रजाई भराई का धन्धा नहीं पकड़ा जोर,रेडीमेड के चक्कर मे उपभोक्ता

 


जौनपुर,उत्तरप्रदेश
 सर्दी के मौसम शुरू होते ही शहर में  कारोबारियों ने रुई धुनाई की मशीनें लगाकर रजाई, गद्दा आदि भराई का काम शुरू कर दिया है। लेकिन इस बार पिछले साल की अपेक्षा काम में नरमी दिखाई पड़ रही है। कारोबारी इसकी वजह लॉक डाउन में बढ़ी बेरोजगारी को मान रहे हैं। रूहट्टा के रुई कारोबारी  रईस का कहना है कि उनका यह पुश्तैनी काम है। उनसे पहले उनके पिता   भी रुई धुनाई व रजाई, गद्दा भराई आदि का कारोबार करते थे। नवरात्र पर्व के बाद काम शुरू हो जाता है। पिछले चार वर्षों से रुई के रेट लगभग बराबर हैं। कानपुर से गांठें मंगवाते हैं। काम्बर 70, फाइवर 100 व दोयम 120 अच्छी किस्म की रुई का मूल्य 150 रुपये है। यही रेट कई सालों से चले आ रहे हैं। सिर्फ कारीगरों की मजदूरी बढ़ी है।
 रोजाना 10-15 रजाई, गद्दे ही भराई के लिए आ रहे हैं। जबकि पिछली साल नवंबर माह में 30-40 रजाइयों की भराई हो जाती थी। इसका कारण वह बढ़ी बेरोजगारी को मान रहे हैं। लॉक डाउन में ज्यादातर ग्रामीणों व मध्यम वर्ग के लोगों से काम छिन गया। मौसम में सर्दी व नमी में वैसे भी काम नहीं हो पाता है। कुहरे में रुई धुनाई न हो पाने की वजह से तो बिल्कुल नहीं हो पाता।
मशीन लगाए राम आसरे बताते हैं कि काम बहुत धीमा चल रहा है। दो से चार रजाई गद्दे ही भरने के लिए आते हैं। इनमें धागा डालने वाली महिलाओं को भी रोजाना 250-300 रुपये की मजदूरी मिल जाती है। लेकिन कमी आने की वजह से इस पर भी प्रभाव पड़ा है। नौकर पेशा ज्यादातर अब जयपुर की रजाई, कंबल की खरीदारी आनलाइन कर रहे हैं। मध्यम वर्ग के लोगों के पास धन का अभाव है। दूसरी तरफ फेरी दुकानदार फाइवर से बनी रजाई गांवों में बेंचते है। वह रुई से सस्ती भी पड़ती हैं। इससे भी कारोबार प्रभावित हो रहा है। फिर भी दीपावली के बाद व दिसंबर में काम बढ़ने की उम्मीद लगाए हैं।

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