890 प्रोन्नत हेडकांस्टेबल को फिर बनाया कांस्टेबल पुलिस मुख्यालय की माया!

उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग ने फिर 890 प्रोन्नत पुलिस वालों को सिपाही बनादिया है,यह आदेश


यूपी में डीआईजी कार्मिक एवं स्थापना डॉ. राकेश शंकर की तरफ से जारी एक आदेश के तहत नागरिक पुलिस में हेड कांस्टेबल पद पर कार्यरत 890 पुलिस कर्मियों को पदावनत करते हुए पीएसी में कांस्टेबल पद पर वापस भेजा गया है। वर्षों पहले पीएसी से नागरिक पुलिस में आए ये पुलिस कर्मी प्रोन्नत होकर हेड कांस्टेबल बने थे। इसी तरह एडीजी स्थापना की तरफ से डीएसपी स्थापना सुधीर कुमार सिंह द्वारा जारी एक आदेश के तहत विभिन्न जिलों में सब इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत 6 पुलिस कर्मियों को पदावनत कर पीएसी में कांस्टेबल के उनके मूल पद पर भेज दिया गया है। डीएसपी स्थापना सुधीर कुमार सिंह की तरफ से ही जारी एक अन्य आदेश के तहत विभिन्न जिलों में कांस्टेबल पद पर तैनात 22 पुलिसकर्मियों को पीएसी में कांस्टेबल पद पर ही वापस भेज दिया गया है। 


 


डीजीपी मुख्यालय की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है कि कांस्टेबल जितेन्द्र कुमार सिंह एवं तीन अन्य ने अपनी प्रोन्नति के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर हाईकोर्ट ने विभाग को याचिका कर्ताओं के प्रत्यावेदन पर छह हफ्ते में निर्णय लेने का आदेश दिया था। चारों याचिकाकर्ता पीएसी संवर्ग में भर्ती हुए थे और परिचालनिक कारणों से जनपदीय पुलिस में स्थानान्तरित हुए थे। हालांकि उनका काडर परिर्वतन नहीं हुआ था। प्रत्यावेदन पर विचार कर संस्तुति देने के लिए विभाग ने एक चार सदस्यीय कमेटी बनाई। 


 


कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कुल 932 कांस्टेबल पीएसी में भर्ती हुए थे। कमेटी ने इनमें से 910 को पदावनत कर कांस्टेबल के पद पर पीएसी काडर में वापस करने और 22 कांस्टेबल को उसी पद पर पीएसी काडर में वापस करने की सिफारिश की। इन 910 में से 6 वर्तमान में पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत हैं। शेष 904 कर्मचारियों में से 14 या तो रिटायर हो गए हैं या उनका निधन हो गया है, जबकि 890 पुलिस कर्मी हेड कांस्टेबल पद पर कार्यरत हैं। पुलिस मुख्यालय का कहना है कि पुलिस में कांस्टेबल पद पर भर्ती के दो मूल कैडर हैं-नागरिक पुलिस व पीएसी। यह सभी अपने मूल काडर में ही प्रोन्नति पाते हैं। पीएसी से पुलिस में स्थानान्तरण के लिए जारी आदेश में काडर परिर्वतन का कोई उल्लेख नहीं किया गया था और नही नियमावली या शासनादेश में इसका कोई प्रावधान ही है।


सरकारों को विचारना चाहिए आखिर केसी भी अच्छे बुरे निर्णय का साइड इफेक्ट तो सरकार को ही भुगतना है!


 


 


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