जौनपुर। वासन्तिक नवरात्र के पांचवें दिन रविवार को मां दुर्गा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की सविधि पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान अर्गलास्तोत्र व देवी तंत्रोक्ति से देवी की आराधना की गई। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए मंदिरों कपाट बंद होने से श्रद्धालु महिला-पुरुषों ने अपने घरों में मां दुर्गा का चित्र लगाकर व दरवाजे पर स्थित नीम के पेड़ का पूजन-अर्चन किया। सुख व समृद्धि की कामना की। माता रानी की आस्था में लीन भक्त नौ दिनों तक अनुष्ठान में लगे हुए है। भोर की आरती के बाद से देवी भक्त पांचवें दिन ईशत हास्य से ब्रह्मंाड की रचना करने वाली देवी भगवती स्कंदमाता की विधि विधान से पूजन-अर्चन किया। इनका यह स्वरूप अन्नपूर्णा का है। प्रकृति का दोहन और लोगों को भूख-प्यास से व्याकुल देखकर मां ने शाकंभरी रूप धरा अर्थात शाक से शताक्षी को पल्लवित किया और शताक्षी बनकर असुरों का संहार किया। ज्ञातहो कि स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है। माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।