इक्ष्वाकु कुल में अवतरित महाराज अग्रसेनजी का अवतरण दिवस है, शारदीय नवरात्रि की एकादशी !

बस्ती,उत्तरप्रदेश


सनातन पञ्चाङ्ग (कालचक्र) के अनुसारशारदीय नवरात्रि के दिन परम् प्रतापी अग्रसेन जी का जन्म इक्ष्वाकु कुल में हुआ, इसी रघुकुल में राजा भगीरथ, मान्धाता, हरिश्चन्द्र, युयुत्सु, दशरथ जैसे अनेक परमप्रतापी व यशस्वी राजाओं का जन्म हुआ।


महाराजा अग्रसेन सूर्यवंशी भगवान श्रीराम जी के पुत्र कुश की चौतीसवीं पीढ़ी में द्वापर के अंतिम काल ( याने महाभारत काल ) एवं कलयुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल एकम को हुआ। कालगणना के अनुसार विक्रम संवत आरंभ होने से 3130 पूर्व हुआ। वृहत्सेन जी अग्रसेन के दादा थे, वे प्रतापनगर वर्तमान में ( आगरा व बल्लभगढ़ ) के महाराजा वल्लभसेन एवं माता भगवती देवी के ज्येष्ठ पुत्र शूरसेन के अग्रज भ्राता थे। बालक अग्रसेन को शिक्षा ग्रहण करने के लिए मुनि तांडेय के आश्रम भेजा जाता है। जहां से अग्रसेन एक अच्छे शासक बनने के गुण लेकर निकलते है।


15 वर्ष की आयु में, अग्रसेन जी ने महाभारत के युद्ध में पांडवो के पक्ष में युद्ध लड़ा, उनके पिता महाराज वल्लभसेन युद्ध के दसवें दिन पितामह भीष्म के बाणों से वीरगती को प्राप्त हुए। तब शोकाकुल अग्रसेन को भगवान श्रीकृष्ण ने शोक से उबरने का दिव्य ज्ञान देकर पिता का राजकाज संभालने का निर्देश दिया।


राज्य में हर नए बसने वाले नागरिक की एक रुपया एक ईंट से सहयोग करने की अभिनव पद्धति द्वारा आपने समाजवाद की आधारशिला रखी। महाराजा अग्रसेन आज भी पूजनीय हैं तो केवल इसलिए नहीं कि वे एक प्रतापी राजा थे, अपितु इसलिए कि आप क्षमता, ममता और समता की त्रिविध मूर्ति थे। आपके राज में कोई दु:खी या लाचार नहीं था। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजावत्सल, हिंसा विरोधी, "बली प्रथा को बंद करवाने वाले" समस्त जीव मात्र से प्रेम रखने वाले दयालु राजा थे। उनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे।


महाराजा अग्रसेन जी का पहला विवाह नागराज कुमुद की कन्या माधवी जी से हुआ था। इस विवाह में स्वयंवर का आयोजन किया गया था, जिसमें राजा इंद्र ने भी भाग लिया था। माधवी जी के अग्रसेन जी को वर के रुप में चुनने से इंद्र को अपना अपमान महसूस हुआ और उन्होंने प्रतापनगर में अकाल की स्थिति निर्मित कर दी। तब प्रतापनगर को इस संकट से बचाने के लिए उन्होंने माता लक्ष्मी जी की आराधना की। माता लक्ष्मी जी ने प्रसन्न होकर अग्रसेन जी को सलाह दी कि यदि तुम कोलापूर के राजा नागराज महीरथ की पुत्री का वरण कर लेते हो तो उनकी शक्तियां तुम्हें प्राप्त हो जाएंगी। तब इंद्र को तुम्हारे सामने आने के लिए अनेक बार सोचना पडेगा। इस तरह उन्होंने राजकुमारी सुंदरावती से दूसरा विवाह कर प्रतापनगर को संकट से बचाया। दो-दो नाग वंशो से संबंध स्थापित करने के बाद महाराज अग्रसेन के राज्य में अपार सूख-समृध्दि व्याप्त हुई। इंद्र भी अग्रसेन जी से मैत्री करने बाध्य हुए। दो दो नागराजों से संबंध होने के कारण ही अग्रवाल समाज के लोग नागकुल को अपना मामा कहते हैं।


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