शताब्दी का सबसे बड़ा आर्थिक,सामाजिक संकट,वैश्विक अर्थव्यवस्था अंधी सुरंग की ओर!

 


 


 


 


वैश्विक  सुरसा से  भय सेआखिर पूरा विश्व   स्तब्ध व किंकर्तव्यविमूढ़ सा होगया है।शताब्दी का सबसे बड़ा संकट है  ,यह महामारी।


वैश्विक महामारीसे पूरी दुनियामें अर्थव्यवस्थापर गम्भीर प्रभाव पड़ रहा है। उद्योग-व्यापार मंदीकी गिरफ्त में आ गये हैं और रोजगारपर भी खतरा मंडराने लगा है। भारतमें इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है लेकिन सर्वाधिक रोजगार देनेवाले सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग गम्भीर संकटमें हैं। लाकडाउनसे इन्हें काफी क्षति उठानी पड़ी है। यदि लाकडाउनकी अवधि बढ़ती है तो एक करोड़ ७० लाख छोटे उद्योग हमेशाके लिए बंद हो सकते हैं। इन इकाइयोंके पास पूंजीका अभाव उत्पन्न हो गया है जिससे इन्हें चलाना दुष्कर हो गया है। देशमें इस समय छह करोड़ ९० लाख ऐसी इकाइयां हैं। विशेषज्ञोंका मानना है कि यदि कोरोना संकट चारसे आठ माहतक बढ़ता है तो देशकी १९ से ४३ प्रतिशत लघु उद्योग सदैवके लिए बंद हो जायगे और इससे अर्थव्यवस्था और रोजगार पर भी काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। हर क्षेत्रमें छंटनी हो सकती है। होटल उद्योगमें लगभग पांच करोड़ लोगोंकी नौकरी लगी है। इनमेंसे एक करोड़ २० लाख लोगोंकी नौकरी जा सकती है। इसी प्रकार दस लाख लोग बेरोजगार हो सकते हैं। लघु उद्योग में अप्रत्यक्ष या अस्थायी रूपसे भी काफी लोगोंकी आजीविका चल रही है। इनके सामने बड़ी चुनौती उत्पन्न हो गयी है। पूरी स्थिति अत्यन्त भयावह है और छोटे उद्योगोंको पटरीपर लानेमें समय लग सकता है। ऐसी स्थितिमें सरकार और बैंकिंग क्षेत्रकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी ऐसे उद्योगोंको चलानेके लिए वित्तीय संसाधनोंको उपलब्ध करानेकी है। भारत सरकारको इसपर विशेष रूपसे विचार करते हुए राहत पैकेज लानेकी आवश्यकता है। इसमें शीघ्रता जरूरी है। छोटे-मझोले उद्योगोंको संकटसे उबारनेके लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी तभी ऐसी इकाइयां खड़ी हो पायंगी।


सरकार सबका समाधनयोजना योजना लागू करना भी चाहे तो नही करसकती है आखिर सरकार की भी अपनी सीमा है।ऐसी स्थिति में आज ही से जिन खर्चो को टाला जासकता है उसे टालने के मन अभी से ही सरकार ,बड़े उद्योगपति व रणनीति कारो को  विना समय गवाए सोचना चाहिये।महामारी से जहां बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आघात लगेगा उसी तरह लाखो युवा जो अपनी प्रतिभा का लोहा वैश्विक स्तर पर मनवा रहे है उनके घर बैठने काभी खतरा आसन्न है।


विकास परक योजनाओ को कुछ दिन स्थगित कर 130 करोड़ की  भोजन की न्यूनतम व्यवस्था (रोटी, कपड़ा) तो जरूरी ही है।नीति आयोग को तुरन्त  विचारना चाहिए।सब खत्म होने पर  फिर क्या करेंगे?जब सबकुछ मंहगाई और महामारी लील लेगी। तब कुआ खोदेंगे  तब पानी कबतक पिलापायेगे ?


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