*बृजवासिन की ललकार*
कोरोना तेरो नाश जायेगो ,
तोकू ठौर मिलैगौना |
तैने बृजवासिन सै छीन लियौ है ,
जलेबी कचौड़ी कौ दौना ||
घर मैं बैठै तरस रहै हैं लड्डू ,रबड़ी, छैनांकू |
पान मसालों रीत गयों है,
मिलै कहीं ना तंबाकू ||
अँखियाँ कब से तरस रहीं हैं
ठाकुर जी के दर्शन कू |
यमुना मईया याद करै हैं,
अपने भोले भक्तन कू ||
तौकू शरम नैक ना आवै ,
बालक बैठै पढ़वे ते |
तोए कहा आराम मिलै है ,
सास बहू के लड़वे ते ||
मारग सूने, पनघन सूनी ,
सूने कुंजन गलियारे |
बृजवासिन कौ श्राप है तौकू ,
जन जन के ओ हतियारे ||
बृजवासिन की बाट तकै है, भूखे, बंदर, पंछी गईया |
व्याकुल हैके राह तकै हैं
वृक्षन की शीतल छईया |
मरी पूतना, कंस बचयौ ना, कान्हा के प्रहार ते |
तू तो पल मैं मिट जायैगो ,
बृजवासिन की इक ललकार ते ||