बस्ती,उत्तर प्रदेश
एक विशेष प्रकार मानसिक ताप का कोविड-19 के मर्म से आहत होकर एक और साथ जन्म ले रहा है। वह अवसाद है समाज के अंतर गत चौराहे पर खड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ ता के साथ किंकर्तव्यविमूढ़ मध्यम वर्गिय परिवार
लगभग
- 55 दिन के लाके डाउन के बाद अनेक लोग गंभीर मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। जिनका पेट भरा है ,और जिनके पास अकूत संपदा हैं ,उनके लिए तो कोई बात नहीं ।जो सबसे निम्न वर्ग के हैं जिन्हें मजदूर वर्ग या वीकर सेक्शन कहा जाता है वहां निसंदेह सरकार का खजाना खुला हुआ है पर क्या निम्न मध्यमवर्गीय नागरिकों पर भी किसी समाज ने, सरकार ने राजनीतिक पार्टी ने ध्यान दिया है ।
निम्न मध्यमवर्गीय परिवार इज्जत भी बचाना चाहता है और किसी से कहना भी नहीं चाहता ।साथ ही भोजन भी करना चाहता है ।अधिकांश परिवारों की स्थिति हैंड तू माउथ हो गई है ।गंभीर त्रासदी से जूझ रहा निम्न मध्यमवर्गीय परिवार अधिकांश की स्थिति बेहद तनाव से जी रहा है ।रोटी नहीं तो चावल ,चावल नहीं तो दाल दाल नहीं तो सब्जी। उसकी स्थिति इतनी विकट हो गई है कि वह कुछ किसी से कह भी नहीं सकता और कहे तो कोई विश्वास नहीं कर सकता ।
सरकारेन किसी के घाव पर मरहम लगा सकती हैं पर मध्यमवर्गीय लोगों के बारे में जिसके पास राशन कार्ड तक नहीं है वह कहां से राशन प्राप्त करेंगे। और इज्जत भी बचाना है साथ ही साथ व्यापारिक माहौल और औद्योगिक माहौल तनावपूर्ण हो गया है। व्यापारिक प्रतिष्ठान मझोले प्रतिष्ठान जो बेरोजगारी कम करसकते है ।वे छोटे छोटे स्थानों पर बड़ी संख्या को रोजगार दे सकते थे वह लगभग बंद है ।कपड़ा व्यवसाय ,सराफा व्यवसाय ,ऑटो व्यवसाय ,माल से व्यक्ति को पैसा भी मिलता है और काम भी होता है ।सरकार इस बारे में निर्णय कब लेडी? यह तो पता नहीं पर इतना जरूर कहना है कि सरकार को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्रतिष्ठानों को खोलने की अनुमति कठोर नियमों को बना कर देना चाहिए।
बहुत गंभीर स्थिति तो है जिसके पास धन नहीं है धर्म भी नहीं कर सकता 55 दिनों के लाकडाउन्न से वह मोक्ष की परिभाषा भी नही कर सकता ।परंतु पेट की
जठराग्नि को मध्यम वर्ग कैसे बुझाए?क्या वह
धर्म अर्थ काम मोक्ष को देखें ?राजनीति पक्ष-विपक्ष दोनों ओर से हो रही है पर मध्यमवर्गीय लोगों को ध्यान देने वाला कोई नहीं है. सरकार से आग्रह है कि मध्यमवर्गीय परिवारों को मध्यमवर्गीय समाज को और मध्यमवर्गीय व्यवसाय को उबारने के लिए प्रयत्न करें. अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश की 75% आबादी का प्रतिनिधित्व मध्यमवर्गीय ही करता है ।उस पर कोई ध्यान नहीं ।निम्न वर्गीय पटिवरो को सरकार से पोषण मिला ता है मध्यमवर्ग जाए तो जाए कहां ।?इसलिए मध्यम वर्ग के लिए स्थिति यही है कि न खुदा ही मिला न विसाले सनम ना इधर के रहे ना उधर के रहे.