तालाबन्दी के कारण 70 प्रतिशत सूचीबद्ध कम्पनियों का राजस्व शून्य

 लखनऊ,उत्तर प्रदेश

भारत में कोविड-19 के कारण हुआ लॉकडाउन दूसरे महीने में प्रवेश कर गया है, लिहाजा करीब 70 फीसदी सूचीबद्ध कंपनियां अब अप्रैल 2020 में या तो काफी कम राजस्व के परिदृश्य का सामना कर रही हैं, जो फिक्स्ड यानी तय लागत मसलन वेतन व मजदूरी और कर्ज पर ब्याज चुकाना उनके लिए मुश्किल बना रहा है। ये 1565 कंपनियां गैर-आवश्यक श्रेणी की हैं और मार्च 2019 के आखिर में यहां करीब 30 लाख पूर्णकालिक कर्मचारी थे जिन पर मासिक वेतन खर्च वित्त वर्ष 2020 के दौरान करीब 31,000 करोड़ रुपये रहा। इसके अलावा इन कंपनियों को हर महीने 33,000 करोड़ रुपये ब्याज भी चुकाना होता था।

ये खर्च वित्त वर्ष 2020 के पहले नौ महीने के उनके लाभ-हानि खाते पर आधारित हैं। इन 1565 कंपनियों ने वेतन व मजदूरी पर अप्रैल-दिसंबर 2019 के दौरान 2.82 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जबकि उधारी पर ब्याज के रूप में 2.96 लाख करोड़ रुपये चुकाए। कुल 2205 कंपनियों ने वित्त वर्ष 2020 के पहले नौ महीने के लाभ-हानि खाते पेश किए हैं, जिनमें से सिर्फ 637 कंपनियां ही आवश्यक श्रेणियों मसलन खाद्य प्रसंस्करण, बैंक, बीमा, दूरसंचार, मीडिया, बिजली, तेल व गैस, दवा, केमिकल, खनन और आईटी सेवा में परिचालन कर रही हैं। लॉकडाउन के कारण राजस्व के करीब-करीब बंद होने से कॉरपोरेट व कारोबारी दिग्गजों के सामने वित्तीय समस्या पैदा हुई है क्योंकि उन्हें अपने कर्मचारियों को वेतन देना है और लेनदारों को ब्याज व कर्ज का भुगतान करने के लिए संसाधन जुटाना होगा। उदाहरण के लिए मारुति सुजूकी की बिक्री अप्रैल 2020 में शून्य रही। हुंडई इंडिया, टाटा मोटर्स, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, बजाज ऑटो और हीरो मोटोकॉर्प आदि के साथ भी ऐसी ही स्थिति रही। टिकाऊ उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनी मसलन हैवल्स इंडिया, बजाज इलेक्ट्रिकल्स, टीटीके प्रेस्टीज व वोल्टास आदि भी ऐसी ही परिस्थिति से जूझ रही हैं।


 


बड़ी कंपनियों का कहना है कि वे अपनी आरक्षित नकदी में से अप्रैल का वेतन देने में सफल रही है। लेकिन यह लंबे समय लक नही हो सकता। या कंपनियों का कहना है, 'नकदी प्रभा और राजस्य के बिना वेतन देना संभव नही होगा। अभी या बाद में हमें यह बंद करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।' यदि आरबीआई और केंद्र सरकार तुरंत सक्रियता नही दिखाती है तो कोविड-19 महामारी से उद्योग और उससे जुड़े लोग बुरी तरह से प्रभावित होंगे।


 


उद्योग के दिग्गज मौजूदा संकट से मुकाबले के लिए सस्ती नकदी की मांग कर रहे है और उपभोक्ता मांग बढ़ाए जाने की संभावना तलाश रहे हैं। कोई भी इसका अंदाजा नही लगा सकता कि एक महीने तक राजस्व शून्य बना रहेगा और उसके बाद धीमी मांग का लंबे समय तक मार्जिन पर दबाव बना रह सकता है।


 


मार्च 2019 के अंत तक ज्यादातर रोजगार टेक्स्टाइल और गारमेंट सेक्टर में सूचीबद्घ कंपनियों से जुड़े हुए थे और इन क्षेत्रों ने लगभग 5 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया। इन कंपनियों का संयुक्त मासिक वेतन बिल वित्त वर्ष 2020 के पहले 9 महीनों के दौरान लगभग 1700 करोड़ रुपये था। इसके बाद 4 लाख लोगों के साथ गैर बेंकिग क्षेत्र का स्थान है और वित्त वर्ष 2020 के पहले 9 महीनों के दौरान इस क्षेत्र में लगभग 3300 करोड़ रुपये का मासिक वेतन बिल दर्ज किया गया। कुल वेतन बिल के मामले में वाहन निर्माताओं और उनके कलपुर्जा आपूर्तिकर्ता शीर्ष पर रहे। औसत तौर पर वाहन उद्योग ने वित्त वर्ष 2020 के दौरान अपने कर्मचारियों पर प्रति महीने लगभग 8,000 करोड़ रुपये खर्च किए। इसके बाद धातु उद्योग का स्थान रहा, जिसने टाटा स्टील,  हिंडाल्को और वेदांत जैसे प्रमुख उत्पादकों के साथ वित्त वर्ष 2020 के दौरान लगभग 4500 करोड़ रुपये का मासिक वेतन बिल दर्ज किया। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि लॉकडाउन से प्रभावित कर्मचारियों का वास्तविक आंकड़ा कंपनियों द्वारा दर्ज आंकड़े की तुलना में काफी ज्यादा हो सकता है। कंपनियां अपनी सालाना रिपोर्ट में खासकर अपने पूर्णकालिक कर्मचारी की जानकारी देती है और अनुबंधित कर्मियों को इसमें जिक्र नहीं होता है। निर्माण और सेवा क्षेत्रों में पूर्णमालिक कर्मियों की तुलना में ठेका श्रमिकों की संख्या 2-3 गुना है।


 


 


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