जब विचार और पैसा काम करना बन्द करदे तब विपक्ष सहानुभूति का ईंधन जलाता है! जब मकान बिकने पर दलाल को उसका कमीशन नही मिलता तब वह मकान को भुतहा घोषित कर देता है,किसान बिल उसी षड्यंत्र का शिकार होगयी है!


जब मकान बिकने पर दलाल को उसका कमीशन नही मिलता तब वह मकान को भुतहा घोषित कर देता है। किसान बिल उसी षड्यंत्र का शिकार हो गया है!

दुनिया भर में लोकतंत्र के रखवाले अमेरिका का लोकतंत्र संकट में है। ऐसा मैं नहीं कह रहा, ऐसा वहां की संसद में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों कह रहे हैं।

आज के संसद की बहस में जहां रिपब्लिकन पार्टी के अन्य संसद सदस्यों ने अपने मुखिया डोनाल्ड ट्रम्प का समर्थन करते हुए यह कहा की #पेनसेल्वेनिया में कुल जितने वोट डाले गये थे, गिनती के समय उससे 2200 वोट ज्यादा पाये गये। ध्यान देने वाली बात यह है की अकेले पेनसेल्वेनिया का रिजल्ट बदलने भर से अमेरिका का चुनाव परिणाम बदल सकता है। जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्यों का यह कहना है कि ट्रम्प केवल आरोप लगाने का काम कर रहे हैं जबकि कायदे से उनको अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिये।

ट्रम्प ने 2 दिन पहले उप राष्ट्रपति माइक पेंस को यह सलाह भी दे डाली की नये चुने हुए संसद सदस्यों को जिन पर वह आरोप लगा रहे हैं उनका सर्टिफिकेट रोक लें और परिणाम को अवैध घोषित कर दें, क्युंकि यह अधिकार उपराष्ट्रपति के पास अमेरिका संविधान द्वारा प्रदत्त है। लेकिन माइक पेंस इस तरह के अतिवाद पर न जाने वाले हैं और न ही गये। अन्तत: ट्रम्प और रिपब्लिकन समर्थक सड़क पर उतर आये, संसद को घेर लिया। जमकर तोड़ फोड़ की, सर्टिफिकेशन की पूरी प्रक्रिया को रोक दिया गया। बाद में बल प्रयोग करके लोगों को भगाया गया। इस घटना में एक महिला सहित चार लोगों की जान जाने की सूचना है।

अमेरिका में यह खेल भले अब ट्रम्प खेल रहे हों, पर यह पूरा खेल इसके पहले 2-2 साल के अंतर पर लगातार नीग्रो/ब्लैक लोगों को भड़का कर डेमोक्रेटिक खेलते रहे हैं। हाल ही में घटित "ब्लैक लाइफ मैटर" डेमोक्रेटिक पार्टी के उसी खेल का हिस्सा था। दरअसल अमेरिका में कम्युनिस्ट/लिबरल/जेहादी/ सेकुलर एजेंडे को ढ़ोने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी के ही लोग हैं। भारत के सापेक्ष समझना हो तो आप यह समझिये की कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी है, और #भाजपा_रिपब्लिकन_पार्टी। नीग्रो आबादी उसी तरह की असन्तुष्ट और बलवा प्रिय आबादी है जैसी भारत में मौलवी नियन्त्रित मुस्लिम आबादी है।


पूरी दुनिया में खेल वहीं चल रहा है। कम्युनिस्ट/ लिबरल/ जेहादी और सेकुलर एक ऐसे आबादी को पकड़ कर रखते हैं जो सर्वदा असन्तुष्ट हों, मूर्ख हों और बलवा प्रिय हों। इसी आबादी की असंतुष्टि को उसके मूर्खता के कारण हवा दी जाती है और फिर इनसे बलवा करवाया जाता है। इस बलवे से यह सदैव असन्तुष्ट आबादी अपने आप को प्रताड़ित बताती है और बहुमत से चुने हुए सरकार को तानाशाह बताती है।


यह खेल भारत में भी चल रहा है। पर अमेरिका में यह खेल सफल हो गया लेकिन भारत का अमेरिका से तीन गुना बड़ा और विषम लोकतंत्र होने के बावजूद यह खेल भारत में असफल हो गया। इसके पीछे कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण कारण हैं।

कम्युनिस्ट/ लिबरल/ जेहादी/ सेकुलर ब्रिगेड से लड़ना आसान काम नहीं है। क्युंकि यह सीधे युद्ध नहीं लड़ते। यह नैरेटिव की लड़ाई लड़ते हैं इसलिये इन पर सीधा प्रहार इनके विक्टिम कार्ड को और मज़बूत बनाता है। ट्रम्प ने यहीं बहुत बड़ी गलती कर दी। उसने इनके इस नेक्सस को तोड़े बिना लड़ाई मोल ले ली। उसका परिणाम यह है की हर अखबार, हर चैनल, हर बुद्धिजीवी या तो ट्रम्प के खुलकर विरोध में है या फिर खुद मूर्ख साबित होने के डर से समर्थन करने में भयभीत है।


जबकि नरेंद्र मोदी को हम देखें तो मामला बिलकुल उल्टा पाते हैं। नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में न तो राम मन्दिर को छुआ, न धारा 370 को, न CAA को और न ही ठीक से NRC को। बल्कि अपने नारे सबका साथ - सबका विश्वास को ही ठीक से लागू किया। लेकिन पिछले कार्यकाल में धीरे-धीरे एक एक करके मेन स्ट्रीम मीडिया में अपने विरोधियों का पर कतरते गये। बड़े बड़े विरोधी पत्तलकार कब #ट्रेंड_सेटर_से_यू_ट्युबर बन गये, पता ही नहीं चल पाया। अपने लोगों की एक फौज खड़ी की। बड़े बड़े संस्थानों से वामपंथियों को एक झटके में नहीं निकाला बल्कि उनका कार्यकाल पूरा होने दिया, फिर एक एक करके अपने लोगों को स्थापित किया। विदेशी NGO को बैन करने के बजाय उनकी फंडिंग रोक दी। बिना फंड का NGO जैसे बिन पानी मछली। मिशनरियों पर धीरे धीरे शिकंजा कसा और दिल्ली में एक पत्थर चलने पर भी अपने मंत्रियों से बयान दिलवाया। कश्मीर में महबूबा मुफ्ती तक के साथ सरकार चलाई। नार्थ ईस्ट में छोटा बड़ा जो मिला उससे बातचीत की, साझेदारी की।

कुल मिलाकर दुनिया के सबसे दुष्कर नेक्सस यानी कम्युनिस्ट/ लिबरल/ जेहादी/ सेकुलर नेक्सस को कम से कम 50-60% तक मोदी ने न केवल तोड़ दिया बल्कि धीरे धीरे अपने द्वारा स्थापित मीडिया से डिसक्रेडिट करा दिया।

और अब जब दूसरे कार्यकाल में वह एक से बढ़कर एक बडे निर्णय ले रहे हैं, तब भी ये नेक्सस लगा है, पर आर्थिक और विश्वास दोनों की दृष्टि से काफी हद तक डिसक्रेडिट हो चुके लोग अपना वह रूप नहीं दिखा पा रहे हैं जैसा कि वह अमेरिका में दिखा रहे हैं। चाहे NRC और CAA का प्रोटेस्ट हो, किसान आन्दोलन हो, कोरोना के समय गृहयुद्ध फैलाने की साज़िश हो, यह सब इसी लाबी का काम है। लेकिन इन्हें इतना कमजोर किया जा चुका है की इनका सारा प्रयास मिट्टी में मिल हा रहा है। बचा खुचा एजेन्डा इसलिये भी नहीं चल पा रहा है कि मोदी की तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया की राजनीति नहीं हो रही। न CAA प्रोटेस्ट में लाठी चलाया गया और न ही किसान आन्दोलन में। जब विचारधारा और पैसा काम करना बन्द कर दे तो राजनीति केवल सहानुभूति के ईंधन  से चल सकती है पर उसके लिये सरकार की तरफ से कथित अत्याचार होना जरूरी है। लेकिन सरकार वह भी नहीं कर रही।

तो सरकार कर क्या रही है??

सरकार बिल्कुल वहीं कर रही है जो उसे करना चाहिये, अर्थात ऐसे काम जिसका इन्तज़ार सदियों से पराजित हिन्दू समाज कर रहा था। कुछ लोगों को यह चिन्ता है कि वाड्रा जेल क्यूं नहीं जा रहा? राहुल कुछ भी कैसे बोल रहा है??

वाड्रा जेल ही चला जायेगा तो गांधी परिवार के पास खोने के लिये क्या बचेगा? वास्तव में खो जाने से बड़ा होता है खो जाने का डर और खो जाने के बाद जो सहानुभूति मिलेगी सो अलग।

तो क्या सरकार एग्रेसिव नहीं है??

शरीर का एक हिस्सा मुंह है तो एक हिस्सा हाथ पैर भी है। जब हाथ पैर चुपचाप चल रहा है तो जबरदस्ती मुंह से चिल्लाने की क्या आवश्यकता है?

क्या राम के इच्छा के बिना हनुमान लंका में तोड़फोड़ कर आये?

कतई नहीं। हनुमान तो राम के इच्छा के प्राकट्य भर हैं। तो जो तोड़फोड़ योगी जी अब शिवराज और खट्टर कर रहे हैं क्या वह मोदी की इच्छा के विपरित है? बिलकुल भी नहीं। पर राम की मर्यादा अलग है, और हनुमान की अलग है।

इसलिए भारत में जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है।

धैर्य रखिए। सबका नम्बर आयेगा।

मोदी को ट्रम्प बनने की सलाह देने वाले भी अपना विश्लेषण करें। मोदी उन कुछ गिने चुने ऐतिहासिक लोगों में हैं  जिनके पास शक्ति और विनम्रता दोनों है। पौरुष और ममत्व दोनों है। ऐसा गुण केवल शिवशंकर में है। प्रसन्न रहें, सब के लिये जो होगा सब अच्छा होगा।

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