अजर वेजान में हिन्दू मन्दिर में सेकड़ो सालो से प्रज्वलित है अखण्ड ज्योति


ईरान से आने वाले भी यहां टेकते मत्था, अब नहीं आता यहां कोई भी श्रद्धालु, १८६० में यहां से भागे पुजारी फिर कभी लौटकर नहीं आए ...!


 


भारत में इन दिनों नवरात्रि की तैयारियों की धूम है। अगले नौ दिनों तक भारत में देवी के नौ अवतारों की पूजा अर्जना की जाएगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत से दूर यूरोप और एशिया के बीच एक मुस्लिम देश में मां दुर्गा का मंदिर है और यहां अखंड ज्योत जल रही है ...!


पूर्वी यूरोप और एशिया के बीच एक मुस्लिम देश अजरबैजान है। यहां की ९५ % आबादी सिर्फ मुसलमानों की है। बावजूद इसके यहां सुराखानी में मां दुर्गा का ३00 साल पुराना मंदिर है, जहां सैकड़ों सालों से लगातार अखंड ज्योत जल रही है। इस खूबी की वजह से इस मंदिर का नाम टेंपल ऑफ फायर रखा गया है। हालांकि, अब यहां न तो श्रद्धालुओं की भीड़ देती है और न ही जयकारे गूंजते हैं ...!


 


हिंदू और पारसी दोनों करते थे पूजा ...


 


यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है। पुराने समय में रास्ते से होकर गुजरने वाले भारतीय व्यापारी यहां मत्था जरूर टेकते थे और मंदिर के पास बने कोठरियों में विश्राम करते थे। ईरान के पारसी लोग भी यहां पूजा करने आते थे। उन्हीं के कारण इसे आतेशगाह भी कहते हैं। उनके अनुसार यह एक पारसी मंदिर है ...!


हालांकि इस मंदिर पर एक त्रिशुल होने के कारण पारसी विद्वानों ने इसकी जांच करके इसे एक हिन्दू स्थल बताया है ...!


जोनस हैनवे (१७१२-१७८६) नामक एक १८ वीं सदी के यूरोपीय समीक्षक ने पारसियों और हिन्दुओं को एक ही श्रेणी का बताते हुए कहा कि 'यह मत बहुत ही कम बदलाव के साथ प्राचीन भारतीयों और ईरानियों में, जिन्हें गेबेर या गौर कहते हैं ...! 


'गेबेर' पारसियों के लिए एक फारसी शब्द है जबकि गौड़ हिन्दू ब्राह्मणों की एक जाति होती है। ऐसा कहा जाता है कि १८६० में यहां पूजा करने वाले पुजारी यहां से चले गए। फिर कोई पुजारी लौटकर नहीं आया। तब से इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना भी खत्म हो गया ...!


ऐसा माना जाता है कि सैकड़ों सालों पहले भारतीय कारोबारी इस रास्ते से होकर जाते थे। ऐसे में इन लोगों ने मंदिर को बनवाया था। इतिहासकारों के मुताबिक, इसे बुद्धदेव नाम के किसी शख्स ने बनाया था, जो हरियाणा के कुरुक्षेत्र के पास मादजा गांव का रहने वाला था। वहां मौजूद एक अन्य शिलालेख के मुताबिक, उत्तमचंद व शोभराज ने भी मंदिर निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी ...!


हिंदू धर्म में अग्नि को बहुत पवित्र माना जाता है। इसलिए यहां जल रही ज्योति को साक्षात भगवती का रूप माना गया है। यहां एक प्राचीन त्रिशूल भी स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर गुरुमुखी में लेख अंकित हैं। वहीं, मंदिर में प्राचीन वास्तुकला का उपयोग किया गया है ...!


बाकू आतेशगाह की दीवारों में जड़ा एक शिलालेख मौजूद है। इसकी पहली पंक्ति 'श्री गणेशाय नमः' से शुरू होती है और दूसरी ज्वालाजी (जवालाजी) को स्मरण करती है। इस पर विक्रम संवत १८०२ की तारीख है जो १७४५-४६ ईस्वी के बराबर है ...!


१९७५ में इसे एक संग्रहालय बना दिया गया और अब इसे देखने हर साल लगभग १५ हजार सैलानी आते हैं ..!


१९९८ में यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हैरिटेज साइट के लिए नॉमिनेट किया था। इसके बाद २००७ में अजरबैजान के प्रेसिडेंट द्वारा इसे एक राष्ट्रीय हिस्टॉरिकल आर्किटेक्चर रिजर्व एरिया घोषित कर दिया गया ....!


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