2021 में देश व विश्व प्रज्ञापराधियो से मुक्त हो !


 बस्ती !

,प्राच्य पर भारी पड़ता पाश्चात्य यह बात किसी राष्ट्रवादी को अटपटी लग सकती है पर मेरे व्यक्तिगत मन्तव्य से 100 प्रतिशत है सही।देश का युवा संस्कृत और संस्कृति को छोड़ जीस प्रकार पाश्चात्य का अंधानुकरण कर रहा है वह नि:सन्देह चिन्तनीय है ।मूल्यों का क्षरण,अपरिपक्व युवा,अधकचरे नेता,आत्महंता विचारक जिनका जिनका बौद्धिकता से दूर का रिश्ता नही पर संगठित गिरोह की  की परिणति के परिणाम ?

देश मे ही नही विदेश में भी प्रज्ञापराधियो का वर्चस्व ,महाभारत में इंगित मत्स्य न्याय?गला काट स्पर्धा! जीतो फ़िर चाहे जैसे पर जीतो यह अपनी न पहचान थी औऱ नही संस्कृति! कहने को देश गरीब है पर 60 प्रतिशत से ऊपर के दिहाड़ी मजदूर के पास भी एनरायड फोन? घर में 5 परिवार सबके पास परस्पर बात का अवसर नही।मैकाले की शिक्षा का पूर्णतया प्रभाव।कुछ राष्ट्र आत्म प्रसंशा और आत्मश्लाघा के बौद्धिक शिकार होसकते है पर वे विचारे , हमारी दशा और दुर्दशा के उत्तरदायी कौन ?कही हम ही तो नही?

पूरे विधवा में इस समय भारत प्रेरित राष्ट्रवाद की बयार भ रही है ।यह बयार केवल सत्ता कमी है ,सुधसरात्मक तो कदापि नही।पर इतना सन्तोष है कि कुछ अच्छा होरहै है।विश्व मे भारत की विध्वसनीयता को सम्मान मिला है पर प्रतिभाओं के बल पर नही संगठित नोकरशाही के आत्माभिमानी गिरोह पर।सरकारें निर्णय लेनाभी चाहे गिरोह आगे आजाता है।देश के कोविड का कहर झेला है पर नोकर शाही ने कोषागार का भरपूर इस्तेमाल किया ।भ्र्ष्टाचार सर्वस्पर्शी बन गया।जनको जिम्मेदारी थी उससे उपरने की वे सही प्रशिक्षण के अभाव में  वे भृष्टाचारी चक्रब्यूह के अभिमन्यु होगये।सब देखते रहे साल दर साल चलता गया,जारहा है पर नाव डूब रहीथी तैरना किसी को नही आरहा था।में केवल लक्षणा में बात कर रहा हूं।

सत्ताकामी नेताओ,पार्टियों कर किये कार्यकर्ता केवल एक स्थाई मशनिरी बन गया।,किसान आंदोलन चल रहा है विश्वाश है जल्द सकारात्मक संदेश के साथ समाप्त होगा।पर राकेश टिकैत जैसे  प्रज्ञापराधियो को कौन दण्डित करेगा?खालिस्तान को याद कर रहे बौद्धिक अपराधियो पर आखिर अंकुश किसका ?कश्मीर सुधर रहा है पर पाकिस्तान के समर्थक देश के प्रज्ञापराधियो पर अंकुश कौन लगाये ?

चीन अपनी विस्तार वादी नीति सर पास पड़ोस को परेशान कर रहा है।आखिर उसपर लगाम कबतक?,ममता,केजरीवाल को कौन गीता का उपदेश देगा,स्वधर्मे निधनम् श्रेय:.बीता साल भ्र्रष्टाचार को स्थाई मान्यता तो नही देरहा।सबके मन मे ईमान दारी है पर वह पड़ोसी करे तो ठीक।सामाजिक संस्थाओं का जाल तो बिछा पर नैतिक और नैष्ठिक उत्त्थान में खुद असफल रही।

नेपाल जो हमारा स्थाई और सही पडोसी था वह भी अन्तर्राष्ट्रीय षड्यंत्र से भाग रहा है।देश के नरेतृत्व को नेपाल पे गम्भीर होना चाहिए, पर काग,वाम,साम ममता की दुरभिसंधि अंदर बाहर की शाख को हुलस रही है।देश का हित इसी में है कि नेपाल हमेशा भारत के साथ रहे।

2020 चला गया,लिखना तो अंतहीन सिलसिला है पर विध्वसनीयता का संकट स्थाई है।ईश्वर उस संकट दे देश समाज और विश्व को कष्ट की परिधि से बाहर करे ।और विश्व प्रज्ञापराधियो से मुक्त हो!

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः.

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुख भाग भवेत।।


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