हमारे प्राचीन ग्रंथों/ नीतिशास्त्रों में लेख है -
शिक्षा क्षयं गच्छति कालपर्यतात्
सुबद्धमूला निपतन्ति पादपा: |
जलं जलस्थानगतं शुष्यति,
हुतं च दत्तं तथैव तिष्ठति ||
अर्थात् "समय व्यतीत होने पर शिक्षित -ज्ञान भी क्षय हो जाता है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं और जलाशय का जल भी सूख जाता है किन्तु अग्नि में किया गया हवन और दिया हुआ दान कभी नष्ट नहीं होता है
शास्त्रोक्ति है "आत्मा वै जायते पुत्र:" अर्थात् व्यक्ति की आत्मा ही पुत्र के रूप में निहित होती है, जिसकी प्रतिमूर्ति डॉ.राकेश मिश्र परिवार सहित न्यास के माध्यम से दद्दा जी के प्रशस्त मार्ग पर चलकर, दृढ़ प्रतिज्ञ होकर, उनके स्वप्नों एवं संदेशों को साकृत कर, समर्पित भाव से समाज सेवा कर रहे हैं |
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि जैसे रघुवंश में राजा दिलीप (गो सेवा) एवं राजा रघु(दान-समाज सेवा) के लिए प्रख्यात थे, वैसे ही दद्दा जी (गो सेवा) एवं डॉ राकेश जी न्यास के माध्यम से(दान-समाज सेवा) मिश्र वंश में प्रभुता एवं कीर्तिमान् स्थापित कर रहे हैं।
अन्ततः वेद निहित है कि
"शतहस्त समाहर , सहस्त्रहस्त विकिर "|
सौ हाथों से धन उपार्जित कर औऱ हजारों हाथों से उसे फैला दें
----अथर्ववेद ।
अस्तु ईश्वर से कामना है कि डॉ राकेश मिश्र जी, दद्दा जी के इस ऐश्वर्य को सौ हाथों से प्राप्त कर देश, प्रदेश एवं समाज में हजार हाथों से न्यास के माध्यम से बिखेर दें तथा आप सर्वशक्तिमान बनकर इस क्षेत्र को गौरवान्वित करें। दद्दाजी की चिरस्मृति में आज यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी |