उत्तरप्रदेश के कायस्थ माग रहे विधान परिषद मे अपना प्रति निधित्व

 भाजपा से छिंटक रहे कायस्‍थ, नजरें विधान परिषद पर 



मनीष श्रीवास्तव/लखनऊ

क्‍या उत्‍तर प्रदेश में कायस्‍थ वोटर भाजपा से छिंटक रहा है? यह सवाल राजनीतिक गलियारे में इसलिये भी तैर रहा है क्‍योंकि मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस तथा कायस्‍थ बाहुल्‍य प्रयागराज में स्‍नातक निर्वाचन में पार्टी की हार के संकेत यही कहते हैं। इस हार को भले ही प्रत्‍याशियों के खिलाफ मतदान या भाजपा के पहली बार चुनाव में उतरने का बहाना बनाकर टाल दिया जाये, लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि कायस्‍थ इसलिये नाराज है क्‍योंकि भाजपा में उन्‍हें पर्याप्‍त सम्‍मान एवं पद नहीं मिल रहा है। 




यह बात भाजपा नेतृत्‍व को अभी समझ नहीं आ रही है, लेकिन अगर कायस्‍थ नेताओं को सम्‍मान नहीं मिला तो इसका असर शहरी तथा कायस्‍थ बाहुल्‍य दर्जनों सीटों पर दिख सकता है। उत्‍तर प्रदेश में कायस्‍थ समाज से आने वाले सिद्धार्थनाथ सिंह को भाजपा ने भले ही मंत्री बना रखा हो, लेकिन उनकी पहचान कायस्‍थ लीडर की नहीं है। ज्‍यादातर लोग तो जानते ही नहीं कि सिद्धार्थनाथ सिंह कायस्‍थ जाति से आते हैं। हरीशचंद्र श्रीवास्‍तव के निधन के बाद भाजपा कायस्‍थ लीडरशिप डेवलप नहीं कर पाई है। 




हरीशचंद्र श्रीवास्‍तव के बाद विंध्‍यवासिनी कुमार ने यह स्‍थान भरा था, लेकिन उनके पद से हटने के बाद कम से कम यूपी में कायस्‍थ लीडर की जगह अब भी खाली है। विंध्‍यवासिनी कुमार की कायस्‍थों में स्‍वीकार्यता थी, लेकिन अब वह भी उम्र की दहलीज पार कर चुके हैं और उनकी सक्रियता भी कम हुई है। हरिश्‍चंद्र श्रीवास्‍तव के पुत्र सौरभ श्रीवास्‍तव पिताजी के नाम पर बनारस कैंट से विधायक जरूर हैं, लेकिन वह अपनी पहचान बनारस से बाहर नहीं बना पाये हैं।


 



भाजपा ने काशी क्षेत्र में महेश श्रीवास्‍तव को अध्‍यक्ष बनाकर कायस्‍थ लीडरशिप विकसित करने का प्रयास किया, लेकिन उनके ही नेतृत्‍व में काशी और प्रयागराज की स्‍नातक निर्वाचन हार बताती है कि कायस्‍थ वोटरों में महेश श्रीवास्‍तव की कोई पकड़ नहीं है। वैसे भी, सपा आशुतोष सिन्‍हा को जीताकर  कायस्‍थ वोटरों ने बता दिया है कि केवल लॉलीपॉप देने से स्थिति नहीं संभलने  वाली उन्‍हें सदन और सत्‍ता में भी भागीदारी चाहिए। समाजवादी पार्टी आशुतोष सिन्‍हा के जरिये कायस्‍थ वोटरों को अपने पक्ष में लामबंद करने में जुटी हुई है। 




आशुतोष और सपा इस मिशन में सफल रहे तो भाजपा को विधानसभा चुनाव में झटका लगना तय है। भाजपा यह मानकर चल रही है कि कायस्‍थ उनको छोड़कर कहां जायेगा, लेकिन सपा जिस तरह कायस्‍थ वोटरों पर डोरे डाल रही है, उसका असर 2022 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। उत्‍तर प्रदेश में कम से कम डेढ़ दर्जन ऐसे शहरी सीट हैं, जिन पर कायस्‍थ वोटर हार-जीत का फैसला करता है। खासकर पूर्वांचल में। 




पूर्वांचल में कायस्‍थ लीडरशिप देखें तो सौरभ श्रीवास्‍तव, महेश श्रीवास्‍तव के बाद जो तीसरा नाम आता है वह है भाजपा के प्रवक्‍ता तथा गाजीपुर निवासी नवीन श्रीवास्‍तव की। इनमें एकमात्र नवीन श्रीवास्‍तव ही हैं, जिनकी पहचान पूरे यूपी में कायस्‍थ लीडर की है। टीवी पर भाजपा के पक्ष में लगातार इनकी सक्रियता ने इन्‍हें पहचान दी है। हरीशजी के निधन से रिक्‍त जगह को भरने की क्षमता की बात हो तो नवीन श्रीवास्‍तव हर तरह से महेश एवं सौरभ पर बीस पड़ेंगे।  




इन नामों के बीच एक और नाम भाजपा के दूसरे प्रवक्‍ता हरिशचंद्र श्रीवास्‍तव की है। हरिशचंद्रजी की भी पहचान प्रदेश भर में है। इनके साथ प्‍लस प्‍वाइंट यह भी है कि यह मुख्तार अब्बास नकवी की तरह सभी भाजपाई खेमों के खास हैं। इनकी जितनी पकड़ केशव मौर्या के खेमे में है, उतनी ही पकड़ योगी खेमे में है। यह सुनील बंसल के नजदीकी भी हैं और राजनाथ सिंह खेमे के भी प्रिय हैं। उत्‍तर प्रदेश में इसी महीने 12 विधान परिषद सीटें खाली हो रही हैं। अन्‍य जातियों के साथ कायस्‍थ वोटर भी इस पर नजर बना रखा है। 



बीते साल हुए राज्‍य सभा चुनाव में दलित, पिछड़े, ब्राह्मण एवं क्षत्रिय प्रत्‍याशियों को वरीयता दी गई, लेकिन कायस्‍थ दरकिनार कर दिया गया। अब कायस्‍थों की नजर विधान परिषद पर है। इस बार अन्‍य जातियों के साथ कायस्‍थ वोटर भी उम्‍मीद कर रहा है कि भाजपा उनको सम्‍मान देगी। परंतु, भाजपा इस बार भी कायस्‍थ वोटरों को गंभीरता से नहीं लेती है तो उसको इसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी, क्‍योंकि भाजपा की तरफ से उत्‍तर प्रदेश में एक भी कायस्‍थ नेता राज्‍यसभा या विधान परिषद में नहीं भेजा गया है।

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