अध्यात्म,संस्कृति के लिए सर्वस्व निवेदित करदेने वाली भगिनी निवेदिता !

 


 


भगिनी निवेदिता जयंती 28 अक्तूबर पर विशेष


भगिनी निवेदिता


डा समन्वय नंद


 


विदेश से आकर भारत, भारतीयता, आध्यात्म संस्कृति  के साथ एकाकार होने वाली मार्गारेट एलिजाबेथ नोबल या भगिनी निवेदिता की आज जयंती है । अपने गुरु स्वामी विवेकानंद के जीवन आदर्श से प्रेरणा लेकर भगिनी निवेदिता भारत आयी थी। पाश्चात्य संस्कृति के बंधन तोड कर उन्होने न केवल भारतीय शिक्षा, संस्कृति तथा भारतीय विचार व जीवन पद्धति को अपनाया बल्कि सनातन हिन्दू धर्म और आध्यात्मिक जीवन स्वीकार कर भारत के सर्वांगीण कल्याणार्थ दीर्घकाल तक बहुत कार्य किया ।


एक ईसाई  रिलिजियस उपदेशक परिवार में जन्म लेने वाली मार्गारेट नोबल का मन बाल्यकाल से  अशांत रह रहा था । वह  सत्य की खोज कर  रही थी । वह ईसाई परिवार में जन्म लेने के बावजूद वहां की शिक्षा उन्हें  अश्रद्धापूर्ण विचारों से परिपूर्ण लग रहा था तथा उनकी धार्मिक भावनाओं को संतुष्ट नहीं कर पा रही थी । अतः उन्होंने चर्च व तथा इससे संबंधित तंत्र से संबंध तोड दिया । वह एक ऐसे धर्म की खोज में थी जो पंथ- उप पंथ की भावनाओं से दूर हो और मानवता  के सच्चे स्वरूप को दिखा सके । स्वामी विवेकानंद से मुलाकात होने से पहले तक वह उसी तरह संदेहावस्था में रही तथा सत्य की खोज करती रही । स्वामी विवेकानंद से मुलाकात ने उनके जीवन का मोड बदल दिया ।


भगिनी निवेदिता ने 1902 में हिन्दू महिला मंडल के भाषण के दौरान अपने इस सत्य के अन्वेषण के अनुभव को साझा किया था । इसमें उन्होंने कहा था स्वामी विवेकानंद से उनकी जब भेंट हुई तब  वह उनके विश्वासों में आमुल परिवर्तन लाने वाला क्षण आया । वह बाद में उनके गुरु बने । उनकी शिक्षाओं, सिद्धांतों व उपदेशों ने उनकी व्याकुल आत्मा को वह शांति दी जिसकी उन्हें लंबे समय तक चाह थी ।


स्वामी जी से संपर्क में आने के बाद मार्गारेट एलिजाबेथ नोबल ने अपना संपूर्ण जीवन एक महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कर दिया तथा उनके गुरु द्वारा दिये गये नाम -‘निवेदिता’ को पूर्णतः सार्थक कर दिया । निवेदिता का अर्थ होता है पूर्ण समर्पिता । उन्होंने अपना नाम और हिन्दू गुरु –शिष्य परंपरा के अनुरुप अपने कार्य व श्रम के फल को अपने गुरु व तथा परम गुरु के चरणों में समर्पित कर दिया । उन्हें जो जीवन प्रकाश व सामर्थ प्राप्त हुई थी उसका उदगम स्थान स्पष्ट करने के लिए वह अपना उल्लेख  रामकृष्ण- विवेकानंद की ‘निवेदिता’ किया करती थी ।


भगिनी निवेदिता ने भारत को अपना बना कर कार्य शुरु करने के बाद पूरा जीवन भारत के उत्थान के लिए लगा दिया । वह न केवल भारत के आध्यात्मिकता के साथ एकाकार हुई बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी उन्होंने भरपूर योगदान दिया । भारत की स्वतंत्रता के लिए संग्राम कर रहे क्रांतिकारियों के लिए वह प्रेरणास्रोत रही । उनका राष्ट्रप्रेम उनके प्रत्येक कार्य में स्पष्ट रुप से झलकता था । उन्होंने भारत में  स्त्रियों के लिए कार्य किया । उन्होंने कन्या पाठशाला चलाया ।  भारत में राष्ट्रीयता की भावना को प्रखर बनाने में उन्होंने महती भूमिका निभाई ।


उनके गुरु स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र, राष्ट्र निर्माण व राष्ट्रीयता जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया लेकिन भगिनी  निवेदिता के लिए ये शब्द प्रधान शब्द बन ये । अपने विचारों, लेखन व भाषण में सदैव उन्होंने इन्ही शब्दों का प्रयोग किया है ।  


प्रसिद्ध अर्थशास्त्री विनय सरकार उनके बारे में लिखा है – “ निवेदिता प्रत्येक क्षेत्र की एक मानववादी जनसेविका थी। देशभक्ति, शिक्षा, राजनीति, राष्ट्रवाद, उद्योगधंधों से संबंधित क्षेत्र, इतिहास समाजसेवा,नैतिक सुधार, स्त्री कल्याण का क्षेत्र  हर क्षेत्र में उनकी बराबर की रुचि थी । 1905से 1910 तक बंगाली आंदोलन के दौरान बंगाली युवकों के लिए निवेदिता का नाम पर जादुई महत्व रखता था । उन दिनों कलकत्ता में जिस जिसने आंदोलन में भाग लिया हर किसी की वे सहयोगिनी रहीं । ”


डा रास बिहारी बोस ने भगिनी निवेदिता की मौत पर आयोजित शोक सभा में अध्यक्षता करते हुए कहा – “ यदि भारत के शुष्क अस्थियों में चेतना जागृत हुई है तो वह भगिनी निवेदिता के कारण जिन्होंने उनमें चैतन्यता भर दी थीं । एक नवीन उच्च सत्यनिष्ठ तथा सर्वोत्कृष्ट जीवन की आकांक्षा आज के युवा वर्ग में उत्पन्न हुई है, तो इसका श्रेय निवेदिता को जाता है, जिन्हें काल के क्रुर हाथों ने हमसे छिन लिया है । भारत ने भूतकाल में जो असामान्य यश अर्जित किया था, मानवजाति की संस्कृति को जो अनमोल धरोहर प्रदान की है, उन पर गौरवान्वित होकर वर्तमान काल में सामाजिक एकता का निर्माण करना,यही भगिनी निवेदिता के कार्य का उद्देश्य था । भारत मानवीय इतिहास में आगे भी  महान कार्य करेगा, जो अपनी अमीट छाप छोडेगा,ऐसा उन्हें विश्वास था । भारत पूरे विश्व में का मार्गदर्शक बनेगा यह आशा वह रखती थी । “


रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने भगिनी निवेदिता को लोक माता कह कर संबोधित किया था । उन्हेंने कहा था कि “जिन्होंने निवेदिता को देखा उन्होंने मनुष्य के मनुष्यत्व के दर्शन किये । चैतन्यता के मूर्त स्वरूप के दर्शन किये । “


अपना पूरा जीवन भारत के प्रति समर्पित करने के बाद भगिनी निवेदिता ने 13 अक्तूबर 1911 को अपनी जीवन यात्रा पूरी की । हिमालय की गोद में दार्जिलिंग शहर में भगिनी निवेदिता का जहां अंतिम संस्कार किया गया था वहां  उनकी स्मृति में  भारत के लोगों ने एक समाधि बनायी है तथा  इस समाधि में पर एक  शिलालेख लगाया  है । भारत के लोगों ने इस शिलालेख में   लिखा है -  “जिन्होंने   अपना सर्वस्व भारत को समर्पित कर दिया, वह  भगिनी निवेदिता,यहां चीर विश्राम कर रही हैं । ” वास्तव में शिलालेख में भारत के लोगों ने यह लिख कर उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि व कृतज्ञता ज्ञापित की है ।


रामकृष्ण- विवेकानंद की निवेदिता के समर्पित जीवन समाप्त हो गया । उनके जीवनीकार प्रव्राजिका आत्माप्राणा के अनुसार उनकी जीवन वास्तव में उनके दृढ संकल्पित प्रार्थना की पूर्णता थी । उनकी प्रार्थना थी – “है ईश्वर, गुरु का स्मरण कर मुझे निर्भयपूर्वक , जो सत्य है, वह बोलने का सामर्थ्य प्रदान करें । मेरे एक- एक शब्द द्बारा मेरे गुरु का पवित्र, निर्मल तथा निष्कलंक जीवन प्रवाह अखंड रुप से प्रवाहित होता रहे । ताकि मृत्यु समय पर मुझे इस बात का दुःख न रहे कि मैने उनकी आकांक्षाओं  को पूर्ण नहीं किया । मैं उनके चेहरे पर वही विश्वास एक बार फिर से देखना चाहती हूं ताकि मृत्यु से पहले मुझे यह गम न रहे कि मैने उन्हें निराश किया । यही मेरी प्रार्थना है । ”


 


 


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