कौन चलाता है सफल उद्यमियों के खिलाफ कैंपेन
आर.के. सिन्हा
मुंबई में आप पिरोजशा गोदरेज मार्ग देख सकते हैं। वे कोई राजनेता, लेखक, स्वाधीनता सेनानी या कवि नहीं थे। हमारे यहां पर आमतौर इन्हीं लोगों के नामों पर सड़कों, स्टेडियमों, पार्कों वगैरह के नाम रखे जाते हैं। गोदरेज का संबंध गोदरेज उद्योग घराने से था। वे मूलत: कारोबारी थे और एक कारोबारी के रूप में गोदरेज ने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया। ये कोई बहुत पुरानी बात नहीं है जब तक इस देश में उद्यमियों का उचित सम्मान किया जाता था। वक्त बदला तो समाज में जबरदस्त नकारात्मकता आ गई। कारण राजनीतिक हैं या नहीं, इसकी चर्चा अभी इस लेख में करने का कोई विशेष लाभ नहीं I देख लीजिए कि आजकल देश के दो महत्वपूर्ण औद्योगिक घरानों के पीछे अकारण कुछ विक्षिप्त सोशल मीडिया नकारात्मक तत्व पड़े ही रहते हैं। आप समझ रहे होंगे कि मैं बात रिलायंस और अडानी समूहों की कर रहा हूँ । रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (आरआईएल) में ऊर्जा, पेट्रोकेमिकल, कपड़ा, प्
अब बात कर लें जरा अदानी समूह की भी । ये मुख्य रूप से कोयला व्यापार, कोयला खनन तथा बिजली निर्माता कम्पनी है। अदानी ग्रुप को स्थापित करने वाले गौतम अदानी नाम के एक उद्यमी हैं । अदानी ग्रुप देश की सबसे बड़ी एक्सपोर्ट कंपनियों में से एक है। यानि बड़े स्तर पर विदेशी मुद्रा कमाने वाली कंपनी गौतम अदानी का जन्म अहमदाबाद के निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था और वे कुल सात भाई-बहन थे। पढ़ाई लिखाई करने से पहले ही रोजी-रोटी का सवाल आ गया। नतीजा यह हुआ कि इंटर की पढ़ाई के बाद उन्होंने गुजरात यूनिवर्सिटी में बीकॉम में एडमिशन तो ले लिया, लेकिन पढ़ाई आगे बढ़ नहीं पाई। 18 वर्ष की उम्र में ही कुछ पैसे कमाने के चक्कर में मुंबई आए और एक डायमंड कंपनी में तीन-चार सौ रुपये की एक छोटी सी नौकरी पर लग गए। दो साल वहां काम करने के बाद गौतम अदानी ने झावेरी बाजार में खुद का डायमंड ब्रोकरेज आउटफिट खोला। यहीं से उनकी जिंदगी पलटनी शुरू हो गई। वर्ष 1981 में अदानी के बड़े भाई मनसुखभाई ने प्लाटिक की एक यूनिट अहमदाबाद में लगाई और उन्होंने गौतम को कंपनी चलाने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने बड़े भाई की पीवीसी यूनिट संभाली और धीरे-धीरे कारोबार आगे बढ़ाया। 1988 में उन्होंने एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी अदानी इंटरप्राइजेज की स्थापना की। आज अदानी ग्रुप का कारोबार दुनिया भर में फैला हुआ है।
रिलायंस को धीरूभाई अंबानी ने शुरू किया और इसे बुलंदी पर पहंचाया उनके पुत्र मुकेश अंबानी ने। गौतम अदानी तो पहली पीढ़ी के उद्यमी है। देश के नौजवानों को इनसे प्रेरित और प्रभावित होना चाहिए। पर इन्हें जबर्दस्ती खललायक बनाया जा रहा है। यह एक शर्मनाक स्थिति है। बुरा मत मानिए, ये सब अपने देश में होता रहा है। ये नकारात्मकता बढ़ती ही जा रही है।
यूपीए सरकार के दौर में 2013 में कुमार मंगलम बिड़ला समूह के अध्यक्ष आदित्य बिड़ला पर कोलगेट में एफआईआर ही दर्ज हो गया था। उस मामले से कॉरपोरेट इंडिया सन्न हो गया था। उनका भारत के कॉरपोरेट जगत में टाटा ग्रुप के पुराण पुरुष रतन टाटा, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा के प्रमुख आनंद महिन्द्रा, एचडीएफसी बैक के चेयरमेन दीपक पारेख के जैसा ही स्थान है। इससे पहले कभी कुमार मंगलम बिड़ला का नाम किसी विवाद में नहीं आया था । इसलिए उनके खिलाफ सीबीआई की तरफ से चार्जशीट दायर करने से हड़कंप मच गया था। अगर हम अपने देश के उजली छवि वाले कॉरपोरेट जगत के दिग्गजों पर मिथ्या आरोप लगाएँगे या फिर उन पर एफआईआर दर्ज करवाएँगे तो समझ लें कि दुनियाभर में भारतीय कारोबारियों की गलत छवि ही जाएगी। ऐसा दुष्प्रचार मैं राष्ट्र विरोधी गतिविधि कहूँ तो अतिशयोक्ति मत समझिएगा I भारत को लेकर निवेशकों के बीच गलत छवि बनेगी। समझ नहीं आता कि आप कैसे जाने-माने उद्योगपतियों के खिलाफ बिना किसी कारण बिना कुछ जाने कैंपन चलाने लगते हैं। कोई यह तो नहीं कह रहा है कि टैक्स चोरों को या नियमों और कानून का उल्लंघन करने वाले किसी उद्योगपति या अन्य़ शख्स को माफ किया जाए। पर आरोप लगाने से पहले साक्ष्य तो देख लो। आदित्य विक्रम बिड़ला ग्रुप की लगभग 40 देशों में मौजूदगी है। हजारों करोड़ टैक्स देता है सरकार को हर साल जो देश के विकास में ही लगता है I
आपने भी महसूस किया होगा कि हमारे देश में एक निठल्ला समाज है, जिसे धनी, संपन्न अपना विकास करने वाले लोगों से बैर है। ये उनकी कमियां ही निकालता रहता है। अब लोकसभा, राज्यसभा या विधानसभा चुनावों से पहले जब उम्मीदवार अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हैं, तब कई तत्व उसकी संपत्ति पर सवालिया निशान लगाने लगते हैं। जिसकी संपत्ति ठीक-ठाक होती है, उसे शक की नजरों से देखा जाने लगता है। माना जाने लगता है कि उस इंसान ने काले धंधे से पैसा कमाया होगा। क्या ये वाजिब है ?
जब मैं राज्यसभा में नामांकन के लिये गया और अपनी आय और संपत्ति का सही ब्यौरा दिया तो मुझे सबसे धनी सांसद कहकर संबोधित किया जाने लगा I एक दिन हम सभी सेंट्रल हॉल में बैठकर गप्पें लगा रहे थे I कांग्रेस के एक बड़े नेता जो स्वयं एक राज घराने से आते हैं, उन्होंने वेटर को कहा कि हमारे साथ जितने माननीय सदस्य बैठे हैं, उनका बिल इधर दे देना, यहाँ देश के सबसे धनी सांसद बैठे हैं I मैंने कहा कि राजा साहब, आपका हुक्म सिर आँखों पर I लेकिन, आज मुझे आपने जो सबसे धनी सांसद होने का जो सर्टिफिकेट दिया, उससे मुझे बहुत अच्छा लगा I इसलिये भी अच्छा लगा कि मैं किसी राज परिवार में पैदा नहीं हुआ और अपनी पत्रकारिता की नौकरी 230 रूपये महीने पर शुरू की थी I आज मैंने चूँकि मेहनत की कमाई का एक-एक पैसा टैक्स दिया है I इस कारण से चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में मैं भले ही सबसे धनी सांसद हो गया हूँ, पर आपमें से किसी के बराबर मेरी हैसियत नहीं है I वैसे यह मत भूलिये कि मैंने अपने पत्रकारिता के कैरियर में, खोजी पत्रकार का काम बखूबी किया है और आप चाहें तो मैं देश के दस बड़े धनी सांसदों की खोज कर सकता हूँ I
जिसके पास संपत्ति अधिक महसूस होती है, उसे छद्म नैतिकतावादी घेरने लगते। ये उस बेचारे उम्मीदवार को कुछ इस तरह से पेश करने लगते कि मानो उसने चोरी की हो, घोटाला किया हो या लूट कर ही संपत्ति बनाई हो उसके पीछे कितनी मेहनत है यह तो कोई भी नहीं देखता ।
देश 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के चलते तेजी के साथ बदला। देश में मध्यवर्ग तेजी के साथ आगे बढ़ा। नए उद्यमी सामने आते रहे । वे लोग भी उद्यमी बनने की ख्वाहिश रखने लगे हैं, जिनके परिवारों में पहले कभी कोई उद्यमी नहीं रहा। इस आलोक में यह बहस कहां तक जायज है कि किसकी संपत्ति कैसे बढ़ी? कुल मिलाकर बात यह है कि क्या हम कभी सफल कारोबारियों का सम्मान करना भी सीखेंगे?
उदाहरण के रूप में क्यों इंफोसिस के संस्थापकों में से एक नंदन नीलकेणी संसद में न आ पाये ? वे 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़े भी थे पर हार गए थे। वे और उनकी पत्नी रोहिणी हर साल मोटा धन देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए दान करते हैं। क्या इस तरह के नए भारत के सफल लोगों को संसद और विधान सभाओं में नहीं आना चाहिए? कहीं न कहीं यह लगता है कि हमारे देश में धनी शख्स का सार्वजिनक जीवन में आना ही समाज को पसंद नहीं है। उसे तुरंत शक की नजरों से देखा जाने लगता है। हम इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते है कि महात्मा गांधी निर्धन परिवार से नहीं थे, पंडित नेहरु भी खासे संपन्न परिवार से थे और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का संबंध भी धनी परिवार से था। क्या संपन्न परिवार से रिश्ता रखना या ईमानदारी से धन कमाना अपराध है ? क्या ऐसा कृत्य राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में आता है?
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)