नोकरशाही का सौभाग्य और लोक शाही का दुर्भाग्यपूर्ण होना बेबस मन को कचोटता है।सारा विश्व फिर कोरोना से भयाक्रांत है ,कही कही तो कर्फ्यू जैसे हालात आसन्न है।भारत मे भी दूसरे चरण का दस्तक देनी को कोविड 19 आप्लावित है ,पर एक प्रश्न उठता है देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ न तो उच्च वर्ग है और नही निम्न वर्ग !फिर सारी आफत सरकारी मध्यम वर्ग पर ही क्यो ?उत्तरप्रदेश सहित अनेक सरकारों ने शादी समारोहों पर 100 की सख्या को सख्ती से सीमित किया है प्रश्न उठता है कोरोना केवल शादी समारोहों से ही फैलता है? इस प्रकार की सोच वालो को कोई नाम देने में भी शर्म आती है मठ,मन्दिर,मस्जिद,अन्य समारोह भीड़ बटोर रगे है और मध्यम वर्ग पर दोहरी मार का मतलब?
पुरानी कहावत है" सौ की लाठी एक का बोझ" यह व्यवस्था मध्यम वर्ग पर एकदम चरितार्थ होती है।बड़ी मुश्किल से शादी तय हुई उसपर ििइंतजआम काफी,शादी समारोह मध्यम वर्ग की अघोषित अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं l जहाँ निमंत्रण के नाम पर उड़के स्टेटस के अनुसार निमंत्रण आ जाता है ।जिससे व्यक्ति टेंट,भंडारी सहित अनेक खर्चो की भरपाई कर लेता है।सीमित सख्या से मध्यम वर्ग का सबसे बड़ा आय का स्रोत अब समाप्त। किसे कौंन निमंत्रण देगा ?
कोरोना की आफत अलग पुलिस का डंडा अलग ?क्या शादी समारोह से ही प्रतिबंधित करने से कोरोना रुक जाएगा ?क्या समारोह में जाने वालों को अपने जान की कीमत नही? क्या कानून ही अब समस्या का निवारण आधार रहगया है? क्या आत्म नियंत्रण कोई चीज नही रह गयी?
इन अनेक अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर कौन देगा,मध्यम वर्ग अभी पुरानी रुकी शादियों के पहले से मुद्रित कार्डो पर डेट का स्टीकर लगा काम चला रहा है,जो यह दर्शाता है कि उसकी जेब ठीक होती तो अलग कार्ड चपवालेता।सरकार को चाहिए सबको समान देखे ?और उसकी नोकर शाही से सादर निवेदन कि वह "कानून का ििइंटरपटेशन" में माहिर है।चाहिए सरकारों का सुझाव दे जो क्षति आयोजक की निमंत्रण न मिलने से होरहै है ,उसकी आर्थिक व्यवस्था के आधार पर शादी में"सब्सिडी" की व्यवस्था अवश्य करे।एक अच्छे शाशन, प्रशासन के लिए इससे उत्तम और राहत परक सुझाव शायद ही कोई हो।
जज किसी आयोजन पर सख्ती कम तब विवाह पर वक्र दृष्टि ही क्यो ?
राजेन्द्र नाथ तिवारी