कोई कांग्रेसी राहुल को इतिहास तो पढ़ाए!

इतिहास ठीक से पढें राहुल गांधी”


 


 


 


डा समन्वय नंद


 


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने लदाख के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा के निकट भारत व चीन के बीच उत्पन्न तनावपूर्ण स्थिति को लेकर केन्द्र सरकार पर निशाना साधा है । उन्होंने ट्वीट कर कहा बै कि चीन ने लदाख के कुछ हिस्सों को ले लिया है, पर प्रधानमंत्री इस बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं ।


 


राहुल गांधी को इस तरह के बयान देने से पूर्व कांग्रेस के शासन के इतिहास को भी सही रुप से पढ लेना चाहिए था ।


 


माओ की लाल सेवा ने जब चीन पर कब्जा कर लिया व माओ ने 1949 के पहली अक्तूबर को चीनी जनवादी गणतंत्र स्थापना की घोषणा कर दी तब दुनिया का कोई देश चीन की इस सरकार को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं थे । लेकिन तब पंडित जवाहर लाल नेहरु के प्रधानमंत्रित्व वाली भारत की सरकार उन कुछ गिने चुने देशों में था जिन्होंने पहली बार इस सरकार को मान्यता प्रदान की । 30 दिसंबर 1948 को ही भारत सरकार ने माओ द्वारा स्थापित इस सरकार को मान्यता प्रदान कर दी थी । इसके बाद धीरे धीरे विश्व के अन्य देशों में भी चीन को मान्यता प्रदान करना शुरु कर दिया ।


 


इसके बाद से ही यानी 1949 से ही चीन ने तिब्बत में प्रवेश कर उस पर कब्जा करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी । तिब्बत को कब्जा करने के इस प्रयास को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल देख पा रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री नेहरु को यह दिख नहीं रहा था । 7 नवंबर, 1950 को केन्द्रीय कैविनेट की बैठक होनी थी । किन्ही कारणों से सरदार पटेल इस बैठक में सम्मिलित नहीं हो पाये थे । लेकिन उन्होंने चीन द्वारा तिब्बत को हडपे जाने को लेकर एक लंबा पत्र लिखा था तथा अनुरोध किया था कि इस पत्र को कैविनेट बैठक में पढ लिया जाए । इस पत्र में उन्होंने कहा था तिब्बत पर चीन द्वारा आक्रमण का अर्थ ही यह भारत पर आक्रमण है तथा यदि इसका प्रतिकार नहीं किया गया तो चीन तिब्बत को लेने के बाद चुप्प नहीं बैठेगा बल्कि इसके बाद वह भारत पर भी हमला करेगा । लेकिन पंडित नेहरु ने सरदार पटेल की इस चेतावनी को नजर अंदाज कर दिया था । शायद उन्हें लगता होगा कि सरदार पटेल तो किसान नेता हैं, विदेश नीति के बारे में उनका ज्ञान कैसे हो सकता है ।कैंब्रिज में पढे होने के कारण विदेश नीति उन्हें ही मालूम है । हो सकता है कि इस कारण पंडित नेहरु ने सरदार पटेल के चेतावनी को खारिज कर दिया था लेकिन बाद के दिनों में यह बात प्रमाणित हो गई कि एक किसान नेता चीन की मंशा व भविष्य को ठीक से देख पा रहा था लेकिन अपने आप को विदेशनीति का ज्ञाता मानने वाले व्यक्ति अंततः गलत प्रमाणित हुआ ।


 


 


 


 


 


1949 के बाद ही चीन तिब्बत में घुस कर इसे धीरे धीरे कब्जा करना प्रारंभ कर दिया । महात्मा बुद्ध की 2500 वीं जयंती के लिए 1956 में भारत सरकार ने परम पावन दलाईलामा को आमंत्रित किया था । इस आमंत्रण पर दलाईलामा भारत आये थे । भारत में आने के बाद दलाई लामा ने चीन तिब्बत की भूमि पर किस ढंग से कब्जा कर रहा है इसका विवरण पंडित नेहरु को दिया । दलाई लामा ने पंडित नेहरु को बताया कि केवल तिब्बत पर कब्जा जमाने के बाद चीन चुप चाप नहीं बैठेगा वह इसके बाद भारत की जमीन को भी निगलने की कोशिश करेगा । लेकिन पंडित नेहरु ने उन्हें स्पष्ट शब्दों कहा कि “आप को जान लेना चाहिए, भारत इस मामले में आप को किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकता ।” “केवल इतना ही नहीं बाद में जब चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई भारत के दौरे पर आये तो पंडित नेहेरु ने यह सारी बातें उन्हें बता दी । परम पावन दलाई लामा ने अपनी आत्म कथा फ्रीडम इन एग्जाइल में इसका विस्तार से उल्लेख किया है।


 


तिब्बत पर अधिकार करने के बाद से चीन ने अपना असली रुप दिखाना प्रारंभ कर दिया । सिक्यांग व तिब्बत को जोडने के लिए चीन ने लदाख स्थित भारतीय इलाके में सडक निर्माण का कार्य शुरु कर दिया । पंडित नेहरु ने इस बात को छुपा कर रखा व इस बात को सार्वजनिक नहीं किया । लेकिन सडक निर्माण का काम समाप्त होने के बाद ही 1953-54 में चीन ने स्वयं ही सडक निर्माण का कार्य समाप्त होने के बारे में घोषणा कर दी । तब पंडित नेहरु को इस बात को छुपाने मुश्किल हो गया । चीन द्वारा घोषणा किये जाने के बाद देश में इस बात की प्रवल प्रतिक्रिया हुई । संसद में भी प्रतिक्रिया देखी गई । पंडित नेहरु के पास इसका कोई उत्तर नहीं था । इस कारण पंडित नेहरु ने गुस्से में कहा कि चीन ने जिन इलाकों पर कब्जा किया है वहां घास का तिनका तक नहीं उगता । इसके उत्तर में सांसद महावीर त्यागी ने कहा था, मेरे सिर पर भी बाल नहीं हैं तो क्या इस सिर को भी काट कर चीन को दे दें । 


 


उस समय चीन तिब्बत के साथ साथ भारत में अतिक्रमण करने में व्यस्त था लेकिन पंडित नेहरु देशवासियों से यह बात छुपा रहे थे । घास का तिनका न उगने जैसे कलंकित बयान दे रहे थे ।


 


इसके बाद 1962 में चीन ने प्रत्यक्ष तौर भारत पर हमला कर दिया । इस युद्ध में क्या हुआ और भारत ने कितनी भूमि खोई इसके बारे में विशेष उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है ।


 


इस कारण राहुल गांधी को इतिहास को पढने की आवश्यकता है । भारत के तत्कालीन नेतृत्व के अदूरदर्शिता के कारण भारत ने कैसे हजारों मील की जमीन खोई है इसका अध्ययन राहुल गांधी को करना चाहिए । वर्तमान की सरकार चीन का मुकाबला कर रही है । जमीन खो नहीं रही है । डोकलाम से लेकर अब तक भारत चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रही है, सीमा में सडकें व अन्य अव संरचनाओं के विकास के कार्य तेज कर रही है । इस कारण चीन को कष्ट हो रहा है ।


 


विपक्ष की भूमिका में राहुल गांधी सरकार के गलत नीतियों को विरोध करना चाहिए, इसमें किसी प्रकार का द्विमत नहीं हो सकता । विरोध के लिए अनेक मुद्दे हो सकते हैं । जब सीमा पर तनाव है तब राहुल गांधी को इस तरह का बयान देकर अपने अपरिपक्वता को ही प्रमाणित किया


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