खुला खत प्रधानमंत्री के नाम
माननीय प्रधानमंत्री जी!
सादर अभिवादन!
वैश्विक महामारी सुरसा से भी भयानक रूप लेती जारही है।आप आजकी विषम परिस्थिति में देश के अंदर और देश के बाहर भी अपनी वैचारिक व कर्मठ सैन्य शक्ति के साथ लड़ ही रहे है।आपके सतत सद्प्रयासों व जागरूकता के बाद भी कथित रक्तबीज(अनुशासन हीन व उन्मादी)मान नही रहे है।आसुरी शक्तियों की तरह मौका पाते ही संक्रमण के सवाहक इकट्ठे हो जारहे है,स्वस्थ कर्मियों पर हमले तक होरहै है। और सामाजिक,साम्प्रदायिक उन्मादी मान नही रहे।सुरसा (कोरोना) अपनी जीभ लपलपाये समूर्ण मानवता को रक्ताभ जीभ से लीलने को तैयार है।पूरा देश बचाव में ही बचाव की बात कर रहा है।
बस्ती जैसे छोटे स्थान पर दो पॉजिटिव मिल गए ।
जोभी चिकित्सावयवस्था से जुड़े है वे भी तो आदमी ही है न?उनकी उनके परिवार की मनोवृत्ति आप जैसा नायक तो समझता ही होगा।
मेरी विनती है ,
आज राम नवमी है राष्ट्रभक्त राम का आविर्भाव दिवस।उन्होंने राष्ट्र धर्म व मानवता के लिए समुद्र को भी दण्डित किया था।तब जाकर आसुरी वृत्तियों का नाश करसके।
आपने विनय भाव से करबद्ध निवेदन किया था उसका कितना पालन हुआ?किसी समूह या प्रवृत्ति का नाम लिए बिना।
एक सुझाव देना अपना राष्ट्र धर्म समझ कर निवेदित कर रहा हूं।लाक डाऊन का जो समय बचा है उसमें 3-4 दिन का कर्फ्यू अवश्य लगाइए।आपकी सजगता,ततपरता को नमन करता हू ।अन्यथा आंतरिक आपातकाल लगाने से ही कोरोना के संवाहक रक्तबीज व सुरसाये कब्जे में आयेगी।
विनय की भाषा जब समुद्र नही समझा तब-----?
राजेन्द्र नाथ तिवारी
अध्यक्ष
पूर्वाचल विद्वत परिषद
बस्ती