अटलजीः सत्ता साकेत के वीतरागी

 जयंती (25 दिसंबर) पर विशेष

अटलजीः सत्ता साकेत का वीतरागी

-प्रो.संजय द्विवेदी

     भारतरत्न श्री अटलबिहारी बाजपेयी एक ऐसे प्रधानमंत्री थेजो भारत को समझते थे। भारतीयता को समझते थे। राजनीति में उनकी खींची लकीर इतनी लंबी हैजिसे पार कर पाना संभव नहीं दिखता। अटलजी सही मायने में एक ऐसी विरासत के उत्तराधिकारी थेजिसने राष्ट्रभाव को सर्वोपरि माना। देश के बारे में सोचा और अपना सर्वस्व देश के लिए अर्पित किया। उनकी समूची राजनीति इन्हीं संकल्पों को समर्पित रही। वे भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री भी रहे। उनकी यात्रा सही मायने में एक ऐसे नायक की यात्रा हैजिसने विश्व मंच पर भारत और उसकी संस्कृति को स्थापित करने का प्रयास किया। मूलतः पत्रकार और संवेदनशील कवि रहे अटल जी के मन में पूरी विश्व मानवता के लिए गहरी संवेदना थी। यही भारतीय तत्व है। अपने समूचे जीवन से अटलजी जो पाठ पढ़ाते हैंउसमें राजनीति कम और राष्ट्रीय चेतना ज्यादा है।

    पूरे भारत को उन्होंने मथ डाला था। सार्वजनिक जीवन में उपस्थित वे एक ऐसे यायावर थे जिनमें निरंतर संवाद करने की शक्ति थी। वे ही थे जो भाषणों सेलेखों सेकविताओं से और देहभाषा से देश को संबोधित करते और चमत्कृत करते आ रहे थे। हर व्यक्ति का समय होता है। जब वह शिखर पर होता है। लेकिन अटल जी का कोई समय ऐसा नहीं थाजब वे घोर नेपथ्य में रहें हों। वे भारतीय प्रतिपक्ष के सबसे चमकदार नेता थेजिसने कभी अपनी प्रासंगिकता नहीं खोयी। पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु से लेकर डा. मनमोहन सिंह को सत्ता सौंपने तक वे जीवंतप्राणवानस्फूर्त और प्रासंगिक बने रहे। 

       अटलजी भारतीय राष्ट्रवाद की सबसे प्रखर और मुखर प्रवक्ता थे। उन्होंने अपनी युवावस्था में जिस विचार को स्वीकार कियाउसका जीवन भर साथ निभाया। सही मायनों में वे विचारधारा के प्रति अविचल प्रतिबद्धता के भी उदाहरण हैं। एक विचार के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देने की भावना से वे ताजिंदगी लैस रहे। उन्होंने जो कहा उसे जिया और अपने जैसै हजारों लोग खड़े किए। एक पत्रकारसंपादकलेखककविराष्ट्रनेतासंगठनकर्तासंसदविद्हिंदीसेवीप्रखर वक्ताप्रशासक जैसी उनकी अनेक छवियां हैं और वे हर छवि में पूर्ण हैं। इस सबके बीच उनकी सबसे बड़ी पहचान यही है कि वे भारतीय राष्ट्रवाद के हमारे समय के सबसे लोकप्रिय नायक हैं। वे अपने हिंदुत्व पर गौरव करते हुए भारतीयता की समावेशी भावना के ही प्रवक्ता हैं। शायद इसीलिए वे लिख पाते हैं-

होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम?

मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।

गोपालराम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किया?

कब दुनिया को हिंदू करने घरघर में नरसंहार किया?

कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी?

भूभाग नहींशतशत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।

हिंदू तनमनहिंदू जीवनरगरग हिंदू मेरा परिचय!

     भारतीय राजनीति में होते हुए भी अटल जी राजनीति की तंग सीमाओं से नहीं घिरे। वे व्यापक हैंविस्तृत हैं और अपने विचारों में भारतीय जीवन मूल्यों का अवगाहन करते हैं। उनकी सोच पूरी सृष्टि के लिए हैवे भारत की आत्मा में रचे-बसे हैं। भारत उनकी वाणी मेंउनकी सांसों में पलता है। भारतीयता को वे अपने तरीके से पारिभाषित करते रहे हैं। उनमें हिंदुत्व का आग्रह था पर वे जड़वादी या कट्टर कहीं से भी नहीं हैं। वे हिंदुत्व को उसके सही संदर्भों में समझते और व्याख्यायित करते हैं। अपनी कविता में वे लिखते हैं-

मैं अखिल विश्व का गुरु महानदेता विद्या का अमरदान।

मैंने दिखलाया मुक्तिमार्गमैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।

मेरे वेदों का ज्ञान अमरमेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

मानव के मन का अंधकारक्या कभी सामने सका ठहर?

   अटलजी भारतप्रेमी हैं। वे भारतीयता और हिंदुत्व को अलग-अलग नहीं मानते। उनके लिए भारत एक जीता जागता राष्ट्रपुरूष है। वे अपनी कविताओं में प्रखर राष्ट्रवादी स्वर व्यक्त करते हैं। उनकी राजनीति भी इसी भाव से प्रेरित है। इसलिए उनका दल यह कह पाया- दल से बड़ा देश। राष्ट्र के लिए सर्वस्व अर्पित कर देने की भावना वे बार-बार व्यक्त करते हैं। भारत का सांस्कृतिक एकता और उसके यशस्वी भूगोल को वे एक कविता के माध्यम से व्यक्त करते हैं।  वे लिखते हैं -

भारत जमीन का टुकड़ा नहींजीता जागता राष्ट्रपुरुष है।…..

इसका कंकर-कंकर शंकर हैइसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।

हम जियेंगे तो इसके लियेमरेंगे तो इसके लिये।

     अटलजी मूलतः कवि और पत्रकार हैं। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में थे और उन्हें पं. दीनदयाल उपाध्याय राजनीति में ले आए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वे प्रतिबद्ध स्वयंसेवक रहे। ताजिंदगी राष्ट्र प्रथम उनका जीवन मंत्र रहा। राजनीति की काली कोठरी में भी वे निष्पाप और निष्कलंक रहे। अपने समावेशी भारतीय चरित्र की छाप उन्होंने राजनीति पर भी छोड़ी। गठबंधन सरकारों को चलाने का अनुपम प्रयोग किया। 1967 में संविद सरकारें बनीं, 1977 में जनता प्रयोगनवें दशक में वीपी सिंह की जनता दल सरकार और बाद में वे खुद इस प्रयोग के सर्वोच्च नायक बने। वे पांच साल सरकार चलाने वाले पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। उनके व्यक्तित्व ने ही यह संभव किया था कि विविध विरोधी विचारों को साथ लेकर वे चल सके। लंबे समय तक प्रतिपक्ष के नेता के नाते उनकी भाषणकलाकविता का कौशल उनकी पूरी राजनीति पर इस तरह भारी है कि उनके राजनायिक कौशलकूटनीतिक विशेषताओं और सुशासन की पहल करने वाले प्रशासक की उनकी अन्य महती भूमिकाओं पर नजर ही नहीं जाती। जबकि एक विदेशमंत्री और प्रधानमंत्री के नाते की गयी उनकी सेवाओं का तटस्थ मूल्यांकन और विश्लेषण जरूर किया जाना चाहिए।

     संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को गुंजायमान करने के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। विदेश मंत्री के रूप में दुनिया के तमाम देशों के साथ उन्होंने जिस तरह से रिश्ते बनाए वे उन्हें एक वैश्विक राजनेता के तौर पर स्थापित करते हैं। प्रधानमंत्री के रूप में सड़कों का संजाल बिछाने और संचार क्रांति खासकर मोबाइल क्रांति के जनक के रूप में उन्हें याद किया जाना चाहिए। विकास और सुशासन उनके शासन के दो मंत्र रहे। यहां यह बात भी खास है कि उन्होंने भारतीय राजनीति को धर्म-जाति और क्षेत्रवाद की गलियों से निकाल कर विकास  और सुशासन के दो मंत्रों के आधार खड़ा करने की कोशिश की। एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व किस तरह राष्ट्र के बड़े सवालों को केंद्र में लाकर सामान्य मुद्दों को किनारे करता है वे इसके उदाहरण हैं। समन्वयवादी राजनीति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पुष्टि करते हुए जिस तरह वे बिना विवाद के तीन राज्यों (उत्तराखंडझारखंड और छत्तीसगढ़) का गठन करते हैंवह भी उनके नेतृत्व कौशल का ही कमाल था। पोखरण में परमाणु विस्फोट उनकी राजनीतिक दृढृता का उदाहरण ही था। इसी के साथ प्रख्यात वैज्ञानिक  डा.एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाकर उन्होंने यह साबित किया कि भारतीयता के नायकों को सम्मान  देना जानते हैं और कहीं से संकुचित और कट्टर नहीं हैं। भारतीय राजनीति को उन्होंने यह भी संदेश दिया कि हमारे मुस्लिम समाज से हमें कैसे नायकों का चयन करना चाहिए?  आप कल्पना करें कि अटल जी जैसा प्रधानमंत्री और डा. कलाम जैसा राष्ट्रपति हो तो विश्वमंच पर देश कैसा दिखता रहा होगा। इसे अटल जी ने संभव किया। यह एक गहरी राजनीति थी और इसके राष्ट्रीय अर्थ भी थे। किंतु यह थी राष्ट्रीय और राष्ट्रवादी राजनीति।

     काश्मीर के सवाल पर बहुत दृढ़ता से उन्होंने जम्हूरियतकाश्मीरियत और इंसानियत” का नारा दिया। पाकिस्तान से बार-बार छल के बाद भी वे बस से इस्लामाबाद गए और बाद में कारगिल में उसे मुंहतोड़ जवाब भी दिया। लेकिन संवाद नहीं छोड़ा क्योंकि वे संवाद नायक’ थे। किसी भी स्थिति में संवाद की कड़ी न टूटेवे इस पर विश्वास करते थे। संवाद के माध्यम से हर समस्या हल हो सकती हैवे इस मंत्र पर भरोसा करते थे। उनकी बातें आज भी इसलिए कानों में गूंजती हैं। वे संकटों से मुंह फेरने वालों में नायकों में न थे। वे संवाद से संकटों का हल खोजने में भरोसा रखते थे।


   अटल जी ने खुद का परिवार नहीं बसायाकिंतु उनकी जीवन यात्रा ने साबित किया कि वे एक महापरिवार के महानायक थे। यह परिवार है- एक सौ पचीस करोड़ भारतीयों का परिवार। सारा जीवन एक तपस्वी की तरह जीते हुए भी वे राजधर्म को निभाते हैं। सत्ता में रहकर भी वीतराग उनका सौंदर्य था। वे एक लंबी लकीर खींच गए हैंइसे उनके चाहनेवालों को न सिर्फ बड़ा करना है बल्कि उसे दिल में भी उतारना होगा। उनके सपनों का भारत तभी बनेगा और सामान्य जनों की जिंदगी में उजाला फैलेगा। वे धन्य हैं जिन्होंने अटल जी को देखासुना और उनके साथ काम किया है। ये यादें और उनके काम ही प्रेरणा बनें तो भारत को परमवैभव तक पहुंचने से रोका नहीं जा सकता।

(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली के महानिदेशक हैं।)

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