” (हरिजन 9.7.1938)
गांधी जी ने कहा “ शिक्षा के माध्य़म को तत्काल बदल देना चाहिए और प्रांतीय भाषाओं को हर कीमत पर उनका उचित स्थान दिया जाना चाहिए । हो सकता है इससे उच्चतर शिक्षा में कुछ समय के लिए अव्यवस्था आ जाए, पर आज जो भयंकर बर्बादी हो रही है उसकी अपेक्षा वह अव्यवस्था कम हानिकर होगी । ”
महात्मा गांधी भारतीयता के प्रवल समर्थक थे । उनका स्पष्ट मत था कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढाने से ही उनका सही विकास हो सकता । उनमें नवाचार की क्षमता विकसित हो सकती । यदि उन्हें मातृभाषा के बजाय विदेशी भाषा में पढाया जाए तो उनकी समस्त ऊर्जा विदेशी अक्षर, विदेशी शब्द आदि सिखने में लगेगा । उनकी सृजनशीलता विकसित नहीं हो सकेगी । उसकी चिंतन की क्षमता विकसित नहीं हो सकेगी ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कुछ वर्ष पूर्व इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने के लिए अनुरोध किया था । संघ के प्रतिनिधि सभा का मानना था कि भाषा केवल संचार ही नहीं बल्कि संस्कृति व संस्कार की संवाहिका होती है । भारत एक बहुभाषी देश है । समुस्त भारतीय भाषाएं समान रुप से हमारे राष्ट्रीय व सांस्कृतिक अस्मिता को अभिव्यक्त करते हैं । यद्यपि बहुभाषी होना एक गुण है लेकिन मातृभाषा में शिक्षण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक होता है । मातृभाषा में शिक्षित विद्यार्थी अन्य भाषा को सहज रुप से ग्रहण कर पाता है ।
प्रारंभिक शिक्षण विदेशी भाषा में करने पर व्यक्ति अपने परिवेश, पंरपा, संस्कृति व जीवनमूल्यों से कट जाता है । पूर्वजों से प्राप्त होने वाले ज्ञान, शास्त्र साहित्य आदि से अनभिज्ञ हो जाता है और अपना परिचय खो देता है ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रस्ताव है । यह अत्यंत स्वागतयोग्य है । लेकिन इसका कैसे सही रुप से क्रियान्वयन होगा इस पर ध्यानप दिये जाने की आवश्यकता है ।