खगोलीय ग्रहण के प्रथम आविष्कारक आचार्य अत्रि

 


 


 आर्यावर्त के ऋषि-मनीषियों को ग्रह नक्षत्रों व खगोलीय घटनाओं और परिघटनाओं    का ज्ञान बहुत पहले से ही रहा  है। महर्षि अत्रि ग्रहण के ज्ञान को देने वाले प्रथम आचार्य माने गए हैं। ऋग्वेद के एक मन्त्र में यह चमत्कारी वर्णन मिलता है कि "हे सूर्य ! असुर राहु ने आप पर आक्रमण कर अन्धकार से आपको विद्ध (ढंक) कर दिया, उससे मनुष्य आपके रूप को पूर्ण रूप से देख नहीं पाए और हतप्रभ हो गए। तब महर्षि अत्रि ने अपने अर्जित ज्ञान की सामर्थ्य से छाया का दूरीकरण कर सूर्य का उद्धार किया।"


अस्तु आचार्य अत्रि ग्रहण खोजने के विश्व के प्रथम आचार्य हुए



ग्रहण ऒर तत् निषेध!


मत्स्य पुराण  के अनुसार, ग्रहण का संबंध राहु-केतु और उनके द्वारा अमृत पाने की कथा से है। एक बार स्वरभानु नाम का राक्षस अमृत पीने की लालसा में रूप बदलकर सूर्य और चंद्र के बीच बैठ गया लेकिन भगवान विष्णु ने उसे पहचान लिया, लेकिन तब तक स्वरभानु अमृत पी चुका था और अमृत उसके गले तक आ गया था। तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन यह राक्षस अमृत पी चुका था इसलिए मरकर भी जीवित रहा। इसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु। कथा के अनुसार, उस दिन से जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है।


 


महाभारत में सूर्यग्रहण


 


महाभारत युद्ध की शुरुआत ग्रहण के समय हुई थी। वहीं युद्ध के आखिरी दिन भी ग्रहण था। इसके साथ ही युद्ध के बीच में एक सूर्यग्रहण और हुआ था। इस तरह 3 ग्रहण होने से महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। महाभारत में अर्जुन ने प्रतिज्ञा ली थी कि वो सूर्यास्त के पहले जयद्रथ को मार देंगे वरना खुद अग्निसमाधि ले लेंगे। कौरवों जयद्रथ को बचाने के लिए सुरक्षा घेरा बना लिया था, लेकिन उस दिन सूर्यग्रहण होने से सभी जगह अंधेरा हो गया। तभी जयद्रथ अर्जुन के सामने यह कहते हुआ आ गया कि सूर्यास्त हो गया है अब अग्निसमाधि लो। इसी बीच ग्रहण खत्म हो गया और सूर्य चमकने लगा। तभी अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया।


 


सूर्यग्रहण का ज्योतिषीय महत्व


 


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं माने जाते हैं। बताया जाता है, कि अगर ऐसा होता है तो प्राकृतिक आपदाएं और सत्ता परिवर्तन देखने को मिलता है। ग्रहण से देश में रहने वाले लोगों को नुकसान होता है। बीमारियां बढ़ती हैं। देश की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते हैं।


 


सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक पहलू


 


विज्ञान के अनुसार, सूर्यग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब चंद्रमा घूमते-घूमते सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य की चमकती रोशनी चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ती। चंद्रमा के कारण सूर्य पूर्ण या आंशिक रूप से ढकने लगता है और इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है।ग्रहण पर वैदिक,पौराणिक व वैज्ञानिक मान्यताएं लगभग एक जैसी ही हैं।विज्ञान जहाँ तर्क ढूढ़ता है वही आस्था सकारात्मकता।इसीलिए धर्म को विज्ञान ही कुछ लोग कहते है।


विश्व के प्रथम खगोल वेत्ता आचार्य अत्रि ही है,उन्होंने ही पहली बार बताया कि ग्रहण क्या और क्यों होता है।


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