गोरखपुर 23 नवम्बर,उत्तर
प्रदेश में आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि आम की फसल को सम-सामयिक हानिकारक कीटो से बचाने हेतु उचित समय पर प्रबंधन किया जाय। माह नवम्बर एवं दिसम्बर अत्यन्त महत्वपूर्ण है, इस माह में गुजिया एवं मिज कीट का प्रयोग प्रारम्भ होता है जिससे फसल की काफी क्षति पहुंचती है। अतएवं उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उ0प्र0 द्वारा बागवानों को कीट के प्रकार एवं प्रकोप नियंत्रण हेतु निम्नलिखित सलाह दी जाती है।
गुजिया कीट के शिशु जमीन से निकल कर पेड़ो पर चढते है और मुलायम पत्तियों मंजरियों एवं फलों से रस चूसकर क्षति पहुचाते है। इसके शिशु कीट 1-2 मिमी0 लम्बे एवं हल्के गुलाबी रंग के चपटे तथा मादा वयस्क कीट सफेद रंग के पंखहीन एवं चपटे होते है। इस कीट के नियंत्रण के लिए बागों की गहरी जुताई/गुड़ाई की जाय तथा शिशु कीट को पेड़ो पर चढने से रोकने के लिए माह नवम्बर दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 50-60 से0मी0 की उचाॅई पर 400 गेज की पालीथीन शीट की 50 से0मी0 चैड़ी पट्टी को तने के चारो तरफ लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांधकर पाॅलीथीन शीट के ऊपरी व निचले हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए जिससे कीट पेड़ों के उपर न चढ़ सके। इसके अतिरिक्त शिशुओं को जमीन पर मारने के लिए दिसम्बर के अन्तिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्दर पर दो बार क्लोरीपाइरीफॅास (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारो ओर बुरकाव करना चाहिए। अधिक प्रकोप की स्थिती में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते है तो ऐसी दशा में मोनोक्रोटोफाॅस 36 ई0सी0 1.0 मि0ली0 अथवा डायमेथोएट 30 ई0सी0 2.0 मि0ली0 दवा को प्रतिली0 पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।इसी प्रकार आम के बौर में लगने वाले मिज कीट मंजरियों तुरन्त बने फूलों एवं फलों तथा बाद में मुलायम कोपोलो में अण्डे देती है। जिसकी सुडी अन्दर ही अन्दर खाकर क्षति पहुचाती है इस कीट के नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है कि बागो की जुताई/गुड़ाई की जाये तथा समय से कीटनाशक दवाओ का छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए फेनीट्रोथियान 50 ई0सी0 1.0 मी0ली0 अथवा डायजिनान 20 ई0सी0 2.0 मिली0 अथवा डायमेथोएट 30 ई0सी0 1.5 मिली0 दवा प्रति लीटर पानी घोलकर बौर निकलने की अवथा पर एक छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। उक्त जानकारी अधीक्षक राजकीय उद्यान ने दी है।