आवाजो के बाजारों में खामोशी पहचाने कोन? देश के पत्रकारों के दर्द भी बाँटिये सरकार!

बस्ती पूरा देश लॉक डाऊन में है, हरकोई बेहतर कल केलिये संघर्ष कर रहा है।एकतरफ कांग्रेस की नेता सोनिया गांघी ने अखबारों को विज्ञापन पर रोक की बात कही है ,वही जहाँ सर्वत्र त्राहिमाम  लगा है और सभी क्षेत्रों कर लिए कोई न कोई पैकेज की मांग कर रहा है वही  अपनी जान जोखिम में डालकर सभी पत्रकार मन,बचन,कर्म से अपने सीमित संसाधनों से असीमित रिपोर्टिंग कर रहै 


है।उनके लिए पूरे देश मे कही से कोई आवाज राहत भरी नही आई है।


सबकी खबर ले और सबको खबर दे का सिद्धांत केवल  पत्रकार पर ही लागू होता भी है।बड़े मीडिया हाउस में तो कुछ गनीमत है।पर छोटे और मझोले समाचार पत्र, व चैनल की हालत क्या देश के नियंताओ को नही मालूम?


इसी बीच भारतीय प्रेस परिषद देश की इतनी बड़ी आपदा से अनभिज्ञ है।जहाँ देश व प्रदेश की सरकारे सभी वसूली स्थगित करदी है वही प्रेस परिषद पत्र भेज कर अपनी लेवी वसूल रही है।दुर्भाग्य तो यह है देश की सबसे संवेदन शील सस्थान मानी जाने वाली परिषद खुद सारी दुनिया की समस्या से बेख़बर है।


पूर्वांचल विद्वत परिषद के अध्यक्ष  राजेन्द्र नाथ तिवारी ने प्रेस परिषद,केंद्रीय सूचना मंत्री व प्रधानमंत्री मंत्री को ट्वीट कर समाचार पत्रों  व उनके कर्मचारियों के लिए सन्तोष जनक पैकेज की मांग की है


उन्होंने कहा है जो चिल्लाता है सरकार केवल उन्हीं की सुनेगी?विपरीत परिस्थिति में रिपोर्टिंग क्या योद्धा  की श्रेणी में नही आती?विना वेतन के काम आखिर और कोई करता हो तो बताइए।


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