बांदा की मेड़बंदी देश में जलसंरक्षण की एक नई मिशाल जलयोद्धा उमाशंकर पाण्डेय की मुहिम खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ से दूर हुई जल की किल्लत बांदा के इतिहास में पहली बार हो रही बासमती धान की सफल खेती

 


बृहस्पति कुमार पाण्डेय   

बांदा/ कुछ साल पहले तक बुन्देलखण्ड के जिलों में सूखे की समस्या केंद्र व राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ी हुआ करती थी. इस लिए बुंदेलखंड को जल संकट से उबारने के लिए सरकार द्वारा पेयजल और सिंचाई से जुड़ी कई बड़ी परियोजनाओं पर विशेष पैकेज की व्यवस्ता भी करनी पड़ी. उसके बावजूद भी बुंदेलखंड में पानी की कमी से बर्बाद होती खेती और लोगों के पलायन को रोकने में सरकार को सफलता नहीं मिल पा रही थी. इन सबके बीच बुंदेलखंड के बांदा जनपद के एक सर्वोदय कार्यकर्ता उमाशंकर पाण्डेय नें एक पारम्परिक विधि से न केवल बांदा बल्कि बुंदेलखंड सहित देश के दूसरे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संरक्षण की एक मिशाल कायम कर दी. जिसके जरिये बांदा सहित बुदेलखंड के सभी जनपदों में तालाब और कुँओं में साल भर पानी उपलब्ध रहता है.


बाँदा से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित जखनी के निवासी उमाशंकर पाण्डेय करीब 25 सालों से जलसंरक्षण की मुहिम चला रहें हैं लेकिन उन्हें पानी बचाने में सफलता उस समय मिली जब वह 15 साल पहले दिल्ली के एक जल सम्मलेन में शरीक होने आये थे इसी दौरान उनकी मुलाक़ात पर्यावरणविद अनुपम मिश्र से हुई जहाँ उन्होंने बुंदेलखंड में जलसंरक्षण को लेकर उनके साथ विमर्श किया तो निकल कर आया की जल संरक्षण तभी किया जा सकता है जब पुरानी पारम्परिक विधि से समुदाय जल संरक्षण के लिए आगे आये. यह बात उमाशंकर पाण्डेय को जम गई और दिल्ली से वापस आने के बाद उन्होंने अपने गाँव के कुछ लोगों के साथ मिल कर पानी बचाने को लेकर सर्वोदय आदर्श जल ग्राम स्वराज अभियान समिति का गठन किया.

इस समिति का उद्देश्य था की बिना किसी सरकारी इमदाद के ही खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ विधि से वर्षा जल संरक्षण की मुहिम को आगे बढाया जाए. फिर क्या था उन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर गाँव वालों को वर्षा जल को बचाने के लिए खेतों में मेड़बंदी के लिए प्रेरित किया. गाँव के कुछ पढेलिखे लोगों के बात समझ में आई और उन लोगों नें अपने खेत में मेडबंदी कर पानी बचाने की शुरुआत कर दी. गाँव वालों के इस पहल का ही परिणाम था की उस साल गांव के सभी तालाबों और कुँओं में गर्मियों में भी पानी भरा रहा.मेडबंदी से मिली इस सफलता नें गाँव वालों के हौसले को दुगुना कर दिया जिससे गाँव वालों नें बासमती धान की खेती शुरू की और उस साल पहली बार बांदा के इतिहास में बासमती धान की खेती हुई.

जखनी गाँव से मेडबंदी की शुरू हुई मुहिम के अच्छे परिणामों को देखते हुए यह मुहिम आस-पास के गाँवों में भी फ़ैल गई और देखते ही देखते जिला लेवल के अधिकारियों तक भी जखनी गाँव में पानी बचाने के सफल माडल की जानकारी पहुंची. इसके बाद जखनी गाँव में तत्कालीन जिलाधिकारी हीरालाल भ्रमण पर आये तो उन्होंने यहाँ की सफलता को देखते हुए जखनी जल संरक्षण मॉडल जिले की 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया.

इसके बाद नीति आयोग भारत सरकार ने जखनी जल ग्राम के मॉडल को देश के लिए एक्सीलेंट मॉडल माना जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार ने जल ग्राम जखनी की जल संरक्षण विधि खेत पर मेड पेड़ पर पेड़ संपूर्ण देश के लिए उपयोगी बताया. ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार ने मनरेगा योजना के अंतर्गत देश के सूखा प्रभावित राज्यों में सबसे अधिक प्राथमिकता के आधार पर मेड़बंदी के माध्यम से रोजगार देने की बात कही.

जखनी गाँव के माडल को देखते हुए  देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखे पत्र में सर्वप्रथम मेड़बंदी के माध्यम से जल रोकने की बात कही है. इसी का परिणाम है की जखनी जल संरक्षण की परंपरागत विधि बगैर प्रचार-प्रसार के देश के एक लाख 50हजार से अधिक गांव में पहुंच गई. वहीँ भारत देश को 1050 जल ग्राम देने का काम भी किया.

बाँदा से हुई पानी बचाने की शुरुआत नें पूरे बुंदेलखंड में मेडबंदी के जरिये पानी बचाने का आगाज कर दिया है. जिससे सुखाग्रत कहे जाने वाले क्षेत्रों में भी धान की खेती हो रही हैं. इस का परिणाम हैं की आज वहां महोबा, चित्रकूट, दतिया, छतरपुर, बांदा, में सरकारी धान खरीद सेंटर बनाए गए हैं पिछले वर्ष 10 लाख क्विंटल से अधिक बासमती धान केवल बांदा में पैदा किया गया. वहीँ 20000 कुंतल से अधिक बासमती धान केवल जखनी गाँव में ही पैदा किया जाता है.  इसके अलावा सब्जियों सहित दलहन, तिलहन और दूसरे अंजानो की भी बम्पर खेती की जाने लगी है.

बांदा में बढ़े पानी के स्तर को माइनर इरीगेशन डिपार्टमेंट की रिपोर्ट में भी माना गया है जिसके अनुसार इतिहास में पहली बार बांदा जनपद का भूजल स्तर 1 मीटर 34 सेंटीमीटर ऊपर आया है. कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार किसानों के बोने का रकबा एरिया पिछले 5 वर्षों में बुंदेलखंड के जिलों में 3 लाख हेक्टेयर से अधिक बढ़ा है. मेड़बंदी के कारण रुके जल से सरकारी रिपोर्ट के अनुसार किसानों का उत्पादन कोरोना काल में भी बढ़ा है.

उमाशंकर पाण्डेय द्वारा शुरू किये गए इस परम्परागत विधि को पूरे देश में शुरू किये जाने के लिए नीति आयोग भारत सरकार जल एवं भूमि विकास सलाहकार अविनाश मिश्राभारत सरकार के जल शक्ति सचिव यू पी सिंह सहित कई अध

बांदा को पानीदार बनाये जाने के मसले पर उमाशंकर पाण्डेय नें बताया की उन्होंने कुछ नया नहीं किया हैं बल्कि मेडबंदी की पारंपरिक विधि को समुदाय के हाथों पुनः जीवित कर दिया है.

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